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Thursday, 19 September 2019

Chamatkari Ganesh and hanuman


बीकानेर के चमत्कारी बड़े गणेश जी मंदिर, एक दर्शन

By  | May 17, 2018
काशी के नाम से विख्यात बीकानेर अपने धर्म परायण स्वरुप के लिए जाना जाता है | इस छोटी काशी का पश्चिमी हिस्सा धर्म भूमि के रूप में देखा जाता है | मठों, मंदिरों, बगेचियों का यह क्षेत्र एक प्रकार से तीर्थों का गढ़ है | रियासत काल के राजाओं ने भी बीकानेर की जानता की धार्मिक भावना को पूरा-पूरा आदर-सम्मान दिया | प्रातः काल के परकोटे के भीतर वैदिक मन्त्रों का सस्वर उच्चारण सुनकर बाहर आये ने इस शहर को छोटी काशी की उपमा दी थी | यह किवदंति जन मान्यता के रूप में फैलती गई और आज बीकानेर की पहचान देश की छोटी काशी के रूप में होने लगी है |
bade ganesh ji ka mandir beekaner
महाराजा अनूप सिंह बीकानेर के लोकप्रिय राजाओं में से एक थे | उनके शासनकाल में संस्कृत भाषा का प्रचुर साहित्य रचा गया था | महाराजा अनूप सिंह स्वमं संस्कृत अनुरागी थे | उन्होंने स्वमं साहित्य सृजन किया | उनकी कृतियाँ अनूप संस्कृत पुस्तकालय में आज भी सुरक्षित है |
महाराजा अनूप सिंह के समय में जूनागढ़ के हर मंदिर में किसी जटिल बात के कारण कथावाचक व्यास की समस्या आ खड़ी हुई थी | पूर्व में यह कथा लालाणी व्यास जाति द्वारा की जाती थी | जूनागढ़ के हर मंदिर के तत्कालीन पुजारी आचार्य धरणीधर तथा महानंद हुआ करते थे | महाराजा अनूप सिंह ने हर मंदिर की कथा समस्या उन्हें बतलाई | तब आचार्य धरणीधर तथा महानंद  भ्राताओं ने मेड़ता के गोलवाल   पारीक व्यास महाकवि हरिद्विज एवं हरिदेच को  बुलाकर उन्हें हर मंदिर की कथा व्यवस्था सुपुर्द करवाई तथा महाराजा   अनूप सिंह ने उन्हें ससम्मान बीकानेर में बसाया |
धीरे-धीरे गोलवाल पारीक व्यास जाति ने अपनी विद्वता से जन सामान्य को भी प्रभावित कर लिया | इसके फलस्वरूप उन्हें जानता के भीतर भी कथा वाचन तथा गरुड़ पुराण वाचन का कार्य मिल गया | इस प्रकार से गोलवाल पारीक व्यास जाति की आर्थिक स्थिति भी उन्नत होती गयी |
हरिदेव के पुत्र पं. शिवराम ने वि. सं. 1760 के लगभग नत्थुसर गेट के बाहर एक बगेची का निर्माण करवाया | पश्चात् वहां गणेश जी मंदिर की स्थापना की गई | यह कथा व्यासों की बगेची कालांतर में बड़ा गणेश मंदिर के रूप में प्रसिद्द हो गयी | संस्कृत संभाषण में दक्ष 80 वर्षीय पंडित जयनारायण व्यास बताते है कि बड़ा गणेश मंदिर का परिक्षेत्र लगभग 13500 गज है | इस विशाल परिक्षेत्र में भगवान गणेश के अलावा सिद्धेश्वर महादेव, पातालेश्वर महादेव, कोडाणा भैरव के मंदिर भी अवस्थित है | गोलवाल परीकों के 5 नाड़े भी इस परिक्षेत्र में अवस्थित है |
प्रारंभ में यहाँ की पूजा का दायित्व शाकद्वीपीय ब्राहमणों को सौपा गया था | महाराजा गंगासिंह जी के समय में इस भव्य लम्बे-चौड़े परिसर का पट्टा बनाया गया, जिसकी फाइल में भी शाकद्वीपीय ब्राहमणों द्वारा गणेश जी की भी पूजा करने का उल्लेख मिलता है |
भगवान गणेश का यह मंदिर बीकानेर की जानता का प्राणधार है |प्रतिदिन सैकड़ो की तादाद में भक्त गण यहाँ दर्शनार्थ आते है | प्रत्येक सप्ताह बुधवार के दिन यहाँ भारी भीड़ रहती है |
बुधवार के दिन मंदिर के बाहर अहाते में बूलमालाओं, मोदकों की अस्थायी दुकाने लगती है | चूँकि बीकानेर शहर का फैलाव विस्तृत हो चूका है तथा जनसँख्या भी बढ़ चुकी है | इस कारण से पूर्व से पश्चिम छोर की तरफ आना-जाना सहज नहीं रह गया | उसी प्रकार से उत्तर से दक्षिण छोर की तरफ भी आना-जाना दूभर है | मगर इस भगवान गणेश की महिमा ही कहेंगे कि बुधवार के दिन चारों दिशाओं से अंतिम छोरों से भी लोग बड़े गणेश जी के दर्शन करने आते है |
भगवान गणेश का मंदिर इस विस्तृत भू-भाग के पश्चिम छोर पर स्थित है | गणेश जी के मंदिर में प्रवेश करने पर लम्बा-चौड़ा प्रांगन आता है | यह प्रांगण आधा खुला रहता है तथा आधा ढका हुआ है | अर्थात प्रांगण म के अर्धभाग में छत के रूप में लोहे के बड़े-बड़े सुराखों वाली जलियाँ लगी हुई है |
गर्भगृह में संगमरमर की चौकी के ऊपर भगवान गणेश विराजमान हैं। रामपुरिया जैन पी.जी. कालेज के सेवानिवृत्त प्राचार्य प्रो. राधाकृष्ण रंगा के अनुसार भगवान गणेश का यह विग्रह लगभग अढ़ाई फुट चौड़ा तथा सवा तीन फुट ऊंचा है। इस आकर्षक विग्रह की चार भुजाएं हैं जिनमें क्रमश: गदा, फरसा, माला, मोदक है।
भगवान साधक की मुद्रा में बैठे हैं। भगवान के विग्रह में सर्प लिपटा हुआ है। गले में जनेऊ है, भगवान का एक दांत है सूंड बाईं ओर है। यह विग्रह आकर्षक लाल पत्थर पर तराशा हुआ है। विग्रह में भगवान गणेश अपने हाथ से ही मोदक का आहार कर रहे हैं। भगवान के ललाट पर चंद्रमा है। साधक अवस्था में भगवान को धोती पहने हुए दिखाया गया है। भगवान के इस विग्रह का निर्माण बारह पुष्य नक्षत्रों के दौरान किया गया है। पुष्य नक्षत्र 27 दिनों में एक बार आता है। कलाकार द्वारा प्रत्येक पुष्य नक्षत्र को मूर्त तराशने का कार्य किया गया।
बाहरी परिवेश में भगवान का जम कर शृंगार किया हुआ था। सिर पर कृत्रिम मुकुट तथा गले में विधि प्रकार के पुष्पों की मालाएं सुशोभित हो रही थीं। भगवान के विग्रह के निम्र भाग में सफेद रंग की वास्तविक धोती पहनाई हुई थी जो बीकानेर के इस एकमात्र मंदिर में ही दर्शनीय है। भाद्रपद मास की शुक्ल चतुर्थी को मंदिर में पांव रखने तक की जगह नहीं रहती। उस दिन यहां भारी मेला लगता है।
भगवान गणेश का यह मंदिर कन्याओं के लिए अभीष्ट सिद्ध हुआ है यहां कुंवारी कन्याएं प्रतिदिन दर्शन करने आती हैं तथा मनोवांछित वर की कामना करती हैं। योग्य व गुणी वधू की तलाश में लड़के वाले यहां दर्शन करने के लिए अवश्य आते हैं। भगवान गणेश का यह मंदिर सभी प्रकार से मनोवांछित फल देने वाला है। आज इस मंदिर की देखभाल पारिक व्यास (गोलवाल) समाज करता है।

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हनुमान जी के 5 चमत्कारिक मंदिर, जहाँ होती है सभी मनोकामना पूरी

By  | January 16, 2019
भगवान श्री राम भक्त हनुमान जी वैसे तो अपने भक्तों के थोड़े से भक्ति भाव से प्रसन्न होकर उनकी सभी इच्छाएं पूर्ण करते है | लेकिन कुछ स्थान ऐसे भी है जहाँ साक्षात् हनुमान जी विराजमान है और वहां सिर्फ जाने से ही आपकी सभी मनोकामना पूर्ण होती है | हनुमान जी के ये सभी चमत्कारी मंदिर सम्पूर्ण भारत में प्रसिद्द है | हनुमान जी के इन सभी सिद्ध स्थानों पर जो भक्त सच्चे मन से श्री राम का नाम लेते है उनके सभी कष्ट स्वतः ही दूर होने लगते है साथ ही आपके सभी कार्य सिद्ध होने लगते है | आइये जानते है हनुमान जी के 5 चमत्कारी मंदिरों(Hanuman Ji Ke Chamatkari Mandir)के विषय में जानकारी :

Hanuman Ji Ke Chamatkari Mandir :

hanuman ji ke chamatkari mandir

हनुमान जी के 5 चमत्कारी मंदिर : –

1. विन्ध्याचल वाले हनुमान जी का मंदिर : –

विन्ध्याचल पर्वत के पास स्थित इस मंदिर में बंधवा हनुमान नाम प्रसिद्द है | सभी भक्त यहाँ स्थित हनुमान जी को बंधवा हनुमान जी के नाम से पुकारते है | यहाँ मान्यता है कि बाल रूप में हनुमान एक पेड़ से प्रकट हुए थे | ऐसा माना जाता है कि यहाँ हनुमान अपने आप बड़े होते जा रहे है | शनि दोष से मुक्ति पाने हेतु भक्तजन यहाँ हनुमान जी से अपनी अरदास लगाते है और उन्हें चमत्कारिक परिणाम भी देखने को मिलते है | यहाँ विराजमान हनुमान जी का स्वरुप भी बच्चे के समान ही है(Hanuman Ji Ke Chamatkari Mandir) |

2. चंदौली के कमलपुरा में स्थित बरगद वाले हनुमान जी : –

चंदौली के कमालपुरा में स्थित हनुमान जी(Hanuman Ji Ke Chamatkari Mandir) एक बरगद के पेड़ से प्रकट हुए है | यहाँ हनुमान जी की खंडित मूर्ति है | वैसे तो हिन्दू धर्म में खंडित मूर्ति की पूजा करने का विधान नहीं है लेकिन यहाँ हनुमान जी प्राकर्तिक रूप से प्रकट हुए है इसलिए लोगों में इस स्थान की बड़ी मान्यता है | ऐसी मान्यता है कि जब हनुमान जी यहाँ स्वयं भू हुए थे तो उनके माथे पर सोने का मुकुट था | एक व्यापारी ने सोने के लालच में आकर सोने के मुकुट सहित उनके मस्तक को काट लिया | व्यापारी के ऐसा करते ही हनुमान जी की प्रतिमा से खून बहने लगा | व्यापारी डरकर वहां से मुकुट लेकर भागने लगा और रास्ते में उसका जहाज डूब गया जिससे व्यापारी की मृत्यु हो गयी | तभी से उस खंडित रूप में ही हनुमान जी की पूजा होती रही है | यहाँ श्रद्धा भाव से जो भी भक्त अपनी इच्छा रखते है उनकी इच्छा अवश्य पूर्ण होती है |

3. झांसी में स्थित हनुमान मंदिर : –

झाँसी में स्थित हनुमान जी के मंदिर के चारों ओर पानी ही पानी बिखरा रहता है यह कोई नहीं जानता कि पानी कहाँ से आता है | हनुमान जी पूजा भी इसी पानी के बीच ही की जाती है | एक बार हनुमान जी की प्रतिमा से आंसू बहने लगे तो भक्तों ने यहाँ भजन कीर्तन आदि किये तब जाकर उनकी आँखों से आंसू बहने बंद हुए | यह मंदिर अपने आप में चमत्कारी मंदिर है | यहाँ आने वाले भक्त चर्म रोग और नेत्र रोग में आराम पाते है |

4. प्रयाग में संगम किनारे स्थति लेटे हुए हनुमान जी : –

प्रयाग में संगम नदी के किनारे हनुमान लेटे हुए है | कहते है लंका में रावन के साथ युद्ध के बाद हनुमान जी बहुत थक गये है तो उन्होंने यहाँ पर लेटकर विश्राम किया था | हनुमान जी इतने कमजोर महसूस कर रहे थे कि उन्होंने यही प्राण त्यागने का मन बना लिया था तब सीता माँ ने उन्हें सिन्दूर का लेप लगाकर ठीक किया था | यहाँ हनुमान जी को जो भी भक्त सिन्दूर अर्पित करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है |

5. कानपुर स्थित हनुमान मंदिर : –

कानपुर में हनुमान जी पंचमुखी हनुमान जी(Hanuman Ji Ke Chamatkari Mandir) के नाम से विख्यात है | ऐसी मान्यता है कि यहाँ हनुमान जी और लव कुश का युद्ध हुआ था | युद्ध में परास्त होने के बाद सीता माँ ने यहाँ हनुमान जी को भोजन कराया था | माँ सीता ने हनुमान जी कको यहाँ लड्डू खिलाये थे | ऐसी मान्यता है कि जो भक्त उन्हें श्रद्धा भाव से लड्डू का भोग लगाते है उनकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती है | इस मंदिर की विशेष बात यह है कि यहाँ आकर भक्तों को बिना मांगे ही सब कुछ मिल जाता है |
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सम्पूर्ण शिव चालीसा ! शिव चालीसा को सिद्ध करने की विधि

By  | January 20, 2019
हिन्दू धर्म में भगवान शिव को सर्वोच्च शक्ति के रूप में जाना गया है | भगवान शिव ही इस संसार के संहारक है | उन्ही की शक्ति से इस धरा का अस्तित्व है | जो जातक शिव तत्व की उपासना करते है वे संसार के सभी सुखों को भोगते है व मृत्यु के भय से मुक्त होते है | भगवान शिव को भोलेनाथ भी कहा गया है(Shiv Chalisa in Hindi)| वे अपने भक्तों के थोड़े से भक्ति भाव से प्रसन्न होकर उन्हें आर्शीवाद देते है |
भगवान शिव की उपासना करने के बहुत से साधन है जैसे : शिवालय में शिवलिंग पूजा करना , सोमवार को व्रत रखना , शिव तांडव स्त्रोत का गायन करना , शिवालय में कावड़ चढ़ाना , शिव मंत्र के जप करना, मानसिक उपासना करना और शिव चालीसा पाठ द्वारा शिव आराधना करना | किसी भी विधि द्वारा आप भगवान शिव से आशीर्वाद पा सकते है | भगवान शिव की उपासना में मन की शुद्धि व निष्ठा भाव का होना नितान्त आवश्यक है |
मन से की गयी भक्ति भौतिक रूप से की गयी भक्ति से अधिक फलदायी होती है किन्तु इसका अभिप्राय यह नहीं की भौतिक रूप से की गयी भक्ति का फल प्राप्त नहीं होता | मानसिक और शारीरिक, दोनों प्रकार से की गयी भक्ति आपको शीघ्र ही आपके लक्ष्य की ओर ले जाती है | भगवान शिव के प्रति मन में पूर्ण श्रद्धा भाव रखते हुए शिव चालीसा का पाठ आपके सभी दुखों को हरने वाला है |
शिव चालीसा(Shiv Chalisa in Hindi) का पाठ आप घर पर या शिवालय शिवलिंग के सामने बैठकर , दोनों स्थाओं पर कर सकते है | प्रतिदिन कम से कम 3 बार शिव चालीसा का पाठ करना चाहिए | शिव चालीसा का पाठ मुख से मध्यम स्वर में लयबद्धता के साथ बोलकर करना चाहिए | शिव चालीसा पाठ करते समय किसी प्रकार की जल्दबाजी कदापि न करें | पाठ करते समय ध्यान भगवान शिव में लगाये | शुरू में आप किताब से देखकर शिव चालीसा का पाठ कर सकते है बाद में इसे कंठस्त करने का प्रयास करें | सोमवार के दिन 7 बार शिव चालीसा पाठ करना चाहिए |
शिव चालीसा पाठ के साथ-साथ सोमवार को शिवलिंग रूद्र अभिषेक अभिषेक अवश्य करें |
shiv chalisa in hindi

शिव चालीसा/Shiv Chalisa in Hindi: –

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥1॥
मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥2॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥3॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥4॥
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥5॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥6॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥
मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥7॥
धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥8॥
नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥9॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥10॥
कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
॥दोहा॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

शिव चालीसा को सिद्ध करने की विधि : –

शिव चालीसा को सिद्ध करना बहुत ही सरल है | सबसे पहले आप शिव चालीसा को कंठस्त कर ले | अब किसी सोमवार की सुबह पूर्व दिशा में एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर शिव की फोटो की स्थापना करें | घी का दीपक प्रज्वल्लित करें , धुप आदि लगाये | एक ताम्बे के लौटे में जल लेकर रखे | जल का छिड़काव सभी दिशाओं में करके अपने आस पास के वातावरण को पवित्र बनाये | शिव जी को तिलक करें | शिव चालीसा को तिलक करें | अक्षत अर्पित करें | पुष्प अर्पित करें |  अब मीठे का भोग लगाये(Shiv Chalisa in Hindi) | अब गणेश जी के स्तुति मंत्र द्वारा उनका आव्हान करें :

गणेश जी स्तुति मंत्र : –

ॐ गणानां त्वा गणपतिं हवामहे कविं कवीनामुपमश्रवस्तमम् ।
ज्येष्ठराजं ब्रह्मणाम् ब्रह्मणस्पत आ नः शृण्वन्नूतिभिःसीदसादनम्
ॐ महागणाधिपतये नमः ॥
गणेश जी के आव्हान के पश्चात् संकल्प ले : – दायें हाथ में थोड़ा जल लेकर बोले : हे परमपिता परमेश्वर मैं( अपना नाम बोले) गोत्र( अपना गोत्र बोले) शिव चालीसा पाठ को सिद्ध करने का कार्य कर रहा हूं इसमें मुझे सफलता प्रदान करें, मेरे द्वारा किये गये कार्य में किसी भी प्रकार की कोई गल्ती हो गयी हो तो मुझे क्षमा करें, ऐसा कहते हुए जल को नीचे जमीन पर छोड़ दे और बोले ॐ श्री विष्णु , ॐ श्री विष्णु , ॐ श्री विष्णु |
अब आप पूरे 108 बार शिव चालीसा का पाठ करें | बीच-बीच में आप कुछ समय के लिए स्थान छोड़ सकते है | शिव चालीसा के 108 पाठ पूर्ण होने पर हाथ में जल लेकर पुनः इस प्रकार बोले : – हे परम पिता परमेश्वर मैंने शिव चालीसा पाठ में सिद्धि प्राप्त करने हेतु यह कार्य किया है इसमें मुझे सफलता प्रदान करें, मेरे द्वारा किये गये समस्त शिव चालीसा(Shiv Chalisa in Hindi) के पाठ मैं श्री ब्रह्म को अर्पित करता हूं इसमें मुझे पूर्णता प्रदान करें, ऐसा कहते हुए हाथ के जल को नीचे जमीन पर छोड़ दे और बोले ॐ श्री ब्रह्मा, ॐ श्री ब्रह्मा , ॐ श्री ब्रह्मा |
इस प्रकार से आप शिव चालीसा के पाठ को सिद्ध करके इसका प्रयोग मानव कल्याण हेतु कर सकते है | शिव चालीसा पाठ(Shiv Chalisa in Hindi) को सिद्ध करने की यह बहुत ही सरल और सूक्ष्म विधि है आप अपनी सुविधा के अनुसार पूजा विधान को बढ़ा भी सकते है | किसी भी प्रकार की सहयता के लिए आप हमें संपर्क कर सकते है |




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