कुबेर चालीसा - Kuber chalisa
कुबेर चालीसा
दोहा
जैसे अटल हिमालय और जैसे अडिग सुमेर ।
ऐसे ही स्वर्ग द्वार पे, अविचल खडे कुबेर ।
विघ्न हरण मंगल करण, सुनो शरणागत की टेर ।
भक्त हेतु वितरण करो, धन माया के ढेर ॥
पाठ
जै जै जै श्री कुबेर भंडारी ।
धन माया के तुम अधिकारी ।।
तप तेज पुंज निर्भय भय हारी ।
पवन बेग सम तनु बलधारी ।।
स्वर्ग द्वार की करे पहरे दारी ।
सेवक इन्द्र देव के आज्ञा कारी ।।
यक्ष यक्षणी की है सेना भारी ।
सेनापती बने युद्ध में धनुधारी ।।
महा योद्धा बन शस्त्र धारै ।
युद्ध करै शत्रु को मारै ।।
सदा विजयी कभी ना हारै ।
भगत जनों के संकट टारै ।।
प्रपितामह हैं स्वयं विधाता ।
पुलिस्त वंश के जन्म विख्याता ।।
विश्रवा पिता इडापिडा जी माता ।
विभिषण भगत आपके भ्राता ।।
शिव चरणों में जब ध्यान लगाया ।
घोर तपस्या करी तन को सुखाया ।।
शिव वरदान मिले देवत्व पाया ।
अम्रूत पान करी अमर हुई काया ।।
धर्म ध्वजा सदा लिए हाथ में ।
देवी देवता सब फिरैं साख में ।।
पीताम्बर वस्त्र पहरे गात में ।
बल शक्ति पुरी यक्ष जात में ।।
स्वर्ण सिंघासन आप विराजैं ।
त्रशुल गदा हाथ में साजैं ।।
शंख म्रुदंग नगारे बाजैं ।
गंधर्व राग मधुर स्वर गाजैं ।।
चौंसठ योगनी मंगल गावैं ।
रिद्धी सिद्धी नित भोग लगावैं ।।
दास दासनी सिर छत्र फिरावैं ।
यक्ष यक्षणी मिल चंवर ढुलावैं ।।
रिषियों में जैसे परशुराम बली हैं ।
देवन्ह में जैसे हनुमान बली हैं ।।
पुरुषों में जैसे भीम बली हैं ।
यक्षों में ऐसे ही कुबेर बली हैं ।।
भगतों में जैसे प्रल्हाद बडे हैं ।
पक्षियो में जैसे गरुड बडे हैं ।।
नागो मे जैसे शेष बडे हैं ।
वैसे ही भगत कुबेर बडे हैं ।।
कांधे धनुष हा में भाला ।
गल फुलो की पहरी माला ।।
स्वर्ण मुकुट अरु देह विशाला ।
दुर दुर तक होए उजाला ।।
कुबेर देव को जो मन में धारे ।
सदा विजय हो कभी ना हारे ।।
बिगडे काम बन जाए सारे ।
अन्न धन के रहे भरे भन्डारे ।।
कुबेर गरीब को आप उभारैं ।
कुबेर कर्ज को शीघ्र उतारैं ।।
कुबेर भगत के संकट टारैं ।
कुबेर शत्रु को क्षण में मारैं ।।
शीघ्र धनी जो होना चाहए ।
क्युं नही यक्ष कुबेर मनाए ।।
यह पाठ जो पढे पढाए ।
दिन दुगना व्यापार बढाए ।।
भूत प्रेत को कुबेर भगावैं ।
अडे काम को कुबेर बनावैं ।।
रोग शोक को कुबेर नशावैं ।
कलंक कोढ को कुबेर हटावैं ।।
कुबेर चढे को और चढादे ।
कुबेर गिरे को पुनः उठादे ।।
कुबेर भाग्य को तुरन्त जगादे ।
कुबेर भुले को राह बतादे ।।
प्यासे की प्यास कुबेर बुझादे ।
भुखे की भुख कुबेर मिटादे ।।
रोगी का रोग कुबेर घटादे ।
दुखिया क दुख कुबेर छुटादे ।।
बांझ की गोद कुबेर भरादे ।
कारोबार को कुबेर बढादे ।।
कारागार से कुबेर छुडादे ।
चोर ठगों से कुबेर बचादे ।।
कोर्ट केस में कुबेर जितावैं ।
जो कुबेर को मन में ध्यावै ।।
चुनाव में जीत कुबेर करावै ।
मंत्री पद पर कुबेर बिठावैं ।।
पाठ करे जो नित मन लाई ।
उसकी कला हो सदा सवाई ।।
जिसपे प्रसन्न कुबेर की माई ।
उसका जीवन चले सुखदाई ।।
जो कुबेर का पाठ करावै ।
उसका बेडा पार लगावै ।।
उजडे घर को पुनः बसावै ।
शत्रु को भी मित्र बनावै ।।
सहस्त्र पुस्तक जो दान कराई ।
सब सुख भोग पदार्थ पाई ।।
प्राण त्याग कर स्वर्ग में जाई ।
क्रुष्णदत्त कुबेर कीर्ती गाई ।।
दोहा
शिव भक्तों में अग्रणी, श्री यक्षराज कुबेर ।
हिरदे मे ज्ञान प्रकाश भर, करदो दूर अंधेर ।।
करदो दूर अंधेर अब, जरा करो ना देर ।
शरण पडा हुं आपकी, दया की द्रुष्टी फेर ।।
हरी ॐ दया की द्रुष्टी फेर
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विष्णुजी के 108 नाम - 108 Names of Lord Vishnu
भगवान श्री विष्णु जी को त्रिदेवों में से एक माना जाता है। मान्यता है कि जगत का पालन भगवान श्री विष्णु जी ही करते हैं। विष्णु जी देवी लक्ष्मी (विष्णुजी की पत्नी) के साथ क्षीरसागर में वास करते हैं। हिन्दू धर्म- शास्त्रों में भगवान विष्णु को श्री हरि, नारायण, नर-नारायण आदि कई नामों से जाना जाता है। विष्णुजी के कुछ विशेष 108 नाम कुछ इस प्रकार हैं-:
विष्णुजी के 108 नाम
No नाम नाममंत्र नामकाअर्थ 1. विष्णु ॐविष्णवेनमः। हरजगहविराजमानरहनेवाले 2.
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शांति पाठ मंत्र (Shanti Path Mantra)
शांति पाठ मंत्र
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:, पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:। वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:, सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥ ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥
भवार्थ— शान्ति: कीजिये, प्रभु त्रिभुवन में, जल में, थल में और गगन में
अन्तरिक्ष में, अग्नि पवन में, औषधि, वनस्पति, वन, उपवन में
सकल विश्व में अवचेतन में!
शान्ति राष्ट्र-निर्माण सृजन में, नगर, ग्राम में और भवन में
जीवमात्र के तन में, मन में और जगत के हो कण कण में
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥
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नरसिंह स्तुति - Narasimha Stuti
।। नरसिंह स्तुति ।।
उदयरवि सहस्रद्योतितं रूक्षवीक्षं प्रळय जलधिनादं कल्पकृद्वह्नि वक्त्रम् | सुरपतिरिपु वक्षश्छेद रक्तोक्षिताङ्गं प्रणतभयहरं तं नारसिंहं नमामि ||
प्रळयरवि कराळाकार रुक्चक्रवालं विरळय दुरुरोची रोचिताशांतराल | प्रतिभयतम कोपात्त्युत्कटोच्चाट्टहासिन् दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||१||
सरस रभसपादा पातभाराभिराव प्रचकितचल सप्तद्वन्द्व लोकस्तुतस्त्त्वम् | रिपुरुधिर निषेकेणैव शोणाङ्घ्रिशालिन् दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||२||
तव घनघनघोषो घोरमाघ्राय जङ्घा परिघ मलघु मूरु व्याजतेजो गिरिञ्च | घनविघटतमागाद्दैत्य जङ्घालसङ्घो दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||३||
कटकि कटकराजद्धाट्ट काग्र्यस्थलाभा प्रकट पट तटित्ते सत्कटिस्थातिपट्वी | कटुक कटुक दुष्टाटोप दृष्टिप्रमुष्टौ दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||४||
प्रखर नखर वज्रोत्खात रोक्षारिवक्षः शिखरि शिखर रक्त्यराक्तसंदोह देह | सुवलिभ शुभ कुक्षे भद्र गंभीरनाभे दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||५||
स्फुरयति तव साक्षात्सैव नक्षत्रमाला क्षपित दितिज वक्षो व्याप्तनक्षत्रमागर्म् | अरिदरधर जान्वासक्त हस्तद्वयाहो दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||६||
कटुविकट सटौघोद्घ…
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