माँ बगलामुखी माता मंदिर नलखेडा baglamukhi temple nalkheda
सर्वसिद्ध माँ बगलामुखी
जिला आगर मालवा म.प्र. स्थित नलखेड़ा नगर का धार्मिक एवं तांत्रिक द्रिष्टि से महत्त्व है . तांत्रिक साधना के लिए उज्जैन के बाद नलखेड़ा का नाम आता है . कहा जाता है की जिस नगर में माँ बगलामुखी विराजित हो , उस नगर , को संकट देख भी नहीं पाता |
बताते हैं की यहाँ स्वम्भू माँ बगलामुखी की मूर्ति महाभारत काल की है . पुजारी के दादा परदादा ही पूजन करते चले आ रहे हैं | यहाँ श्री पांडव युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण के निर्देशन पर साधना कर कौरवों पर विजय प्राप्त की थी | यह स्थान आज भी चमत्कारों में अपना स्थान बनाये हुए है | देश विदेश से कई साधू- संत आदि आकर यहाँ तंत्र –मन्त्र साधना करते हैं , माँ बगलामुखी की साधना करते हैं | माँ बगलामुखी की साधना जितनी सरल है तो उतनी जटिल भी है . माँ बगलामुखी वह शक्ति है , जो रोग शत्रुकृत अभिचार तथा समस्त दुखो एवं पापो का नाश करती है |
इस मंदिर में त्रिशक्ति माँ विराजमान है , ऐसी मान्यता है की मध्य में माँ बगलामुखी दायें माँ लक्ष्मी तथा बायें माँ सरस्वती हैं . त्रिशक्ति माँ का मंदिर भारत वर्ष में कहीं नहीं है . मंदिर में बेलपत्र , चंपा , सफ़ेद आकड़े ,आंवले तथा नीम एवं पीपल ( एक साथ ) पेड़ स्थित है जो माँ बगलामुखी के साक्षात् होने का प्रमाण है | मंदिर के पीछे नदी ( लखुन्दर पुरातन नाम लक्ष्मणा ) के किनारे कई समाधियाँ ( संत मुनिओं की ) जीर्ण अवस्था में स्थित है , जो इस मंदिर में संत मुनिओं का रहने का प्रमाण है |
मंदिर के बाहर सोलह खम्भों वाला एक सभामंडप भी है जो आज से 252 वर्षों से पूर्व संवत 1816 में पंडित ईबुजी दक्षिणी कारीगर श्रीतुलाराम ने बनवाया था | इसी सभामंड़प में माँ की ओर मुख करता हुआ कछुआ बना हुआ है , जो यह सिद्ध करता है की पुराने समय में माँ को बलि चढ़ाई जाती थी | मंदिर के ठीक सम्मुख लगभग 80 फीट ऊँची एक दीप मालिका बनी हुई है | यह कहा जाता है की मंदिरों में दीप मालिकाओं का निर्माण राजा विक्रमादित्य द्वारा ही किया गया था | मंदिर के प्रांगन में ही एक दक्षिणमुखी हनुमान का मंदिर एक उत्तरमुखी गोपाल मंदिर तथा पूर्वर्मुखी भैरवजी का मंदिर भी स्थित है , मंदिर का मुख्या द्वार सिंह्मुखी है , जिसका निर्माण 18 वर्ष पूर्व कराया गया था | माँ की कृपा से सिंहद्वार भी अपने आप में अद्वितिए बना है , श्रद्धालु यहाँ तक कहते हैं की माँ के प्रतिमा के समक्ष खड़े होकर जो माँगा है , वह हमें मिला है हम माँ के द्वार से कभी खाली हाथ नहीं लौटे हैं |
माँ बगलामुखी का स्वरुप
माँ बगलामुखी में भगवान अर्धनारीश्वर महाशम्भो के अलौकिक रूप का दर्शन मिलता है | भाल पर तीसरा नेत्र व मणिजडित मुकुट पर वक्र चन्द्र इस बात की पुष्टि करते हैं अतः बगलामुखी को महारुद्र ( मृत्युंजय शिव ) की मूल शक्ति के रूप में माना जाता है | वैदिक शब्द बल्गा है , उसका विकृत आगमोक्त शब्द “बगला” अतः माँ बगला को बगलामुखी कहा जाता है |
भगवती बगला “अष्टमी-विद्या” हैं | इनकी आराधना श्री काली , तारा तथा षोडशी का ही पूर्व क्रम है | “सिद्ध-विद्या-त्रयी “ में इन्हें पहला स्थान प्राप्त है | माँ बगलामुखी को रौद्र रूपिणी स्तंभिनी , भ्रामरी , क्षोभिनी, मोहिनी , संहारनी , द्राविनी , ज्रिम्भिनी , पीताम्बरा देवी , त्रिनेत्री , विष्णुवनिता , विष्णु-शंकर भामिनी , रुद्रमुर्ती , रौद्राणी , नक्षत्ररुपा , नागेश्वरी , सौभाग्य-दायनी , सत्रु-संहार कारिणी , सिद्ध-रूपिणी , महारावन-हारिणी , परमेश्वरी , परतंत्र-विनाशनी , पीत-वसना , पीत-पुष्प-प्रिया , पीतहारा , पीत-स्वरूपिणी , ब्रह्मरूपा आदि भी कहा जाता है |
माँ की उत्पत्ति के विषय में “प्राण-तोषिनी” में शंकरजी ने पार्वती को इस प्रकार बताया है –
एक बार सतयुग में विश्व को विनिष्ट करने वाला तूफ़ान उत्पन्न हुआ जिसे देख कर जगत की रक्षा में परायण श्री विष्णु जी को अत्यधिक चिंता हुई | तब उन्होंने सौराष्ट्र देश में हरिद्रा सरोवर के निकट पहुचकर तपस्या आरम्भ की | उस समय मंगलवार चतुर्दशी को अर्ध-रात्रि के समाया माता बगला का अविर्भाव हुआ | त्रैलोक्य स्तंभिनी महा विद्या भगवती बगला ने प्रसन्न होकर श्री विष्णु को इच्छित वर दिया , जिसके कारण विश्व विनाश से बच गया | भगवती बगला को वैष्णव तेज युक्त ब्रह्मास्त्र – विद्या एवं त्रिशक्ति भी कहा गया है | ये वीर-रात्रि है |
कालिका पुराण में लिखा है की सभी दसमहाविद्याएं सिद्ध विद्या एवं प्रसिद्ध विद्या है इनकी सिद्धि के लिए न तो नक्षत्र का विचार होता है और न ही कलादिक शुद्धि करनी पड़ती है और ना ही मंत्रादि शोधन की आवश्यकता है | महादेवी बगलामुखी को पीत-रंग ( पीला ) अत्यंत प्रिय है यही कारण है की बगलामुखी पूजा या अनुष्ठान में सभी वस्तु पीली होनी चाहिए |
बगला सिद्धि विद्या में निम्नगुण हैं –
यह विद्या प्रा
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