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Sunday 29 September 2019

Baglamukhi nalkheda

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देवी के इस चमत्कारी दरबार में स्मरण मात्र से मिलती दैवीय शक्तियां

देशभर में देवी दुर्गा व उनके स्वरुपों के बहुत से चमत्कारी मंदिर हैं। उन्हीं चमत्कारी मंदिरों में एक ऐसा मंदिर भी है जिसके दरबार में जाते ही सिर्फ देवी का स्मरण करने से ही आपको आश्चर्यजनक शक्तियों का आभास होने लगता है। यह मंदिर मां के शक्तिपीठों में से एक है। मध्यप्रदेश के नलखेड़ा में स्थित यह चमत्कारी मंदिर मां बगलामुखी शक्तिपीठ के नाम से प्रसिद्ध है। यहां हमेशा ही भक्तों का तांता लगा रहता हैं, लेकिन नवरात्रि के समय मां का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए बहुत भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। वैसे तो भारत में मां बगलामुखी के सिर्फ तीन ही प्रमुख मंदिर माने गए हैं, पहला मंदिर मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित हैं वहीं दूसरा मध्यप्रदेश के नलखेड़ा में और तीसरा मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में है।
ma baglamukhi
नलखेड़ा में नदी के किनारे स्थित शक्तिपीठ में मां बगलामुखी की स्वयंभू प्रतिमा है। मंदिर श्मशान क्षेत्र में बना और इस जगह मंदिर के होने के कारण यहां लोग बहुत ही कम आते हैं। लेकिन यहां तांत्रिक अनुष्ठानों का अधिक महत्व माना जाता है क्योंकि मां बगलामुखी तंत्र की देवी कहलाती हैं। तंत्र क्रिया के लिए यह मंदिर इतना प्रसिद्ध इसलिए है क्योंकि यहां की मूर्ति जाग्रत हैं। इस मंदिर की स्थापना स्वयं महाराज युधिष्ठिर ने महाभारत युद्ध के 12वें दिन की थी। मंदिर परिसर में बिल्वपत्र, चंपा, सफेद आंकड़ा, आंवला, नीम एवं पीपल के वृक्ष एक साथ मौजूद हैं।
मंदिर प्रांगण में स्थित है हनुमान मंदिर और गोपाल मंदिर
मंदिर परिसर में 16 खंभों वाला सभामंडप है, जो 252 साल पहले संवत 1816 में पंडित ईबुजी दक्षिणी कारीगर श्री तुलाराम ने बनवाया था। इसी सभा मंडप मे मां की और मुख करता एक कछुआ है, जो यह सिद्ध करता है कि पुराने समय में मां को बलि चढ़ाई जाती थी। मंदिर के ठीक सम्मुख लगभग 80 फीट ऊंची दीपमालिका है। कहा जाता है कि इसका निर्माण महाराजा विक्रमादित्य ने करवाया था। मंदिर प्रांगण मे ही एक दक्षिणमुखी हनुमान का मंदिर, एक उत्तरमुखी गोपाल मंदिर तथा पूर्वमुखी भैरवजी का मंदिर भी है। मुख्य द्वार सिंहमुखी भी अपने आप में अद्वितीय है।

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मां को चड़ाई जाती है पीली चीज़ें
बगलामुखी की यह प्रतिमा पीताम्बर स्वरुप की है, पीत यानि पिला। इसलिए यहां देवी मां को पीले रंग की सामग्री चढ़ाई जाती है - पिला कपडा, पिली चूनरी, पिला प्रसाद, पीले फूल आदि। इस मंदिर में कई चमत्कार हुए हैं वहीं इस मंदिर की पिछली दीवार पर पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए स्वस्तिक बनाने का प्रचलन है। यहां मनोकामनाओं की पूर्ति के अलावा दुखों का निवारण भी होता है। नवरात्र के दौरान आने वाले हजारों श्रद्घालुओं के लिए निशुल्क फरियाली प्रसाद का वितरण सालों से अनवरत जारी है। मंदिर परिसर में संतों और पुजारियों के द्वारा धार्मिक अनुष्ठानों का सिलसिला लगातार चलता रहता है।


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