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Tuesday 24 September 2019

Yakshini Sadhana


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FRIDAY, JANUARY 1, 2016

स्वर्ण प्रदायक पारी साधना


  



न भारतीयों नवत्सरोऽयं, तथापि सर्वस्य शिवप्रद: स्यात
यतो धरित्री निखिलैव माता, तत: कुटुम्बायितमेव विश्वं ||
                            
यद्यपि ये नववर्ष भारतीय नहीं है , तथापि सबके लिए कल्याणकारी हो क्योंकि सम्पूर्ण धरा माता ही है अतः
“माता भूमि: पुत्रोऽहं प्रथिव्या:”
अत एव प्रथ्वी के पुत्र होने कारण समग्र विश्व ही कुटुंब स्वरुप है
पाश्चातनववर्षस्यहार्दिका: शुभाशया: समेषां कृते ||

HAPPY NEW YEAR J

स्नेही स्वजन,
जय सदगुरुदेव, आप सभी के विशेष आग्रह पर—
“हालाँकि ये मेरा सब्जेक्ट नहीं है किन्तु साधनाओं के मार्ग पर जब कोई साधक चलता है तो सभी तरह की साधनाओं पर न केवल विचार करता है अपितु उन पर प्रायोगिक रूप से कार्य भी करता है, मेरे साथ भी ऐंसा ही कुछ है हरेक क्षेत्र को जानने की जिज्ञासा और समझने का स्वभाव रहा है और सद्गुरुदेव ने मुझे अति स्नेह और पूर्ण व्यावहारिकता के साथ न केवल समझाया अपितु येनकेन प्रकारेण सिद्ध भी करवाया जो मै चाहती थी वो भी और जो नहीं चाहती थी वो भी अतः”  उसी क्रम में...............

इस नववर्ष के उपलक्ष्य में निखिल-एल्केमी ग्रुप के सौजन्य से और मेरी और से छोटा सा उपहार---


स्वर्ण-प्रदाय परि साधना-

ये साधना में मूल रूप से मुस्लिम साबर साधना के अन्तरगत आती है अतः इसमें सावधानियां भी अति आवश्यक हैं सदगुरुदेव प्रदत्त इस साधना के सम्बन्ध में कहा जाता है की अनेक गृहस्थ और सन्यासी शिष्यों को समपन्न कराया गया, प्रत्येक बार पूर्ण रूपेण सफलता प्राप्त हुई है, इस साधना के सिद्ध होने पर परि- सौन्दर्य से परिपूर्ण यौवन की आभा से युक्त आपके पास प्रेमिका रूप में साथ रहती है प्रेम और आनंद्युक जीवन तो देती ही है साथ ही नित्य पांच तोला स्वर्ण और  जीवन भर धन-धान्य सुख सामग्री आदि से परिपूर्ण कर देती है \ यद्यपि ये साधना कठिन भी है किन्तु यदि पूर्ण विधि विधान और पूर्ण नियमों का पालन करते हुए समपन्न की जाये तो सफलता निश्चित हो जाती है | 

साधना सामग्री:--   इसमें जिन साधना सामग्री की आवश्यकता होती है उनमें ये मंडल यंत्र अति आवश्यक है, साथ ही लाल गुलाब के पुष्प, चमेली का इत्र और चमेली का ही तेल, आठ गोमती चक्र, आठ सुपारी, आठ इलाइची, आठ लौंग, आठ पतासे, और थोड़े से काले तिल सफ़ेद वस्त्र सफ़ेद आसन सफ़ेद हकिक माला | 

विधि—ये प्रयोग चालीस दिनों का है और इसमें प्रत्येक दिन एक समय ही भोजन करना है जिसमें खीर को प्रधानता देनी है दूसरी मुख्य बात ये है कि इस साधना को किसी एकांत कमरे में ही करना है जहाँ किसी का आना जाना न हो, और ४० दिनों तक उस कमरे में आपके आलावा कोई भी वहां न जाए |

इस साधना को किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष के शुक्रवार से व्रत रखें और शाम को केवल खीर खाएं फिर, स्नानादि से निवृत्त होकर रात को पूरे कमरे में गुलाब की पंखुडियां बिखेर दें और अपने कान में भी इत्र फोहा लगायें और सामने बाजोट पर सफेद कपडा बिछाकर उस पर यंत्र मंडल स्थापित करे और उसके चारों और गुलाब की पंखुड़ियों से ही एक घेरा बनाएँ और यंत्र के चारों और क्रमशः पहले गोमती चक्र, आठों सुपारी, इलाइची, लौंग, पतासे रखें और थोड़े से काले तिल सामने ढेरी बनाकर रखें अब सफ़ेद आसन पर उत्तर दिशा की और मुंह कर बैठे और सफ़ेद हक़ीक माला से नित्य १०१ माला निम्न मन्त्र का जप करें, जप समाप्ति के बाद वहीँ सो जाएँ |

प्रति दिन यही क्रम करना है इस तरह ४० दिनों का उपवास और रात को भोजन में खीर का प्रयोग अति आवश्यक है यदि हो सके तो प्रतिदिन सिर्फ खीर का ही प्रयोग करें तो अति उत्तम अन्यथा भोजन के साथ खीर ले सकते हैं |

किसी भी साधना की सफलता का मूल आधार उसके नियम बद्धता है इसमें पूर्ण रूप से ब्रहमचर्य और बाकी नियम को भी तटस्थता से पालन करेंगे तो ही सफलता का प्रतिशत बढेगा |

मन्त्र—
“अर्हीना अरीना सरीना सफरीना अकविपा सदा सदुनी कामिनी पदभावी वश्यं कुरु कुरु नमः”

“ ARHEENA  AREENA  SAREENA SAFREENA AKVIPA SADA SADUNI KAMINI PADBHAAVI VASHYAM KURU-KURU NAMAH”

जीवन को पूर्ण आनंददायक और पूर्ण बनाने हेतु ये साधना अवश्य संपन्न करें, क्योंकि ये परी प्रेमिका रूप में जीवन भर आपका साथ देती है और धनधान्य सुख संपत्ति से पूर्ण कर देती है |

कोई भी साधना बिना गुरु आशीष के संपन्न हो ही नहीं सकती अतः प्रत्येक साधक या व्यक्ति को अपने गुरु के आशीर्वाद और अनुमति से ही साधना के इस क्षेत्र में गतिशील होना चाहिए | चूँकि ये प्रत्यक्षीकरण की साधना है अतः पूर्ण धैर्य और निडरता अति आवश्यक है प्रत्येक नियम का दृणता से पालन एक अनिवार्य शर्त, जो स्वयं ही करनी पड़ती है | आपकी श्रद्धा, आपके प्रयास, आपकी नियम संयमता आदि, आपको आपके लक्ष्य तक अवश्य पहुंचाएगा |
 शेष गुरुदेव कृपा-----



***NPRU***

  RAJNI NIKHIL

  

FRIDAY, MARCH 6, 2015

धनदा रतिप्रिया यक्षिणी प्रयोग (भाग २)




अहम् चिन्त्यं मनः चिन्त्यं प्राणा चिन्त्यं गुरौश्वर |
सर्व सिद्धि प्रदातव्यंतस्मै श्री गुरुवे नमः ||

हे इश्वर सिर्फ आपसे एक प्रार्थनाहै कि सदैव मेरा शरीर और जीवन सदैव गुरुदेव का ही स्मरण करता रहे, मेरा मन प्रत्येक क्षण गुरु चरणों में लीन रहे, मेरे प्राण गुरु स्वरुप इश्वर में अनुरक्त रहें, ब्रह्माण्ड में केवल गुरु ही है जो मुझे समस्त प्रकार कि सिद्धियाँ प्रदान कर सकतें हैं | अतः ऐसे सदगुरुदेव को शत् शत् नमन है |

  स्नेही स्वजन,
     होली कि शुभकामनाओं के साथ जय सदगुरुदेव

 उम्मीद ही नहीं पूर्ण विश्वास है के आपने होली पूर्णिमा का साधनात्मक लाभ उठाया होगा और सदगुरुदेव से यही प्रार्थना है कि आप सबको पूर्ण सफलता प्रदान करें |
 जिन साधकों ने कल इस साधना को एक हि दिन में पूर्ण किया है उनके लिए आगे के तीन महत्वपूर्ण प्रयोग दिए जा रहे हैं, जिनसे इस साधना को पूर्णता प्राप्त होगी |


चूंकि रुद्रयामल तंत्र में वर्णित है कि धनदा रतिप्रिया यक्षिणी के साथ यदि काम देव का पूजन किया जाये (जो कि आप सबने किया ही है) तो देवि अत्यंत प्रसन्न होती हैं व साधक के सांसारिक जीवन के सभी मनोरथों को पूर्ण करती है | चाहे वो कन्याओं द्वारा श्रेष्ट पति कि प्राप्ति हेतु हुए हो या किसी भी रोगी के द्वारा शारीरिक दोषों और दुर्बलताओं का नाश करने हेतु हो | कामदेव ओर रतिप्रिया यक्षिणी के समिल्लित पूजन से साधक स्वयं कामदेव के सामान सौन्दर्य व पूर्णता भी प्राप्त कर सकता है |

 लक्ष्मी तंत्र कि सर्वोत्तम साधना मानी जाती है | भाइयों बहनों हम यदि प्राचीन ग्रंथों में भारत कि वैभवता व श्रेष्टता के बारे में पढ़ते हैं तो आश्चर्य लगता है लेकिन यह पूर्ण सत्य है ओर इसका कारण यह है कि उस समय लोगों के द्वारा किया जाने वाला आचार विचार और साधनाओं के प्रति पूर्ण आस्था, तांत्रिक ज्ञान की पूर्ण प्रमाणिक जानकारी की प्रमुखता | जैसे जैसे धर्म अर्थात प्राचीन विद्याओं को लोग भूलते चले गए वैसे वैसे दरिद्रता का आगमन होता चला गया |

 अतः आवश्यकता है इस विशेष ज्ञान को पूर्ण प्रमाणिकता के साथ समझे, परखें, स्वयं प्रत्यक्ष क्रियाओं को संपन्न करें और अपने जीवन को समृद्ध, सुसंपन्न व वैभवशाली बनायें |

 इसी क्रम में इस साधना के तीन प्रमुख प्रयोग-

·        ऋण मोचन प्रयोग
·        आकास्मिक धन प्राप्ति हेतु
·        व्यापार एवं कार्य वृद्धि हेतु

 इस साधना को संपन्न करने के बाद साधक को आवश्यकतानुसार प्रयोग संपन्न करना चाहिए

1.     ऋण मोचन हेतु
||ॐ ह्रीं श्रीं मां देहि धनदे रतिप्रिये स्वहा ||
           Aum hreem shreem maam dehi dhanade ratipriye swaha

2.     आकस्मिक धन प्राप्ति हेतु
||ॐ ह्रीं ॐ माम ऋणस्य मोचय मोचय स्वाहा ||

Aum hreem aum maam rinasy mochay mochay swaha


3.     व्यापार एवं कार्य वृद्धि हेतु
|| ॐ धं श्री ह्रीं रतिप्रिये स्वाहा ||

Aum dham shreem hreem ratipriye swaha

इन प्रयोगों को संपन्न करने के लिए जो नियम मूल साधना के हैं उन्ही को संपन्न करना चाहिए तथा मूल मन्त्र की एक माला करने के बाद सम्बंधित मन्त्र की १०१ माला एक दिन में ही सपन्न करके प्रयोग पूर्ण करें | सदगुरुदेव से यही प्रार्थना है कि आप सभी साधना संपन्न बनें और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पूर्ण सफलता प्राप्त करें |

निखिल प्रणाम

रजनी निखिल


***NPRU***  

THURSDAY, MARCH 5, 2015

होली का यक्षिणी प्रयोग

         {तंत्रस्य जीवनं धर्म, तन्त्रं ही परिपूर्णता}




स्नेही स्वजन !

           होली की शुभकामनाओं के साथ********

तंत्र, तो जीवन का आधार है, हम तंत्र में ही जीते हैं, ये अलग बात है कि मन्त्र बद्ध न होकर क्रिया बद्ध होकर जीते हैं, किन्तु यही क्रिया शीलता मान्त्रिक होजये तो तंत्र का मूल स्वरुप सामने आ जाता है, भाइयो बहनों ! मेरे विचार में आज के समय में तंत्र की व्याख्या समझाने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि आप सभी बहुत कुछ पढ़ चुके हैं और समझ चुके हैं किन्तु तंत्र तो महा विज्ञान है जिसमें हजारों सिद्धांत है . अब ये तो जीवन की व्यवस्था है जिसमें अभ्यास और व्यवहारिक ज्ञान का समावेश है |

          बस इतना समझना ही काफी है कि तंत्र के माध्यम से सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त ईश्वरीय शक्ति को आकर्षित कर अपने अनुकूल कर सिद्धि प्राप्त की जा सकती है |

   तंत्र साधक अपने अन्दर उस सिद्ध शक्ति को चुम्बकीय प्रभावशाली और तीव्र उर्जायुक्त बनाता है | ये विज्ञान मानव शरीर के सूक्ष्म शरीर में स्तिथ चक्र और यौगिक ग्रंथियों को जागृत कर शक्तिशाली बनाता है, तंत्र के माध्यम से आम्नव अपने अन्दर की बंधन से मुक्त होकर अपनी शक्तियों का विस्तार कर सकता है , शरीर में रहते हुए भी शरीर से मुक्त होकर अपने आपको विस्तार दे सकता है, इसी क्रम में ब्रम्हांड में स्तिथ अनेक शक्तियां यक्ष, किन्नर, गन्धर्व, एवं अन्य भूत प्रेत प्रकार की योनी को भी अपने अनुकूल बनाकर अपने जीवन को सहजता प्रदान कर सकता है....

 चूँकि होली महानिषा के श्रेणी में आती है अतः तंत्र का विशिष्ट दिवस कहलाता है सभी तंत्र साधक इस दिन का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार करते हैं , तो इस बार हम पूर्णिमा से पूरे पांच दिन अलग-अलग साधनाएं सम्पन्न कर अपनी पूर्णता की ओर अग्रसर होंगे |

      मै जानती हूँ कि आप सब अपनी पसंद की साधना करना चाहते हैं और हमारे ब्लॉग सभी तरह का मैटर उपलब्ध है भी किन्तु जो सबसे आवश्यक और और महती आवश्यकता हो आप उसे पहले करिए, और जीवन में सभी मूल भूत आवश्यकताओं की पूर्ती हेतु धन यानि लक्ष्मी की आवश्यकता होती ही है अतः पहले इसी ओर प्रयास करना चाहिए | हैं ना J

भाईयों बहनों ! सद्गुरुदेवजी ने बताया है कि तंत्र और लक्ष्मी आपस में पूर्ण रूप से जुड़े हैं लक्ष्मी प्राप्ति हेतु जिस प्रकार क्रिया शील रहना आवश्यक है उसी अनुरूप तंत्र भी क्रियारूप है हि तंत्र में वह शक्ति है कि वह लक्ष्मी को अपने वष में कर ले | और जहाँ बात आती हो यक्षिणी कि तो लक्ष्मी का सर्वश्रेष्ठ स्वरुप है धनदा रतिप्रिया यक्षिणी | और इस स्वरुप को तंत्र साधना द्वारा जागृत किया जा सकता है |

भाइयो बहनों ! अब प्रश्न आता है कि साधना सामग्री, यानी यंत्र माला वगैरह , तो आप में से अधिकांशतः लोगों के पास तंत्र कौमुदी का अप्सरा यक्षिणी रहस्य खंड और तंत्र मण्डल यंत्र  तो है ही बाकी विधि ये है ही अब आपके ऊपर निर्भर है कि प्रत्यक्षीकरण करना है या आवश्यकतानुसार लाभ प्राप्त करना है |

दारिद्रय सन्हत्री यक्षिणी पाप खंडिनी विद्या के अंतर्गत धनदा रतिप्रिया यक्षिणी साधना साधक को संपन्न करनी चाहिए, यह देवि लक्ष्मी का सर्वोत्तम व एकमात्र स्वरुप है जिसमे तांत्रिक विधान द्वारा सिद्धि प्राप्त कि जा सकती है |

   इस साधना कि सबसे बड़ी विशेषता यह है कि लक्ष्मी के जितने भी स्वरुप होते है, उन सभी स्वरूपों का आवाहन व विशेष पूजा की जाती है, प्राण प्रतिष्ठा प्रक्रिया संपन्न की जाती है, दशों दिशाओं का कीलन किया जाता है जिससे किसी भी बाहरी बाधा से साधना में विघ्न ना पड़े और जो भी संकल्प साधक करें, उसका फल साधक को तत्काल अवश्य ही प्राप्त हो |

 प्राण प्रतिष्ठा से हि शक्तियां चैतन्य होती है | प्राण प्रतिष्ठा का विधान अत्यंत गुह्तम रहा है व इस महान तांत्रोक्त साधना में प्राण प्रतिष्ठा आवश्यक है |

 रुद्रयामल तंत्र  में स्पष्ट वर्णित है कि यदि यह तंत्र साधना पूर्ण विधि विधान से संपन्न कि जाय, तो ऐसा हो हि नहीं सकता कि देवि तत्काल आकर साधक का मनोरथों को पूर्ण ना करे |

 इस तांत्रोक्त साधना का मूल विधान तो एक ही है, परंतु आगे प्रत्येक आर्थिक समस्या के सम्बन्ध में अलग अलग मन्त्र जप है | 


सदगुरुदेव द्वारा प्रदत्त--

        तांत्रोक्त धनदा रतिप्रिया यक्षिणी साधना

     अब साधक सबसे पहले कुबेर पूजन सम्पन्न करें, अपने सामने कुबेर यंत्र स्थापित कर उसका चन्दन से पूजन कर एक माला निम्न कुबेर मन्त्र का जप करें

कुबेर मन्त्र 
                                                    
|| ॐ यक्षाय कुबेराय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धि मे देहि दापय स्वाहा ||
तत्पश्चात् सर्वप्रथम एक थाली में “ॐ ह्रीं सर्वशक्ति कमलासनाय नमः” लिखें और उस पर पुष्प की पंखुड़ियां रखें, तत्पश्चात् इस पर धनदा रतिप्रिया यक्षिणी यंत्र,    या  अप्सरा यक्षिणी मण्डल यंत्र स्थापित कर चन्दन लेपन करें और सुगंधित पुष्प अर्पित कर संकल्प विनियोग संपन्न करें |


   विनियोग में अपने हाँथ में जल लेकर निम्न विनियोग मन्त्र पढ़ कर जल भूमी पर छोड़ दें –

 ॐ अस्य श्रीधन्देश्वरीमंत्रस्य कुबेर ऋषिः पंक्तिश्छंदः श्रीधन्देश्वरी देवता धं बीजं स्वाहा शक्तिः श्रीं कीलकं श्रीधन्देश्वरीप्रसादसिद्धये समस्तदारिद्रयनाशाय श्रीधन्देश्वरीमन्त्रजपे विनियोगः ||


प्राण प्रतिष्ठा प्रयोग –

प्राण प्रतिष्ठा के द्वारा जीव स्थापना की जाती है व साक्षात यक्षिणी का आवाहन किया जाता है, इसमें अपने चारो ओर जल छिड़के तथा निम्न मन्त्रों द्वारा आवाहन करें-

  ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हं सः सोऽहं श्रीधन्देश्वरीयंत्रस्य प्राणा इह प्राणाः |     
  ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हं सः सोऽहं श्रीधन्देश्वरीयंत्रस्य जीव इह स्थितः |

  ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हं सः सोऽहं श्रीधन्देश्वरीयंत्रस्य सर्वेंद्रीयाणि इह स्थितानि |

  ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हं सः सोऽहं श्रीधन्देश्वरीयंत्रस्य वाङमनस्त्वक्चक्षु श्रोत्रजिव्हाघ्रापाणिपादपायूप्स्थानी इहैवागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा ||

                श्रीधान्देश्वरी इहागच्छेहतिष्ठ||

    यह प्राण प्रतिष्ठा प्रयोग साधना का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है, यह अपनी साधना में प्राण प्रतिष्ठा में प्राण तत्व भरने कि प्रक्रिया है |

    अब धनदा यक्षिणी लक्ष्मी के ३६ स्वरूपों की पूजा कर उनका आवाहन किया जाता है, प्रत्येक स्वरुप का आवाहान कर ‘ एक तांत्रोक्त लक्ष्मी फल ‘ (लघु नारियल) “जो कि किसी भी पूजा सामग्री की दूकान में प्राप्त हो जाता है”  स्थापित करें, धनदा यक्षिणी के ३६ स्वरूपों पर चन्दन चढ़ाएं,(यंत्र पर हि चन्दन का तिलक करें), प्रत्येक तांत्रोक्त लक्ष्मी फल के आगे एक-एक दीपक जलाएं तथा पुष्प कि एक-एक पंखुड़ी रखें, आवाहन क्रम निम्न प्रकार से है-

ॐ धनदायै नम :
ॐ दुर्गायै नम :
ॐ चंचलायै नम :
ॐ मंजुघोषायै नम :
ॐ पद्मायै नम :
ॐ महामायै नम :
ॐ सुन्दर्यै नम  :
ॐ रुद्राण्यै नम :
ॐ वज्रायै नम :
ॐ कमलायै नम :
ॐ अभयदायै नम :
ॐ उमायै नम :
ॐ कामदायै नम :
ॐ महाबलायै नम :
ॐ कामप्रियायै नम :
ॐ चपलायै नम :
ॐ सर्वशक्तयै नम :
ॐ सर्वेश्वर्यै नम :
ॐ मंगलायै नम :
ॐ त्रिनेत्रायै नम :
ॐ त्वरितायै नम :
ॐ सुगन्धायै नम :
ॐ वाराह्यै नम :
ॐ ॐ कराल भैरव्यै नम :
ॐ सरस्वत्यै नम :
ॐ चामर्यै नम :
ॐ हरिप्रियायै नम :
ॐ वरदायै नम :
ॐ सुपट्टिकायै नम :
ॐ महालक्ष्म्यै नम :
ॐ क्षुधायै नम :
ॐ धनुर्धरायै नम :
ॐ गुह्याश्वर्ये नम :
ॐ लीलायै नम :
ॐ भ्रामर्यै नम :
ॐ माहेश्वर्यै नम :

  इस प्रकार पूजन कर साधक यक्षिणी का ध्यान करे, तथा यक्षिणी यन्त्र व चित्र के सामने खीर का भोग लगाये, इसके अतिरिक्त घी, मधु तथा शक्कर का भोग लगायें |
 कुछ ग्रंथों में यह भी वर्णित है कि साधक धनदा रतिप्रिया यंत्र के नीचे अपना फोटो अथवा अपना नाम अष्टगंध से कागज़ पर लिख कर रख दे |

  अब साधक धनदा रतिप्रिया यंत्र का वीर मुद्रा में बैठ कर मन्त्र जप तांत्रोक्त यक्षिणी माला से प्रारम्भ करे व मंत्रजाप सम्पूर्ण होने के पश्चात हि आसन से उठे |

मन्त्र-
|| ॐ रं श्रीं ह्रीं धं धनदे रतिप्रिये स्वाहा ||

  यह धनदा साधना का मूल मन्त्र है, १०० माला मन्त्र जप करना है, यदि आसन सिद्धा नहीं है अर्थात एक ही दिन में साधना यदि संपन्न न कर सकें तो ,
इस साधना का ११ दिन का संकल्प लें और इसे प्रतिदिन १००८ मन्त्रों का जप यानी ११ माला जप करते हुए ११ दिन में साधना संपन्न करें, इस तरह सम्पूर्ण प्रयोग कुल ११ दिन का हो जायेगा |  तो साधना करने का दृण संकल्प लें और----J


निखिल प्रणाम


***रजनी निखिल***

MONDAY, DECEMBER 17, 2012

AAKASMIK DHAN PRAPTI - SWARNA MALA PRAYOG


 
No one can deny the importance of wealth in life. In today’s era, basis of success in any field is wealth. It continuously works in person’s life for his spiritual and materialistic progress. In order to achieve competence in field of knowledge and various other fields, person does physical and mental hard-work and spends his precious time and gathers experience from various activities. All this he does for a happy future where he can get complete happiness, complete pleasure and can become ideal person in society and earn respect. But is wealth not in root of all of these endeavours? Necessity of wealth has to be accepted indisputably in today’s era. May be it is attaining prosperity, gaining pleasure through use of various things or attaining highest education. Money is prime basis of all of them. But sometimes there are some unfortunate people on which god do not show grace. In such circumstances, people have to sacrifice their dreams and have to be deprived of many types of pleasures. In such burdensome moments of life, his determination power gradually diminishes and in future also, he accepts this condition and his burden keeps on increasing. This is not pleasing condition in any respect, especially when we have sadhna force. Blessings of our ancestors are spread all round us in form of knowledge, in form of sadhna science.
There are so many special prayogs in tantra sadhna for providing assistance to sadhak for attainment of wealth by which new sources of wealth open for sadhak , opportunities are created for getting wealth whose inflow has stopped due to some reason. He can get money by different ways. And what can be more better if all this he gets instantaneously . One such prayog out of them for attainment of instantaneous wealth is Swarna Mala Prayog.In this prayog , this dev yoni is compelled to provide assistance to sadhak under the intense attraction of Parad , that too joyfully , not under any compulsion.Because where there is combination of Tantric procedure with consciousness of pure Parad , it is natural for Dev Yoni to get attracted towards sadhak.Prayog presented here is one such abstruse procedure which if done with dedication can provide above-said benefits to sadhak and his financial problems are resolved very quickly.
Sadhak can do this prayog on any Poornima night.
Sadhak should do this prayog under Banyan tree.
Sadhak should talk bath after 10:00 P.M in the night, wear decorative dress, sit under Banyan tree on yellow aasan .Sadhak should sit facing the North direction.
Sadhak should use incensed stick in this prayog. Sadhak should apply Itr (fragrance) on his clothes too. Sadhak can keep Bhog on any sweet with him. Besides it, sadhak can also offer edible Paan (containing catechu, betel-nut and cardamom).
First of all, sadhak should do Guru Poojan and chant Guru Mantra. After it, sadhak should establishYakshini Gutika made from pure Parad in front of him in any container and do its poojan. In absence of Yakshini Gutika, sadhak can use Saundarya Kankan. After poojan sadhak should pray to Devi Swarna Mala for her cooperation in attainment of instantaneous wealth. After it, sadhak should chant Mrityunjay Mantra as per his capacity. After it, Sadhak should chant 21 rounds of below mantra by sfatik rosary or rudraksh rosary.

om shreem shreem swarnamaale dravyasiddhim hoom hoom thah thah

After completion of mantra Jap, sadhak should pray to Swarna Mala Yakshini and accept sweet/Paan himself. Sadhak should not immerse rosary. Sadhak can use it in future for this prayog.

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जीवन में धन की आवश्यकता को कौन नकार सकता है, आज के युग में किसी भी क्षेत्र की सफलता का आधार धन ही तो है. एक व्यक्ति के जीवन में वह आध्यात्मिक तथा भौतिक उन्नति के लिए ही तो हमेशा कार्य करता रहता है. पढ़ाई तथा विविध कार्यमें निपूर्ण बनने में व्यक्ति शारीरिक तथा मानसिक श्रम कर जीवन के बहुमूल्य दिन और बहुमूल्य समय को व्यय करता है, या फिर विविध कार्यों से अनुभव एकत्रित करता है. और यह सब वह करता है एक सुखी भविष्य के लिए जिसमे उसे पूर्ण सुख की प्राप्ति हो सके, पूर्ण भोग की प्राप्ति हो सके तथा समाज में एक आदर्श व्यक्ति बन पूर्ण मान सन्मान को अर्जित कर सके. लेकिन इन सब के मूल में क्या धन नहीं है? धन की अनिवार्यता को निर्विवादित रूप से आज के युग में स्वीकार करना ही पड़ता है. चाहे वह समृद्धि हो, विविध वास्तुओ का उपभोग हो या फिर उच्चतम शिक्षा को अर्जित करना हो. इन सब का आधार धन ही तो है. लेकिन कई बार भाग्य से वंचित व्यक्ति के ऊपर कुदरत अपनी महेरबानी नहीं दिखाती. और एसी स्थिति में व्यक्तिको अपने कई कई स्वप्नों का त्याग करना पड़ता है तथा कई प्रकार के सुख भोग से वंचित रहना पड़ता है. जीवन के इन्ही बोजिल क्षणों में उसका आत्मबल धीरे धीरे क्षीण होने लगता है तथा भविष्य में भी वह अपनी स्थिति को स्वीकार कर जीवन को इसी प्रकार बोज पूर्ण रूप से आगे बढाने लगता है. यह किसी भी प्रकार से श्रेयकर स्थिति तो नहीं है. खास कर जब हमारे पास साधनाओ का बल हो, हमारे पूर्वजो का आशीर्वाद उनके ज्ञान के रूप में हमारे चारों तरफ साधना विज्ञान बन कर बिखरा हुआ हो.
तंत्र साधनाओ में एक से एक विलक्षण प्रयोग धन की प्राप्ति में साधक को सहायता प्रदान करने के लिए है जिसके माध्यम से साधक के सामने नए नए धन के स्त्रोत खुलने लगते है, रुके हुवे धन को प्राप्त करने का अवसर प्राप्त होता है तथा नाना प्रकार से उसको धन की प्राप्ति हो सकती है, और फिर अगर यह सब अचानक या आकस्मिक रूप से हो तो उसकी तो बात ही क्या. ऐसे ही दुर्लभ आकस्मिक धन प्राप्ति के प्रयोग में से एक प्रयोग है स्वर्णमाला प्रयोग. जिसमे पारद के संयोग से तीव्र आकर्षण के वशीभूत हो कर इस देव योनी को साधक की सहायता करने के लिए बाध्य होना पड़ता है, लेकिन विवशता पूर्ण नहीं, प्रशन्नता पूर्वक ही तो. क्यों की जहां तांत्रिक प्रक्रिया के साथ साथ  विशुद्ध पारद के चैतन्यता का संयोग होता है, वहाँ तो साधक की तरफ देव योनी का भी आकर्षित होना स्वाभाविक ही है. प्रस्तुत प्रयोग ऐसा ही एक गुढ़ विधान है, जिसे पूर्ण मनोयोग के साथ सम्प्पन करने पर साधक को उपरोक्त लाभों की प्राप्ति होती है तथा शीघ्र ही धन सबंधी समस्याओ का निराकरण प्राप्त होता है.
यह प्रयोग साधक किसी भी पूर्णिमा की रात्री में कर सकता है.
साधक यह प्रयोग किसी वटवृक्ष के निचे करे
साधक रात्री में १० बजे के बाद स्नान आदि से निवृत हो कर किसी भी सुसज्जित वस्त्रों को धारण करे तथा वटवृक्ष के निचे पीले आसन पर बैठ जाए. साधक को उत्तर दिशा की तरफ मुख कर बैठना चाहिए.
साधक को इस प्रयोग में सुगन्धित अगरबत्ती लगानी चाहिए, अपने वस्त्रों पर भी इत्र लगाना चाहिए. साधक को कोई मिठाई का भोग अपने पास रख सकता है. इसके अलावा साधक को खाने वाला पान जिसमे कत्था सुपारी तथा इलाइची डाली हुई हो उसको भी समर्पित कर सकता है.
सर्व प्रथम साधक गुरुपूजन तथा गुरुमन्त्र का जाप करे. उसके बाद साधक विशुद्ध पारद से निर्मित यक्षिणी गुटिका को अपने सामने किसी पात्र में स्थापित करे तथा उसका पूजन करे. यक्षिणी गुटिका की अनुपलब्धि में साधक सौंदर्य कंकणपर भी यह प्रयोग कर सकता है. पूजन के बाद साधक देवी स्वर्णमाला को वंदन करे तथा आकस्मिक धन प्राप्ति के लिए सहाय करने के लिए विनंती करे. इसके बाद साधक यथा संभव मृत्युंजय मन्त्र का जाप करे.
इसके बाद साधक स्फटिकमाला से या रुद्राक्ष माला से निम्न मन्त्र की २१ माला मन्त्र जाप करे.

ॐ श्रीं श्रीं स्वर्णमाले द्रव्यसिद्धिं हूं हूं ठः ठः

 (om shreem shreem swarnamaale dravyasiddhim hoom hoom thah thah)

मन्त्र जाप पूर्ण होने पर साधक स्वर्णमाला यक्षिणी को वंदन करे तथा मिठाई/पान स्वयं ग्रहण करे. माला का विसर्जन साधक को नहीं करना है साधक इस माला का भविष्य में भी इस प्रयोग हेतु उपयोग कर सकता है.

****NPRU****

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