गुरु जी की बाणी शिव ही गुरु शिव के खेल गुरु जाप मैं है शिव का मेल गुरु बाणी जग से न्यारी गुरु की बाणी जग तारणी गुरु है शिव रूप तू जाप का तू तप कर कहत शिव अलख आदेश सनी शर्मा !! SUNNY SHARMA
Showing posts with label कार्य-सिद्धि हेतु गणेश शाबर मन्त्र. Show all posts
Thursday, 18 January 2018
मनोकामना पुर्ति और सर्वजन आकर्षण हेतु गणपति साधना] :-
सामग्री :-
पारद निर्मित मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त विजय गणपति की मुर्ति, जलपात्र, लाल चन्दन, कनेर के पुष्प, अगरबत्ती, शुद्ध गाय का घ्रत का दीपक,। माला:- लाल मूंगे की । समय:- ब्रम्ह मुहरत । दिन:- बुधवार । आसन:- लाल रंग का उनी । वस्त्र:- लाल । दिशा:- पूर्व दिशा । जपसंख्या:- इक्कीस सजार [21000] अवधि:- इक्कीस दिन [21 दिन]
मंत्र:- ओम वर वरदाय विजय गणपतये नम: ।।
प्रयोग:- सर्वजन आकर्णण हेतु यह प्रभावी साधना है । सबसे तहले पारद गणपति को स्नान कराकर उस पर केसर लगावे, तथा उसे रक्त चन्दन से तिलक करे , सामने गुड़ का भोग लगा के इक्कीस 21 पुष्पो से उसका पुजन करे , पुष्प कनेर के हो तो ज्यादा उचित है, पर यदि कनेर के पुष्प उपलब्ध ना हो तो किसी लाल रंग के पुष्प का प्रायोग करे । इसके बाद मंत्र जप प्रारम्भ कर दे और जब इक्कीस दिनो 21000 मंत्र जप पुर्ण होजाय तो कुंवारी कन्याओ को भोजन करा कर कुछ भेँट दे , एसा करने पर कुछ ही दिनो मेँ आपकी जो कामना होगी वह पुर्ण हो जायेगी।
Thursday, 4 January 2018
कार्य-सिद्धि हेतु गणेश शाबर मन्त्र
कार्य-सिद्धि हेतु गणेश शाबर मन्त्र
“ॐ गनपत वीर, भूखे मसान, जो फल माँगूँ, सो फल आन। गनपत देखे, गनपत के छत्र से बादशाह डरे। राजा के मुख से प्रजा डरे, हाथा चढ़े सिन्दूर। औलिया गौरी का पूत गनेश, गुग्गुल की धरुँ ढेरी, रिद्धि-सिद्धि गनपत धनेरी। जय गिरनार-पति। ॐ नमो स्वाहा।”
विधि-
सामग्रीः- धूप या गुग्गुल, दीपक, घी, सिन्दूर, बेसन का लड्डू। दिनः- बुधवार, गुरुवार या शनिवार। निर्दिष्ट वारों में यदि ग्रहण, पर्व, पुष्य नक्षत्र, सर्वार्थ-सिद्धि योग हो तो उत्तम। समयः- रात्रि १० बजे। जप संख्या-१२५। अवधिः- ४० दिन।
किसी एकान्त स्थान में या देवालय में, जहाँ लोगों का आवागमन कम हो, भगवान् गणेश की षोडशोपचार से पूजा करे। घी का दीपक जलाकर, अपने सामने, एक फुट की ऊँचाई पर रखे। सिन्दूर और लड्डू के प्रसाद का भोग लगाए और प्रतिदिन १२५ बार उक्त मन्त्र का जप करें। प्रतिदिन के प्रसाद को बच्चों में बाँट दे। चालीसवें दिन सवा सेर लड्डू के प्रसाद का भोग लगाए और मन्त्र का जप समाप्त होने पर तीन बालकों को भोजन कराकर उन्हें कुछ द्रव्य-दक्षिणा में दे। सिन्दूर को एक डिब्बी में सुरक्षित रखे। एक सप्ताह तक इस सिन्दूर को न छूए। उसके बाद जब कभी कोई कार्य या समस्या आ पड़े, तो सिन्दूर को सात बार उक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित कर अपने माथे पर टीका लगाए। कार्य सफल होगा।
“ॐ गनपत वीर, भूखे मसान, जो फल माँगूँ, सो फल आन। गनपत देखे, गनपत के छत्र से बादशाह डरे। राजा के मुख से प्रजा डरे, हाथा चढ़े सिन्दूर। औलिया गौरी का पूत गनेश, गुग्गुल की धरुँ ढेरी, रिद्धि-सिद्धि गनपत धनेरी। जय गिरनार-पति। ॐ नमो स्वाहा।”
विधि-
सामग्रीः- धूप या गुग्गुल, दीपक, घी, सिन्दूर, बेसन का लड्डू। दिनः- बुधवार, गुरुवार या शनिवार। निर्दिष्ट वारों में यदि ग्रहण, पर्व, पुष्य नक्षत्र, सर्वार्थ-सिद्धि योग हो तो उत्तम। समयः- रात्रि १० बजे। जप संख्या-१२५। अवधिः- ४० दिन।
किसी एकान्त स्थान में या देवालय में, जहाँ लोगों का आवागमन कम हो, भगवान् गणेश की षोडशोपचार से पूजा करे। घी का दीपक जलाकर, अपने सामने, एक फुट की ऊँचाई पर रखे। सिन्दूर और लड्डू के प्रसाद का भोग लगाए और प्रतिदिन १२५ बार उक्त मन्त्र का जप करें। प्रतिदिन के प्रसाद को बच्चों में बाँट दे। चालीसवें दिन सवा सेर लड्डू के प्रसाद का भोग लगाए और मन्त्र का जप समाप्त होने पर तीन बालकों को भोजन कराकर उन्हें कुछ द्रव्य-दक्षिणा में दे। सिन्दूर को एक डिब्बी में सुरक्षित रखे। एक सप्ताह तक इस सिन्दूर को न छूए। उसके बाद जब कभी कोई कार्य या समस्या आ पड़े, तो सिन्दूर को सात बार उक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित कर अपने माथे पर टीका लगाए। कार्य सफल होगा।
Wednesday, 27 December 2017
पंचश्लोकी गणेशपुराण
पंचश्लोकी गणेशपुराण
भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा के सामने अथवा किसी मंदिर में गणेशजी के सामने बैठकर भक्तिभाव से पंचश्लोकी गणेशपुराण का प्रात: एवं सायंकाल पाठ करे ! अभी १२ दिनो तक करे ! मनोकामना पहले बोल दे ! दुर्वा चढाये !
श्रीविघ्नेशपुराणसारमुदितं व्यासाय धात्रा पुरा
तत्खण्डं प्रथमं महागणपतेश्चोपासनाख्यं यथा।
संहर्तुं त्रिपुरं शिवेन गणपस्यादौ कृतं पूजनं
कर्तुं सृष्टिमिमां स्तुतः स विधिना व्यासेन बुद्धयाप्तये॥
संकष्टयाश्च विनायकस्य च मनोः स्थानस्य तीर्थस्य वै
संकष्टयाश्च विनायकस्य च मनोः स्थानस्य तीर्थस्य वै
दूर्वाणां महिमेति भक्तिचरितं तत्पार्थिवस्यार्चनम्।
तेभ्यो यैर्यदभीप्सितं गणपतिस्तत्तत्प्रतुष्टो ददौ
ताः सर्वा न समर्थ एव कथितुं ब्रह्मा कुतो मानवः॥
क्रीडाकाण्डमथो वदे कृतयुगे श्वेतच्छविः काश्यपः।
क्रीडाकाण्डमथो वदे कृतयुगे श्वेतच्छविः काश्यपः।
सिंहांकः स विनायको दशभुजो भूत्वाथ काशीं ययौ।
हत्वा तत्र नरान्तकं तदनुजं देवान्तकं दानवं
त्रेतायां शिवनन्दनो रसभुजो जातो मयूरध्वजः॥
हत्वा तं कमलासुरं च सगणं सिन्धु महादैत्यपं
पश्चात् सिद्धिमती सुते कमलजस्तस्मै च ज्ञानं ददौ।
द्वापारे तु गजाननो युगभुजो गौरीसुतः सिन्दुरं
सम्मर्द्य स्वकरेण तं निजमुखे चाखुध्वजो लिप्तवान्॥
गीताया उपदेश एव हि कृतो राज्ञे वरेण्याय वै
गीताया उपदेश एव हि कृतो राज्ञे वरेण्याय वै
तुष्टायाथ च धूम्रकेतुरभिधो विप्रः सधर्मधिकः।
अश्वांको द्विभुजो सितो गणपतिर्म्लेच्छान्तकः स्वर्णदः
क्रीडाकाण्डमिदं गणस्य हरिणा प्रोक्तं विधात्रे पुरा॥
एतच्छ्लोकसुपंचकं प्रतिदिनं भक्त्या पठेद्यः पुमान्
निर्वाणं परमं व्रजेत् स सकलान् भुक्त्वा सुभोगानपि।
॥ इति श्रीपंचश्लोकिगणेशपुराणम् ॥
Monday, 18 December 2017
श्री गणेश जी के दुर्लभ पंचबाण मन्त्र ....
श्री गणेश जी के दुर्लभ पंचबाण मन्त्र ....
१)ॐ गुरुजी समरुं ,गुणपति साधूं ,लाण डाकण मांरु ,चार सिकोत्तरे पाए लगाडूँ,गुणपति राजा घोडे चडीयां भूत पलित में विघन हमेशा होंकारा पिछा फरे तो माई पार्वती जी का दुध हराम करे
२)ॐ गुरुजी गुणेश बोले भोले,सवा सैर लाडू खावे ,होंकारा सो कोस जावे हमेशा होंकारा ,पिछा फरे तो माई पार्वती जी का दुध हराम करे .
३)ॐ गुरुजी बोडोया वीर !तुं बोलीया वीर ,जब जग तारी सेवा करुं लीला थई शिर धरुं ,माथे मांडु पलाण गसाण मांथी मुठी करुं , कहोने संतो राम राम
४)ॐ गुरुजी तम गणेश गोरी का पुत ,ज्यां समरुं त्या आयो जीत ,तमारा पिता ईश्वर महादेव ,साची तमारी सेवा करुं हमेश कामे पधारो लाडु ,सिन्दुरनी पडी लविंग सुपारी पान बिडूं ,श्री गणपती उर मां धरुं
५)ॐ गुरुजी ,सोधबाई से चला आय , राजा प्रजा लागे पाई ,वाटे घाटे न मारी ओजवाई ,ज्यां समरुं त्या आगेवान .
२)ॐ गुरुजी गुणेश बोले भोले,सवा सैर लाडू खावे ,होंकारा सो कोस जावे हमेशा होंकारा ,पिछा फरे तो माई पार्वती जी का दुध हराम करे .
३)ॐ गुरुजी बोडोया वीर !तुं बोलीया वीर ,जब जग तारी सेवा करुं लीला थई शिर धरुं ,माथे मांडु पलाण गसाण मांथी मुठी करुं , कहोने संतो राम राम
४)ॐ गुरुजी तम गणेश गोरी का पुत ,ज्यां समरुं त्या आयो जीत ,तमारा पिता ईश्वर महादेव ,साची तमारी सेवा करुं हमेश कामे पधारो लाडु ,सिन्दुरनी पडी लविंग सुपारी पान बिडूं ,श्री गणपती उर मां धरुं
५)ॐ गुरुजी ,सोधबाई से चला आय , राजा प्रजा लागे पाई ,वाटे घाटे न मारी ओजवाई ,ज्यां समरुं त्या आगेवान .
विधी ....
गणेश चतुर्थि को लाल लंगोट पहन कर गणपति जी की मुर्ती को अक्षत और दुर्वा के उपर रखे फिर दुध दही जल से क्रमवार स्नान कराये स्नान करवाते समय ॐ गुरुजी गं गणपतये नम: ह्रीं गं गणपतये नम: यह मन्त्र पढते रहें स्नान के पश्चात सिन्दुर लगाऐ गुडहल का पुष्प चढाऐं चुरमे के लड्डु का नैवेद्य और पान का बीडा, लोंग ,सुपारी ,दक्षिणा (रुपये /पैसे )सम्मुख रखें,गुग्गुल की धुप देकर आरती करे उसके पश्चात पांचो बाण मन्त्र का जाप करे पांच माला जाप के पश्चात चुरमे के लड्डु का भोग स्वयं लगाए शैष सारी सामग्री भुमी मे गाड देवे आसन के उपर के अक्षत सम्भाल कर रखे इच्छित कार्य में लाते समय गुग्गुल की धुप देकर पांचो बाणो का पांच बार जाप कर अक्षत में चिन्तन करे कार्य अवश्य पुर्ण होगा !
गणेश चतुर्थि को लाल लंगोट पहन कर गणपति जी की मुर्ती को अक्षत और दुर्वा के उपर रखे फिर दुध दही जल से क्रमवार स्नान कराये स्नान करवाते समय ॐ गुरुजी गं गणपतये नम: ह्रीं गं गणपतये नम: यह मन्त्र पढते रहें स्नान के पश्चात सिन्दुर लगाऐ गुडहल का पुष्प चढाऐं चुरमे के लड्डु का नैवेद्य और पान का बीडा, लोंग ,सुपारी ,दक्षिणा (रुपये /पैसे )सम्मुख रखें,गुग्गुल की धुप देकर आरती करे उसके पश्चात पांचो बाण मन्त्र का जाप करे पांच माला जाप के पश्चात चुरमे के लड्डु का भोग स्वयं लगाए शैष सारी सामग्री भुमी मे गाड देवे आसन के उपर के अक्षत सम्भाल कर रखे इच्छित कार्य में लाते समय गुग्गुल की धुप देकर पांचो बाणो का पांच बार जाप कर अक्षत में चिन्तन करे कार्य अवश्य पुर्ण होगा !
Sunday, 17 December 2017
गणेश जी के सर्वाभीष्ट प्रदायक मन्त्रों
गणेश जी के सर्वाभीष्ट प्रदायक मन्त्रों को कहता हूँ – जल (व) तदनन्तरवहिन (र) के सहित चक्
विमर्श – मन्त्र का स्वरुप इस प्रकार है – गं हं क्लौं ग्लौं उच्छिष्टगणेशाय महायक्षायायं बलिः ॥५१-५२॥
री (क) (अर्थात् क्र् ), कर्णेन्दु के साध कामिका (तुं), दीर्घ से युक्तदारक (ड) एवं वायु (य) तथा अन्त में कवच (हुम्) इसप्रकार ६ अक्षरों वाला यह गणपति मन्त्र साधकों को सिद्धि प्रदान करता है॥१-२॥
विमर्श – इस षडक्षर मन्त्र स्वरुप इस प्रकार है – ‘वक्रतुण्डाय हुम्’ ॥१-२॥
अबइस मन्त का विनियोग कहते हैं – इस मन्त्र के भार्गव ऋषि हैं, अनुष्टुप्छन्द है, विघ्नेश देवता हैं, वं बीज है तथा यं शक्ति है ॥३॥
विमर्श –विनियोग का स्वरुप इस प्रकार है – अस्य श्रीगणेशमन्त्रस्य भार्गव ऋषि –रनुष्टुंप् छन्दः विघ्नेशो देवता वं बीजं यं शक्तिरात्मनोऽभीष्टसिद्धर्थेजपे विनियोगः ॥३॥
अब इस मन्त्र के षडङ्ग्न्यास की विधि कहते हैं –
उपर्युक्त षडक्षर मन्त्रों के ऊपर अनुस्वार लगा कर प्रथम प्रणव तथा अन्त में नमः पद लगा कर षडङ्गन्यास करना चाहिए ॥४॥
उपर्युक्त षडक्षर मन्त्रों के ऊपर अनुस्वार लगा कर प्रथम प्रणव तथा अन्त में नमः पद लगा कर षडङ्गन्यास करना चाहिए ॥४॥
विमर्श – कराङ्गन्यास एवं षडङ्गन्यास की विधि –
ॐ वं नमः अङ्गुष्ठाभ्यां नमः,ॐ क्रं नमः तर्जनीभ्यां नमः,
ॐ तुं नमः मध्यमाभ्यां नमः,ॐ डां नमः अनामिकाभ्यां नमः,
ॐ यं नमः कनिष्ठिकाभ्यां नमः,ॐ हुँ नमः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः,
इसी प्रकार उपर्युक्त विधि से हृदय, शिर, शिखा, कवच, नेत्रत्रय एवं ‘अस्त्राय फट्से षडङ्गन्यास करना चाहिए ॥४॥
ॐ वं नमः अङ्गुष्ठाभ्यां नमः,ॐ क्रं नमः तर्जनीभ्यां नमः,
ॐ तुं नमः मध्यमाभ्यां नमः,ॐ डां नमः अनामिकाभ्यां नमः,
ॐ यं नमः कनिष्ठिकाभ्यां नमः,ॐ हुँ नमः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः,
इसी प्रकार उपर्युक्त विधि से हृदय, शिर, शिखा, कवच, नेत्रत्रय एवं ‘अस्त्राय फट्से षडङ्गन्यास करना चाहिए ॥४॥
अबइसी मन्त्र से सर्वाङ्गन्यास कहते हैं – भ्रूमध्य, कण्ठ, हृदय, नाभि, लिङ्ग एवं पैरों में भी क्रमशः इन्हीं मन्त्राक्षरों का न्यास कर संपूर्णमन्त्र का पूरे शरीर में न्यास करना चाहिए, तदनन्तर गणेश प्रभु का ध्यानकरना चाहिए ॥५॥
विमर्श – प्रयोग विधि इस प्रकार है –
ॐ वं नमः भ्रूमध्ये, ॐ क्रं नमः कण्ठे, ॐ तुं नमः हृदये, ॐ डां नम्ह नाभौ,
ॐ यं नमः लिङ्गे, ॐ हुम् नमः पादयोः, ॐ वक्रतुण्डाय हुम् सर्वाङ्गे ॥५॥
ॐ वं नमः भ्रूमध्ये, ॐ क्रं नमः कण्ठे, ॐ तुं नमः हृदये, ॐ डां नम्ह नाभौ,
ॐ यं नमः लिङ्गे, ॐ हुम् नमः पादयोः, ॐ वक्रतुण्डाय हुम् सर्वाङ्गे ॥५॥
अब महाप्रभु गणेश का ध्यान कहते हैं –
जिनकाअङ्ग प्रत्यङ्ग उदीयमान सूर्य के समान रक्त वर्ण का है, जो अपने बायेंहाथों में पाश एवं अभयमुद्रा तथा दाहिने हाथों में वरदमुद्रा एवं अंकुशधारण किये हुये हैं, समस्त दुःखों को दूर करने वाले, रक्तवस्त्र धारी, प्रसन्न मुख तथा समस्त भूषणॊं से भूषित होने के कारण मनोहर प्रतीत वालगजानन गणेश का ध्यान करना चाहिए ॥६॥
जिनकाअङ्ग प्रत्यङ्ग उदीयमान सूर्य के समान रक्त वर्ण का है, जो अपने बायेंहाथों में पाश एवं अभयमुद्रा तथा दाहिने हाथों में वरदमुद्रा एवं अंकुशधारण किये हुये हैं, समस्त दुःखों को दूर करने वाले, रक्तवस्त्र धारी, प्रसन्न मुख तथा समस्त भूषणॊं से भूषित होने के कारण मनोहर प्रतीत वालगजानन गणेश का ध्यान करना चाहिए ॥६॥
अब इस इस मन्त्र से पुरश्चरण विधि कहते हैं –
पुरश्चरणकार्य में इस मन्त्र का ६ लाख जप करना चाहिए । इस (छःलाख) की दशांश संख्या (साठ हजार) से अष्टद्रव्यों का होम करना चाहिए । तदनन्तर मन्त्र के फलप्राप्ति के लिए संस्कार-शुद्ध ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिये ॥७॥
पुरश्चरणकार्य में इस मन्त्र का ६ लाख जप करना चाहिए । इस (छःलाख) की दशांश संख्या (साठ हजार) से अष्टद्रव्यों का होम करना चाहिए । तदनन्तर मन्त्र के फलप्राप्ति के लिए संस्कार-शुद्ध ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिये ॥७॥
१. ईख, २. सत्तू, ३. केला, ४. चपेटान्न (चिउडा), ५. तिल, ६. मोदक, ७. नारिकेल और, ८ . धान का लावा – ये अष्टद्रव्य कहे गये हैं ॥८॥
अब पीठपूजाविधान करते हैं –
आधारशक्ति से आरम्भ कर परतत्त्व पर्यन्त पीठ की पूजा करनी चाहिए । उस पर आठ दिशाओं में एवं मध्य में शक्तियों की पूजा करनी चाहिए ॥९॥
आधारशक्ति से आरम्भ कर परतत्त्व पर्यन्त पीठ की पूजा करनी चाहिए । उस पर आठ दिशाओं में एवं मध्य में शक्तियों की पूजा करनी चाहिए ॥९॥
१.तीव्रा, २. चालिनी, ३. नन्दा, ४. भोगदा, ५. कामरुपिणी, ६. उग्रा, ७.तेजोवती, ८. सत्या एवं ९. विघ्ननाशिनी – ये गणेश मन्त्र की नव शक्तियों केनाम हैं ॥१०-११॥
प्रारम्भ में गणपति का बीज (गं) लगा कर ‘सर्वशक्तिकम’ तदनन्तर ‘लासनाय’ और अन्त में हृत् (नमः) लगाने से पीठमन्त्र बनता है । इस मन्त्र से आसन देकर मूलमन्त्र से गणेशमूर्ति की कल्पनाकरनी चाहिए ॥११-१२॥
विमर्श – मन्त्र का स्वरुप इस प्रकार है – ‘गं सर्वशक्तिकमलासनाय नमः’ ॥११-१२॥
उस मूर्ति में गणेश जी का आवाहन कर आसनादि प्रदान कर पुष्पादि से उनका पूजन कर आवरण देवताओं की पूजा करनी चाहिए ॥१३॥
गणेशका पञ्चावरण पूजा विधान – प्रथमावरण की पूजा में विद्वान् साधक आग्नेयकोणों (आग्नेय, नैऋत्य, वायव्य, ईशान) में ‘गां हृदयाय नमः’ गीं शिरसेस्वाहा’, ‘गूं शिखायै वषट्’, ‘गैं कवचाय हुम्’ तदनन्तर मध्य में ‘गौंनेत्रत्रयाय वौषट्तथा चारों दिशाओं में ‘अस्त्राय फट् ’ इन मन्त्रों सेषडङ्गपूजा करे ॥१४॥
द्वितीयावरण में पूर्व आदि दिशाओं में आठशक्तियों का पूजन करना चाहिए । विद्या, विधात्री, भोगदा, विघ्नघातिनी, निधिप्रदीपा, पापघ्नी, पुण्या एवं शशिप्रभा – ये गणपति की आठ शक्तियाँ हैं॥१५-१६॥
तृतीयावरण में अष्टदल के अग्रभाग में वक्रतुण्ड, एकदंष्ट्र, महोदर, गजास्य, लम्बोदर, विकट, विघ्नराज एवं धूम्रवर्ण का पूजन करना चाहिए। फिर चतुर्थावर में अष्टदल के अग्रभाग में इन्द्रादि देव तथा पञ्चावरणमें उनके वज्र आदि आयुधों का पूजन करना चाहिए । इस प्रकार पाँच आवरणों केसाथ गणेश जी का पूजन चाहिए । मन्त्र सिद्धि के लिए पुरश्चरण के पूर्वपूर्वोक्त पञ्चावरण की पूजा आवश्यक है ॥१५-१८॥
विमर्श – प्रयोग विधि – पीठपूजा करने के बाद उस पर निम्नलिखित मन्त्रों से गणेशमन्त्र की नौ शक्तियों का पूजन करना चाहिए ।
पूर्व आदि आठ दिशाओं में यथा –
ॐ तीव्रायै नमः,ॐ चालिन्यै नमः,ॐ नन्दायै नमः,
ॐ भोगदायै नमः,ॐ कामरुपिण्यै नमः,ॐ उग्रायै नमः,
ॐ तेजोवत्यै नमः, ॐ सत्यायै नमः,
इसप्रकार आठ दिशाओं में पूजन कर मध्य में ‘विघ्ननाशिन्यै नमः’ फिर ‘ॐसर्वशक्तिकमलासनाय नमः’ मन्त्र से आसन देकर मूल मन्त्र से गणेशजी की मूर्तिकी कल्पना कर तथा उसमें गणेशजी का आवाहन कर पाद्य एवं अर्ध्य आदि समस्यउपचारों से उनका पूजन कर आवरण पूजा करनी चाहिए ।
ॐ गां हृदाय नमः आग्नेये,ॐ गीं शिरसे स्वाहा नैऋत्ये,
ॐ गूं शिखायै वषट् वायव्ये,ॐ गैं कवचाय हुम् ऐशान्ये,
ॐ गौं नेत्रत्रयाय वौषट् अग्रे,ॐॐ गः अस्त्राय फट् चतुर्दिक्षु ।
इनमन्त्रों से षडङ्पूजा कर पुष्पाञ्जलि लेकर मूल मन्त्र का उच्चारण कर ‘अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सले । भक्तयो समर्पये तुभ्यंप्रथमावरणार्चनम् ’ कह कर पुष्पाञ्जलि समर्पित करे । फिर –
ॐ विद्यायै नम्ह पूर्वे,ॐ विधात्र्यै नमः आग्नेये,
ॐ भोगदायै नमः दक्षिणे,ॐ विघ्नघातिन्यै नमः नैऋत्यै,
ॐ निधि प्रदीपायै नमः पश्चिमे,ॐ पापघ्न्यै नमः वायव्ये,
ॐ पुण्यायै नमः सौम्ये,ॐ शशिप्रभायै नमः ऐशान्ये
इनशक्तियों का पूर्वादि आठ दिशाओं में क्रमेण पूजन करना चाहिए । फिरपूर्वोक्त मूल मन्त्र के साथ ‘अभीष्टसिद्धिं मे देहि… सेद्वितीयावरणार्चनम् ’ पर्यन्त मन्त्र बोल कर पुष्पाञ्जलि समर्पित करनीचाहिए । तदनन्तर अष्टदल कमल में –
ॐ वक्रतुण्डाय नमः,ॐ एकदंष्ट्राय नमः,ॐ महोदरय नमः,
ॐ गजास्याय नमः,ॐ लम्बोदराय नमः,ॐ विकटाय नमः,
ॐ विघ्नराजाय नमः, ॐ धूम्रवर्णाय नमः
इनमन्त्रों से वक्रतुण्ड आदि का पूजन कर मूलमन्त्र के साथ ‘अभिष्टसिद्धिं मेदेहि … से तृतीयावरणार्चनम् ’ पर्यन्त मन्त्र पढ कर तृतीय पुष्पाञ्जलिसमर्पित करनी चाहिए ।
तत्पश्चात् अष्टदल के अग्रभाग में – ॐ इन्द्राय नमः पूर्वे,
ॐ अग्नये नमः आग्नये,ॐ यमाय नमः दक्षिने,ॐ निऋतये नमः नैऋत्ये,
ॐ वरुणाय नमः पश्चिमे,ॐ वायवे नमः वायव्य,ॐ सोमाय नमः उत्तरे,
ॐ ईशानाय नमः ऐशान्ये,ॐ ब्रह्मणे नमः आकाशे,ॐ अनन्ताय नमः पाताले
इनमन्त्रों से दश दिक्पालोम की पूजा कर मूल मन्त्र पढते हुए ‘अभिष्टसिद्धिं…से चतुर्थावरणार्चनम् ’ पर्यन्त मन्त्र पढ करचतुर्थपुष्पाञ्जलि समर्पित करे ।
तदनन्तर अष्टदल के अग्रभाग के अन्त में
ॐ वज्राय नमः,ॐ शक्तये नमः,ॐ दण्डाय नमः,
ॐ खड्गाय नमः,ॐ पाशाय नमः,ॐ अंकुशाय नमः,
ॐ गदायै नमः,ॐ त्रिशूलाय नमः, ॐ चक्राय नमः,ॐ पद्माय नमः
इनमन्त्रों से दशदिक्पालों के वज्रादि आयुधों की पूजा कर मूलमन्त्र के साथ‘ अभीष्टसिद्धिं… से ले कर पञ्चमावरणार्चनम् ’ पर्यन्त मन्त्र पढ कर पञ्चमपुष्पाञ्जलि समर्पित करनी चाहिए । इसके पश्चात् २.७ श्लोक में कही गई विधिके अनुसार ६ लाख जप, दशांश हवन, दशांश अभिषेक, दशांश ब्राह्मण भोजन करानेसेपुरश्चरण पूर्ण होता है और मन्त्र की सिद्धि हो जाती है ॥१५-१८॥
पूर्व आदि आठ दिशाओं में यथा –
ॐ तीव्रायै नमः,ॐ चालिन्यै नमः,ॐ नन्दायै नमः,
ॐ भोगदायै नमः,ॐ कामरुपिण्यै नमः,ॐ उग्रायै नमः,
ॐ तेजोवत्यै नमः, ॐ सत्यायै नमः,
इसप्रकार आठ दिशाओं में पूजन कर मध्य में ‘विघ्ननाशिन्यै नमः’ फिर ‘ॐसर्वशक्तिकमलासनाय नमः’ मन्त्र से आसन देकर मूल मन्त्र से गणेशजी की मूर्तिकी कल्पना कर तथा उसमें गणेशजी का आवाहन कर पाद्य एवं अर्ध्य आदि समस्यउपचारों से उनका पूजन कर आवरण पूजा करनी चाहिए ।
ॐ गां हृदाय नमः आग्नेये,ॐ गीं शिरसे स्वाहा नैऋत्ये,
ॐ गूं शिखायै वषट् वायव्ये,ॐ गैं कवचाय हुम् ऐशान्ये,
ॐ गौं नेत्रत्रयाय वौषट् अग्रे,ॐॐ गः अस्त्राय फट् चतुर्दिक्षु ।
इनमन्त्रों से षडङ्पूजा कर पुष्पाञ्जलि लेकर मूल मन्त्र का उच्चारण कर ‘अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सले । भक्तयो समर्पये तुभ्यंप्रथमावरणार्चनम् ’ कह कर पुष्पाञ्जलि समर्पित करे । फिर –
ॐ विद्यायै नम्ह पूर्वे,ॐ विधात्र्यै नमः आग्नेये,
ॐ भोगदायै नमः दक्षिणे,ॐ विघ्नघातिन्यै नमः नैऋत्यै,
ॐ निधि प्रदीपायै नमः पश्चिमे,ॐ पापघ्न्यै नमः वायव्ये,
ॐ पुण्यायै नमः सौम्ये,ॐ शशिप्रभायै नमः ऐशान्ये
इनशक्तियों का पूर्वादि आठ दिशाओं में क्रमेण पूजन करना चाहिए । फिरपूर्वोक्त मूल मन्त्र के साथ ‘अभीष्टसिद्धिं मे देहि… सेद्वितीयावरणार्चनम् ’ पर्यन्त मन्त्र बोल कर पुष्पाञ्जलि समर्पित करनीचाहिए । तदनन्तर अष्टदल कमल में –
ॐ वक्रतुण्डाय नमः,ॐ एकदंष्ट्राय नमः,ॐ महोदरय नमः,
ॐ गजास्याय नमः,ॐ लम्बोदराय नमः,ॐ विकटाय नमः,
ॐ विघ्नराजाय नमः, ॐ धूम्रवर्णाय नमः
इनमन्त्रों से वक्रतुण्ड आदि का पूजन कर मूलमन्त्र के साथ ‘अभिष्टसिद्धिं मेदेहि … से तृतीयावरणार्चनम् ’ पर्यन्त मन्त्र पढ कर तृतीय पुष्पाञ्जलिसमर्पित करनी चाहिए ।
तत्पश्चात् अष्टदल के अग्रभाग में – ॐ इन्द्राय नमः पूर्वे,
ॐ अग्नये नमः आग्नये,ॐ यमाय नमः दक्षिने,ॐ निऋतये नमः नैऋत्ये,
ॐ वरुणाय नमः पश्चिमे,ॐ वायवे नमः वायव्य,ॐ सोमाय नमः उत्तरे,
ॐ ईशानाय नमः ऐशान्ये,ॐ ब्रह्मणे नमः आकाशे,ॐ अनन्ताय नमः पाताले
इनमन्त्रों से दश दिक्पालोम की पूजा कर मूल मन्त्र पढते हुए ‘अभिष्टसिद्धिं…से चतुर्थावरणार्चनम् ’ पर्यन्त मन्त्र पढ करचतुर्थपुष्पाञ्जलि समर्पित करे ।
तदनन्तर अष्टदल के अग्रभाग के अन्त में
ॐ वज्राय नमः,ॐ शक्तये नमः,ॐ दण्डाय नमः,
ॐ खड्गाय नमः,ॐ पाशाय नमः,ॐ अंकुशाय नमः,
ॐ गदायै नमः,ॐ त्रिशूलाय नमः, ॐ चक्राय नमः,ॐ पद्माय नमः
इनमन्त्रों से दशदिक्पालों के वज्रादि आयुधों की पूजा कर मूलमन्त्र के साथ‘ अभीष्टसिद्धिं… से ले कर पञ्चमावरणार्चनम् ’ पर्यन्त मन्त्र पढ कर पञ्चमपुष्पाञ्जलि समर्पित करनी चाहिए । इसके पश्चात् २.७ श्लोक में कही गई विधिके अनुसार ६ लाख जप, दशांश हवन, दशांश अभिषेक, दशांश ब्राह्मण भोजन करानेसेपुरश्चरण पूर्ण होता है और मन्त्र की सिद्धि हो जाती है ॥१५-१८॥
इसबाद मन्त्र सिद्धि हो जाने काम्य प्रयोग करना चाहिए – यदि साधक ब्रह्मचर्यव्रत का पालन करते हुये प्रतिदिन १२ हजार मन्त्रों का जप करे तो ६ महीनेके भीतर निश्चितरुप से उसकी दरिद्रता विनष्ट हो सकती है । एक चतुर्थी सेदूसरी चतुर्थी तक प्रतिदिन दश हजार जप करे और एकाग्रचित्त हो प्रतिदिन एकसौ आठ आहुति देता रहे तो भक्तिपूर्वक ऐसा करते रहने से ६ मास के भीतरपूर्वोक्त फल (दरिद्रता का विनाश) प्राप्त हो
जाता है ॥१९-२१॥
घृतमिश्रित अन्न की आहुतियाँ देने से मनुष्य धन धान्य से समृद्ध हो जाता है ।चिउडा अथवा नारिकेल अथवा मरिच से प्रतिदिन एक हजार आहुति देन ए से एक महिनेके भीतर बहुत बडी समत्ति होती है । जीरा, सेंधा नमक एवं काली मिर्च सेमिश्रित अष्टद्रव्यों से प्रतिदिन एक हजार आहुति देने से व्यक्ति एक हीपक्ष (१५ दिनों) में कुबेर के समान धनवान् है । इतना ही नहीं प्रतिदिनमूलमन्त्र से ४४४ बार तर्पण करने से मनुष्यों को मनो वाञ्छित फल कीप्राप्ति हो जाती है ॥२२-२५॥
जाता है ॥१९-२१॥
घृतमिश्रित अन्न की आहुतियाँ देने से मनुष्य धन धान्य से समृद्ध हो जाता है ।चिउडा अथवा नारिकेल अथवा मरिच से प्रतिदिन एक हजार आहुति देन ए से एक महिनेके भीतर बहुत बडी समत्ति होती है । जीरा, सेंधा नमक एवं काली मिर्च सेमिश्रित अष्टद्रव्यों से प्रतिदिन एक हजार आहुति देने से व्यक्ति एक हीपक्ष (१५ दिनों) में कुबेर के समान धनवान् है । इतना ही नहीं प्रतिदिनमूलमन्त्र से ४४४ बार तर्पण करने से मनुष्यों को मनो वाञ्छित फल कीप्राप्ति हो जाती है ॥२२-२५॥
तीव्र उच्छिष्ट गणपति साधना
तीव्र उच्छिष्ट गणपति साधना
कड़वे नीम की जड़ से कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन अंगूठे के बराबर की गणेश की प्रतिमा बनाकर रात्रि के प्रथम प्रहर में स्वयं लाल वस्त्र धारण कर लाल आसन पर पश्चिम मुख होकर झूठे मुँह से सामने थाली में प्रतिमा को स्थापित कर साधना में सफलता की सदगुरुदेव से प्रार्थना कर संकल्प करें और ततपश्चात गणपति का ध्यान कर उनका पूजन लाल चन्दन,अक्षत,पुष्प के द्वारा पूजन करे और लाल चन्दन की ही माला से झूठे मुँह से ही ५ माला मन्त्र जप करें. सात दिनों तक ऐसे ही पूजन करे और आठवे दिन अर्थात अमावस्या को पञ्च मेवे से ५०० आहुतियाँ करें इससे मंत्र सिद्ध हो जाता है. तब आप इनके विविध प्रयोगों को कर सकते हैं. २ प्रयोग नीचे दिए गए हैं.
१. जिस व्यक्ति का आकर्षण करना हो चाहे वो आपका बॉस हो, सहकर्मी हो, प्रेमी,प्रेमिका या फिर कोई मित्र या शत्रु हो जिससे, आपको अपना काम करवाना हो.उसके फोटो पर इस सिद्ध प्रतिमा का स्थापन कर ३ दिनों तक १ माला मन्त्र जप करने से निश्चय ही उसका आकर्षण होता है.
२. अन्न के ऊपर इस सिद्ध प्रतिमा का स्थापन कर ११ दिनों तक नित्य ३ माला मंत्र जप करने से वर्ष भर घर में धन धान्य का भंडार भरा रहता है और यदि इसके बाद नित्य ५१ बार मंत्र को जप कर लिया जाये तो ये भंडार भरा ही रहता है. नहीं तो आपको प्रति ६ माह या वर्ष में करना चाहिए.
ध्यान मन्त्र –
दंताभये चक्र- वरौ दधानं कराग्रग्रम् स्वर्ण-घटं त्रि-नेत्रं ,
धृताब्जयालिंगितमब्धि-पुत्र्या लक्ष्मी-गणेशं कनकाभमीडे.
मंत्र-
""""ॐ नमो हस्ति मुखाय लम्बोदराय उच्छिष्ट महात्मने क्रां क्रीं ह्रीं घे घे उच्छिष्ठाय स्वाहा"""
१. जिस व्यक्ति का आकर्षण करना हो चाहे वो आपका बॉस हो, सहकर्मी हो, प्रेमी,प्रेमिका या फिर कोई मित्र या शत्रु हो जिससे, आपको अपना काम करवाना हो.उसके फोटो पर इस सिद्ध प्रतिमा का स्थापन कर ३ दिनों तक १ माला मन्त्र जप करने से निश्चय ही उसका आकर्षण होता है.
२. अन्न के ऊपर इस सिद्ध प्रतिमा का स्थापन कर ११ दिनों तक नित्य ३ माला मंत्र जप करने से वर्ष भर घर में धन धान्य का भंडार भरा रहता है और यदि इसके बाद नित्य ५१ बार मंत्र को जप कर लिया जाये तो ये भंडार भरा ही रहता है. नहीं तो आपको प्रति ६ माह या वर्ष में करना चाहिए.
ध्यान मन्त्र –
दंताभये चक्र- वरौ दधानं कराग्रग्रम् स्वर्ण-घटं त्रि-नेत्रं ,
धृताब्जयालिंगितमब्धि-पुत्र्या लक्ष्मी-गणेशं कनकाभमीडे.
मंत्र-
""""ॐ नमो हस्ति मुखाय लम्बोदराय उच्छिष्ट महात्मने क्रां क्रीं ह्रीं घे घे उच्छिष्ठाय स्वाहा"""
Wednesday, 30 August 2017
गणपति जी नाम पूजा अर्चना :--
ॐ नमः शिवाये
श्री शम्बू यति गोरखनाथ जी महाराज को आदेश आदेश
जय हो मेरी सच्ची सर्कार
जलख निरंजन मेरे सिद्धयोगी बाल दूधा धारि बाबा बलखनाथ को आदेश आदेश !!!
श्री शम्बू यति गोरखनाथ जी महाराज को आदेश आदेश
जय हो मेरी सच्ची सर्कार
जलख निरंजन मेरे सिद्धयोगी बाल दूधा धारि बाबा बलखनाथ को आदेश आदेश !!!
गणपति जी नाम पूजा अर्चना :--
मंत्र :--------------------
ऊँ गं गणपतये नमः ।।
विधि :---
आमंत्रण :---- शिव की के जा गणपति बाबा जी के मंदिर मैं जा कर बाबा जी से प्रे करना कृपा करने के लिए और जब बी जाओ साथ मैं कुछ ले कर जाना खली हाथ नहीं जाना है वह कुछ बी ले जाना जो आपको सही लगे !!
साधना :----- शुभ दिन पर शुभ मूरत पर करना है सुरु नहीं तो बाबा गणपति जी के चतुर्थी को सुरु करना है वैसे अभी शुभ मूरत है आप यह साधना को २२ सितम्बर को बी कर सकते हो क्युकी नवराति सुरु हो रही है !
१) आसान !
२) माला रुद्राख की जा तुलसी की जा हाथो की उँगलियों पर बी कर सकते हो !
३) घी का दीपक !
४) डेली भोग लगाना है आपको मीठी चीज़ का जो बी आपको सही लगे कबि मीठी कबि मोदक और कबि बाताशये !
५) धुप ,जा अगरवती !
११ माला डेली करनी है आपको अगर आपके पास माला नहीं है तो आपको हाथो पर जाप करना है कम से कम १ घंटा तक ४१ दिन तक करि है ! जब तक साधना पूरी नहीं होती है अणि अनुभूति किसी से बी शेयर नहीं करनी है आपको ! और जिन का इंट्रेस्ट है बाबा गण पति मैं वो इसको अपना गुरु मंत्र बी मन कर यह साधना कर सकते है !
नोट:------
१) कम बोना है साधना काल मैं
२) घृस्त जीवन से ४१ दिन
३) घर का खाना खाना है जितना कब कहोगे उतना अच्छा है !
४) ४१ दिन तक कही नहीं जाना है सिर्फ जाते बी हो तो साधना यहाँ सुरु की है वही पर करनी है और टाइम एक ही होगा ! सूबा शाम का !
५) जुठ कम बोलना और हो सकते हो किसी बी कन्या को देख कर जा किसी क लिए बी मन मैं कोई बुराई नहीं रखना है आपको !
यह कुछ आम नियम है याद करना आपको ११ माला मैंने बोली है लेकिन आपको १२५००० जाप देना है आप देखो अभी
कितने दिनों मैं कर सकते हो इस चीज़ को ! कम से कम दिल की ३० माला निकलती है सो आप अपने हिसाब से देख कर क्र सकते हो !
गुरु मंत्र बनाना है आपको तो १२५००० जाप देना है उसके बाद आपको आगे की विधि और रूल नेक्स्ट वीडियो मैं दे दुगा !!!
अलख निरंजन नवनाथ ८४ सिद्ध योग्यों को आदेश आदेश !!!
फेसबुक पेज :-NATH PANTH & shiv gorakshdham satnali
Subscribe to: Posts (Atom)
No comments:
Post a Comment