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11 Richest Persons in Qatar
Qatar is an Arabian country in the middle east of Arab, also known as richest country. Its capital is Doha and currency is Qatari riyal. Doha best known for its ultramodern architecture and futuristic skyscrapers which are inspired by ancient Islamic design.
In this article, we are going to create a list about richest persons from Qatar who is also known as a billionaire. So, people who are interested to know about Who is the richest Sheikh in Qatar, they need to stuck on this article till the end.
1. Sheikh Ahmed bin Saeed Al Maktoum
Sheikh Ahmed bin Saeed Al Maktoum popularly known as CEO of The Emirates Group, President of the Dubai Civil Aviation Authority and Chairman of Dubai World and Noor Takaful Insurance Company. He was born on 1 December 1958 in Dubai, UAE. As per find information, he known as a richest sheikh from Qatar Dubai net worth was US$10 billion (2011).
2. Tamim bin Hamad Al Thani
Sheikh Tamim bin Hamad Al Thani also known as current Amir of Qatar who was born on 3 June 1980 in Doha Qatar. He is 4th son of former Amir, Hamad bin Khalifa Al Thani. He counted in Qatar's top 10 richest Sheikhs due to their worth. According to Forbes, his net worth is more than 177 crores USD. On 25 June 2013, he became 8th Amir of Qatar.
3. Sheikh Faisal Qassim Faisal Al Thani
Sheikh Faisal Qassem Faisal Al Thani also listed in Qatar's top 10 richest sheikhs. He is the Chairmen of Al Faisal Holding which is one of the biggest conglomerates of Qatar, founded in 1964. As well as, he is owner of more than 20 hotels around the world. In his early life, he started selling car parts at age 16 and in 1960s he became the sole distributor of bridge-stone tires. As per source, his estimated worth is more than $$1.77 Billion.
4. Hamad bin Jassim bin Jaber Al Thani
Hamad bin Jassim bin Jaber Al Thani is popularly known as Prime Minister of Qatar who was born on 10 January 1959 in Doha. He was the director of the office of the minister of municipal affairs and agriculture from 1982 to 1989. On 1 September 1992, he was appointed as foreign minister of Qatar by Sheikh Tamim bin Hamad Al Thani. He is also known as a billionaire whose estimated worth is more than 106 Crores USD according to Forbes.
5. Wissam Al Mana
Wissam Al Mana popularly known as Qatari business magnate who is the executive director of Al Mana Group. He is a successful businessman from Qatar who is also known as Qatari billionaire along with $1 billion estimated Net Worth. He was born on 1 January 1975 in Doha, Qatar but his childhood spent in London. In 2012, he got married with Janet Jackson and thereafter separated in 2017.
6. Khalid bin Hamad Al Thani
Khalid bin Hamad Al Thani popularly known as a Qatari drag racer. Khalid is one of the first Formula One car racer from Qatar. He is also listed in Top 10 richest persons from Qatar. In 2009, he invested more than $10 million in Al-Anabi Racing which main objective was to promote Qatar's National Image in the Drag racing scene. Khalid bin Hamad Al Thani also known as the "Patron Sheikh" in the press whose estimated worth is more than $167.59 Million.
7. Akbar Al Baker
Akbar Al Baker also known as a richest person from Qatar who popularly known as CEO of Qatar Airways. As well as, he also known as one of the lead developer for Hammad International Airport which was established in 2014. Akbar Al Baker also counted in top 10 richest persons from Qatar whose net worth not displayed yet.
8. Saad Sherida Al Kaabi
Saad Sherida Al Kaabi popularly known as CEO of Qatar Petroleum, also listed in the list of top richest person from Qatar. He completed his education from Pennsylvania State University in 1986 where he studied about petroleum and natural gas engineering.
9. Sheikh Abdullah Bin Mohammed Bin Saud Al Thani
Sheikh Abdullah Bin Mohamed Bin Saud Al Thani officially known as CEO of Qatar Investment Authority and a Member of the Supreme Council for Economic Affairs and Investment. He is also listed in the list of richest businessman from Qatar.
10. Khalid Bin Hamad Bin Abdullah Al Thani
Sheikh Khalid bin Hamad bin Abdullah Bin Muhammed Al Thani also known as a richest person from Qatar. He was born in Qatar's Capital Doha on 1935. As per find information, his half brother Sheikh Khalifa bin Hamad Al Thani appointed him as the Minister of Interior. He also a member of the Royal Family of Qatar. Accordingly source, he is a richest Sheikh from Qatar along with $800 Million estimated worth.
11. Ali Bin Fetais Al-Marri
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दशाक्षर क्षिप्रप्रसादगणपति (विघ्नराज) मंत्र August 30, 2019 | aspundir | Leave a comment ॥ अथ दशाक्षर क्षिप्रप्रसादगणपति (विघ्नराज) मंत्र ॥ मन्त्र – गं क्षिप्रप्रसादनाय नमः । क्षिप्र प्रसाद गणपति का पूजन श्रीविद्या ललिता सुन्दरी उपासना में मुख्य है । इनके बिना श्री विद्या अधूरी है। जो साधक श्री साधना करते हैं उन्हें सर्वप्रथम इनकी साधना कर इन्हें प्रसन्न करना चाहिए। कामदेव की भस्म से उत्पन्न दैत्य से श्री ललितादेवी के युद्ध के समय देवी एवं सेना के सम्मोहित होने पर इन्होंने ही उसका वध किया था। इनकी उपासना से विघ्न, आलस्य, कलह़, दुर्भाग्य दूर होकर ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। विनियोगः- ॐ अस्य श्री क्षिप्र प्रसाद गणपति मंत्रस्य गणक ऋषिः । विराट् छन्दः, क्षिप्र प्रसादनाय देवता, गं बीजं, आं शक्तिं, सर्वाभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः । करन्यास अंग न्यास ॐ गं अंगुष्ठाभ्यां नमः । हृदयाय नमः । ॐ गं तर्जनीभ्यां नमः । शिरसे स्वाहा । ॐ गं मध्यमाभ्यां नमः । शिखायै वषट् । ॐ गं अनामिकाभ्यां नमः । कवचाय हुम् । ॐ गं कनिष्ठिकाभ्यां नमः । नैत्रत्रयाय वौषट् । ॐ गं करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । अस्त्राय फट् । ध्यानम् पाशांकुशौ कल्पलतां विषाणं दधत् स्वशुण्डाहित बीजपूरः । रक्तस्त्रिनेत्रस्तरुणेन्दु मौलिर्हारोज्ज्वलो हस्तिमुखोऽवताद् वः ॥ रक्त वर्ण, पाश, अंकुश, कल्पलता हाथ में लिए वरमुद्रा देते हुए, शुण्डाग्र में बीजापुर लिए हुए, तीन नेत्र वाले, उज्ज्वल हार इत्यादि आभूषणों से सज्जित, हस्ति मुख गणेश का मैं ध्यान करता हूं। यंत्रार्चनम् :- यंत्र देवता वक्रतुण्ड गणेश के ही है, प्रथमावरणम् – षट्कोण में हृदयशक्ति, शिरशक्ति, शिखाशक्ति, कवचशक्ति, नेत्रशक्ति एवं अस्त्रशक्ति का पूजन करें । द्वितीयावरणम् – अष्ट दलों में निम्न (क्षिप्रप्रसाद स्वरूपों का पूजन करे – ॐ विघ्नाय नमः ॥ १ ॥ ॐ विनायकाय नमः ॥ २ ॥ ॐ शूराय नमः ॥ ३ ॥ ॐ वीराय नमः ॥ ४ ॥ ॐ वरदाय नमः ॥ ५ ॥ ॐ इभक्त्राय नमः ॥ ६ ॥ ॐ एकरदाय नमः ॥ ७ ॥ ॐ लंबोदराय नमः ॥ ८ ॥ तृतीय व चतुर्थावरण में इसके बाद भूपूर में इन्द्रादि लोकपालों व आयुधों की पूर्व यंत्रार्चन विधि अनुसार करें । चार लाख जप कर, चालीस हजार आहुति मोदक से तथा नित्य चार सौ चवालीस (444) तर्पण करने से अपार धन-संपत्ति प्राप्त होती है । तर्पण में नारियल का जल या गुड़ोदक प्रयोग कर सकते हैं । त्रिकाल (सुबह-दोपहर-संध्या) को जप का विशेष महत्व है । अंगुष्ठ बराबर प्रतिमा बनाकर श्री क्षिप्रप्रसाद गणेश यंत्र के ऊपर स्थापित कर पूजन करें । श्री गणेश शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता हैं । ADD https://vadicjagat.co.in/sitemap/
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श्री विश्वावसु गन्धर्व-राज कवच स्तोत्रम् July 24, 2015 | aspundir | 2 Comments श्री विश्वावसु गन्धर्व-राज कवच स्तोत्रम् प्रणाम-मन्त्रः- ॐ श्रीगणेशाय नमः ।। ॐ श्रीगणेशाय नमः ।। ॐ श्रीगणेशाय नमः ।। ॐ श्रीसप्त-श्रृंग-निवासिन्यै नमः ।। ॐ श्रीसप्त-श्रृंग-निवासिन्यै नमः ।। ॐ श्रीसप्त-श्रृंग-निवासिन्यै नमः ।। ॐ श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राजाय कन्याभिः परिवारिताय नमः ।। ॐ श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राजाय कन्याभिः परिवारिताय नमः ।। ॐ श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राजाय कन्याभिः परिवारिताय नमः ।। ।। पूर्व-पीठिका ।। ॐ नमस्कृत्य महा-देवं, सर्वज्ञं परमेश्वरम् ।। ।। श्री पार्वत्युवाच ।। भगवन् देव-देवेश, शंकर परमेश्वर ! कथ्यतां मे परं स्तोत्रं, कवचं कामिनां प्रियम् ।। जप-मात्रेण यद्वश्यं, कामिनी-कुल-भृत्यवत् । कन्यादि-वश्यमाप्नोति, विवाहाभीष्ट-सिद्धिदम् ।। भग-दुःखैर्न बाध्येत, सर्वैश्वर्यमवाप्नुयात् ।। ।। श्रीईश्वरोवाच ।। अधुना श्रुणु देवशि ! कवचं सर्व-सिद्धिदं । विश्वावसुश्च गन्धर्वो, भक्तानां भग-भाग्यदः ।। कवचं तस्य परमं, कन्यार्थिणां विवाहदं । जपेद् वश्यं जगत् सर्वं, स्त्री-वश्यदं क्षणात् ।। भग-दुःखं न तं याति, भोगे रोग-भयं नहि । लिंगोत्कृष्ट-बल-प्राप्तिर्वीर्य-वृद्धि-करं परम् ।। महदैश्वर्यमवाप्नोति, भग-भाग्यादि-सम्पदाम् । नूतन-सुभगं भुक्तवा, विश्वावसु-प्रसादतः ।। विनियोगः- ॐ अस्यं श्री विश्वावसु-गन्धर्व-राज-कवच-स्तोत्र-मन्त्रस्य विश्व-सम्मोहन वाम-देव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राज-देवता, ऐं क्लीं बीजं, क्लीं श्रीं शक्तिः, सौः हंसः ब्लूं ग्लौं कीलकं, श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राज-प्रसादात् भग-भाग्यादि-सिद्धि-पूर्वक-यथोक्त॒पल-प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगः ।। ऋष्यादि-न्यासः- विश्व-सम्मोहन वाम-देव ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राज-देवतायै नमः हृदि, ऐं क्लीं बीजाय नमः गुह्ये, क्लीं श्रीं शक्तये नमः पादयो, सौः हंसः ब्लूं ग्लौं कीलकाय नमः नाभौ, श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राज-प्रसादात् भग-भाग्यादि-सिद्धि-पूर्वक-यथोक्त॒पल-प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।। षडङ्ग-न्यास – कर-न्यास – अंग-न्यास – ॐ क्लीं ऐं क्लीं अंगुष्ठाभ्यां नमः हृदयाय नमः ॐ क्लीं श्रीं गन्धर्व-राजाय क्लीं तर्जनीभ्यां नमः शिरसे स्वाहा ॐ क्लीं कन्या-दान-रतोद्यमाय क्लीं मध्यमाभ्यां नमः शिखायै वषट् ॐ क्लीं धृत-कह्लार-मालाय क्लीं अनामिकाभ्यां नमः कवचाय हुम् ॐ क्लीं भक्तानां भग-भाग्यादि-वर-प्रदानाय कनिष्ठिकाभ्यां नमः नेत्र-त्रयाय वौषट् ॐ क्लीं सौः हंसः ब्लूं ग्लौं क्लीं करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः अस्त्राय फट् मन्त्रः- ॐ क्लीं विश्वावसु-गन्धर्व-राजाय नमः ॐ ऐं क्लीं सौः हंसः सोहं ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं सौः ब्लूं ग्लौं क्लीं विश्वावसु-गन्धर्व-राजाय कन्याभिः परिवारिताय कन्या-दान-रतोद्यमाय धृत-कह्लार-मालाय भक्तानां भग-भाग्यादि-वर-प्रदानाय सालंकारां सु-रुपां दिव्य-कन्या-रत्नं मे देहि-देहि, मद्-विवाहाभीष्टं कुरु-कुरु, सर्व-स्त्री वशमानय, मे लिंगोत्कृष्ट-बलं प्रदापय, मत्स्तोकं विवर्धय-विवर्धय, भग-लिंग-रोगान् अपहर, मे भग-भाग्यादि-महदैश्वर्यं देहि-देहि, प्रसन्नो मे वरदो भव, ऐं क्लीं सौः हंसः सोहं ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं सौं ब्लूं ग्लौं क्लीं नमः स्वाहा ।। (२०० अक्षर, १२ बार जपें) गायत्री मन्त्रः- ॐ क्लीं गन्धर्व-राजाय विद्महे कन्याभिः परिवारिताय धीमहि तन्नो विश्वावसु प्रचोदयात् क्लीं ।। (१० बार जपें) ध्यानः- क्लीं कन्याभिः परिवारितं, सु-विलसत् कह्लार-माला-धृतन्, स्तुष्टयाभरण-विभूषितं, सु-नयनं कन्या-प्रदानोद्यमम् । भक्तानन्द-करं सुरेश्वर-प्रियं मुथुनासने संस्थितम्, स्रातुं मे मदनारविन्द-सुमदं विश्वावसुं मे गुरुम् क्लीं ।। ध्यान के बाद, उक्त मन्त्र को १२ बार तथा गायत्री-मन्त्र को १० बार जपें । कवच मूल पाठ ।। कवच मूल पाठ ।। क्लीं कन्याभिः परिवारितं, सु-विलसत् माला-धृतन्- स्तुष्टयाभरण-विभूषितं, सु-नयनं कन्या-प्रदानोद्यमम् । भक्तानन्द-करं सुरेश्वर-प्रियं मिथुनासने संस्थितं, त्रातुं मे
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श्रीबटुक-भैरव-साधना श्रीबटुक-भैरव-साधना विनियोगः- ॐ अस्य श्रीबटुक-भैरव-त्रिंशदक्षर-मन्त्रस्य श्रीकालाग्नि-रुद्र ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीआपदुद्धारक देव बटुकेश्वर देवता, ‘ह्रीं’ बीजं, भैरवी-वल्लभ शक्तिः, दण्ड-पाणि कीलकं, मम समस्त-शत्रु-दमने, समस्तापन्निवारणे, सर्वाभीष्ट-प्रदाने वा जपे विनियोगः । ऋष्यादि-न्यासः- श्रीकालाग्नि-रुद्र ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, श्रीआपदुद्धारक देव बटुकेश्वर देवतायै नमः हृदि, ‘ह्रीं’ बीजाय नमः गुह्ये, भैरवी-वल्लभ शक्तये नमः नाभौ, दण्ड-पाणि कीलकाय नमः पादयो, मम… Read More आपदुद्धारक श्रीबटुक-भैरव-अष्टोत्तर-शत-नामावली के प्रयोग आपदुद्धारक श्रीबटुक-भैरव-अष्टोत्तर-शत-नामावली के प्रयोग “भैरव-तन्त्र” के अनुसार आपदुद्धारक श्रीबटुक-भैरव-अष्टोत्तर-शत-नामावली के कुछ प्रयोग इस प्रकार हैं – १॰ रात्रि में तीन मास तक प्रति-दिन ३८ पाठ करने से (कुल ११४० पाठ) विद्या और धन की प्राप्ति होती है। २॰ तीन मास तक रात्रि में नौ अथवा बारह पाठ प्रति-दिन करने से ‘इष्ट-सिद्धि’ प्राप्त होती है ।… Read More श्रीबटुक-अपराध-क्षमापन-स्तोत्र श्रीबटुक-अपराध-क्षमापन-स्तोत्र ॐ गुरोः सेवां त्यक्त्वा गुरुवचन-शक्तोपि न भवे भवत्पूजा-ध्यानाज्जप 1 हवन-यागा 2 द्विरहितः । त्वदर्च-निर्माणे क्वचिदपि न यत्नं व कृतवान् जगज्जाल-ग्रसतो झटिति कुरु हार्दं मयि विभो ।।१ प्रभो ! दुर्गासूनो ! तव शरणतां सोऽधिगतवान् कृपालो ! दुःखार्तः कमपि भवदन्यं प्रकथये । सुहृत् 3 ! सम्पत्तेऽहं सरल 4-विरलः 5 साधकजन स्त्वदन्यः 6 कस्त्राता भव-दहन-दाहं शमयति ।।२… Read More गो-मय गणपति उपासना गो-मय गणपति उपासना ‘गो-मय गणपति उपासना’– २१ दिनों की अति-प्रभावी उपासना है। यह उपासना किसी भी मास की शुक्ल चतुर्थी या शुभ दिन से प्रारम्भ की जा सकती है। संकल्पः- ॐ तत्सत् अद्यैतस्य ब्रह्मणोऽह्यि द्वितीय-प्रहरार्द्धे श्वेत-वराह-कल्पे जम्बू-द्वीपे भरत-खण्डे आर्यावर्त्त-देशे अमुक पुण्य-क्षेत्रे कलि-युगे कलि-प्रथम-चरणे ‘अमुक’-नाम संवत्सरे भाद्रपद-मासे शुक्ल-पक्षे चतुर्थी-तिथौ अमुक-वासरे अमुक-गोत्रोत्पन्नो अमुक नाम-शर्मा-वर्मा-दास गणपति-देवता -प्रीति-पूर्वक त्वरित… Read More श्रीगणेशोपासनाः- शीघ्र विवाह हेतु श्रीगणेशोपासनाः- शीघ्र विवाह हेतु (१) ‘संकष्टी-चतुर्थी’ को उपासना प्रारम्भ करे। स्नान आदि से निवृत्त होकर श्रीगणेश जी के सामने बैठे। तथा-शक्ति ‘पूजन’ करे। ‘पूजा’ में रक्त अक्षत्, रक्त पुष्प, शमी-पत्र तथा दूर्वा चढ़ाए। फिर, हृदय में ‘श्रीगणेश’ का ‘ध्यान’ करे- “श्वेताभं शशि-शेखरं त्रिनयनं श्वेताम्बरालंकृतं। श्रीवाणी-सहितं रमेश-वरदं पीयूष-मूर्ति प्रभुम्।। पीयूषं निज-बाहुभिश्चदधतं पाशांकुशौ मुद्-गरं। नागास्यं सततं सुरैश्च… Read More श्रीगणेशोपासनाः-पुत्र-प्राप्ति हेतु श्रीगणेशोपासनाः-पुत्र-प्राप्ति हेतु (१) श्रीसुधा-गणेश-साधनाः- यह एक निश्चित फल-प्रद साधना है। इसके लिए पहले दूर्वा (दूब) ले आए। दूर्वा तोड़ते समय निम्न मन्त्र पढ़ें- “दूर्वे अमृत-सम्पन्ने, शत-मूले शतांकुरे ! क्षमस्वोत्पाटनं देवि ! महद्दोषोऽत्र विद्यते।।” पूजन-सामग्री एकत्र करने के बाद स्वच्छ होकर भगवान् श्रीगणेश का यथा-शक्ति पूजन करे। पूजन के बाद निम्न-लिखित मन्त्र का जप करे। यथा-… Read More भगवान् श्री गणेश की साधनाएँ भगवान् श्री गणेश की साधनाएँ (१) श्री सिद्ध-विनायक-व्रत ‘श्री सिद्ध-विनायक-व्रत’ भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को करे। पहले निम्न-लिखित मन्त्र का १००० या अधिक ‘जप’ करे। यथा- “सिंहः प्रसेनमवधीत् सिंहो जाम्बवन्ता हतः। सुकुमार कामरोदीस्तव ह्येषः स्यमन्तकः।।” फिर श्री गणेश जी का षोडशोपचार पूजन कर, २१ मोदकों का नैवेद्य रखे। तब २१ दूर्वा लेकर उन्हें गन्ध-युक्त करे और… Read More श्रीऋद्धि-सिद्धि सहित श्रीगणेश-साधना श्रीऋद्धि-सिद्धि सहित श्रीगणेश-साधना ‘कलौ चण्डी-विनायकौ’– कलियुग में ‘चण्डी’ और ‘गणेश’ की साधना ही श्रेयस्कर है। सच पूछा जाए, तो विघ्न-विनाशक गणेश और सर्व-शक्ति-रुपा माँ भगवती चण्डी के बिना कोई उपासना पूर्ण हो ही नहीं सकती। ‘भगवान् गणेश’ सभी साधनाओं के मूल हैं, तो ‘चण्डी
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Category: कवच-स्तोत्र जययुक्त श्रीदेवी – अष्टोत्तर-सहस्रनाम श्रीदुर्गा कवचम् श्रीदुर्गापदुद्धारस्तोत्रम् दुर्गास्तुतिः कामेश्वरीस्तुतिः दुर्गासहस्रनाम स्तोत्रम् / नामावली खंजनदर्शन तथा शुभाशुभ फलानि शमी पूजन प्रयोगः नवदुर्गा प्रार्थना व ध्यान श्रीराम कृत कात्यायनी स्तुति पाण्डवाः कृत कात्यायनी स्तुति शैलपुत्री सहस्रनाम हिमालयराज कृत शैलपुत्री स्तुति दुर्गम संकटनाशन स्तोत्र ब्रह्माण्डमोहनाख्यं दुर्गाकवचम् ब्रह्माण्डविजय दुर्गा कवचम् वंशवृद्धिकरं दुर्गाकवचम् अथवा वंशकवचम् दुर्गाभुवनवर्णनम् वेदोक्त पितृसूक्त पुराणोक्त पितृस्तोत्र गौरिकृतम् हेरम्बस्तोत्रं एकाक्षर गणपति कवचम् अथवा त्रैलोक्यमोहन कवचम् शत्रुसंहारकमेकदन्तस्तोत्रम् विघ्न-निवारकं सिद्धिविनायक स्तोत्रम् उच्छिष्ट गणेश स्तवराजः श्रीउच्छिष्ट गणपति सहस्रनाम स्तोत्रम् श्रीराधास्तोत्रम् गोपालस्तोत्रं अथवा गोपालस्तवराजस्तोत्रम् श्रीकृष्ण सहस्रनाम स्तोत्र श्रीकृष्णस्तोत्रम् चतुर्विंशति-मूर्तिस्तोत्र एवं द्वादशाक्षर स्तोत्र नागपत्नीकृत कृष्ण स्तुतिः गर्भगत कृष्णस्तुतिः श्रीकृष्ण कवचम् श्रीकृष्ण कवचम् – ब्रह्माणं प्रति योगनिद्रयोपदिष्टं मालावतीकृतं महापुरुष स्तोत्रम् श्रीकृष्णसहस्रनामम् – गर्गसंहितान्तर्गतं त्रैलोक्यविजयं श्रीकृष्ण कवचम् कृष्णप्रेमामृतं स्तवं अथवा श्रीकृष्णाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् शिव स्तुतिः श्रीमहाशास्त्रनुग्रहकवचम् स्तोत्रम् श्रीमहाकाल सहस्रनाम स्तोत्रम् महाकाल स्तुतिः श्रीमहाकाल ककाराद्यष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् श्री महाकाल स्तोत्रम् श्रीमहाकाल स्तोत्रम् शिवाष्टोत्तरनामशतक स्तोत्रम् – स्कन्दपुराण शिवाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम् मृत्युञ्जय सहस्रनाम स्तोत्रम् महामृत्युञ्जय कवचम् शिव पञ्चावरण देवानां स्तुतिः श्रीशिवसहस्रनामस्तोत्रम् – महाभारतान्तर्गतम् शिव ताण्डव स्तोत्रम् द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग स्तोत्रम् शिव मानस पूजा श्रीशिवापराधक्षमापणस्तोत्रम् अथवा शिवापराधभञ्जनस्तोत्रम् शिवपंचाक्षरस्तोत्र श्री शिवमहिम्नस्तोत्रम् श्रीशिव प्रातः स्मरण स्तोत्रम् भगवान् शिव को नमस्कार अष्टमूर्तिस्तव अथवा मूर्त्यष्टकस्तोत्र गुह्यकाली शान्ति स्तोत्रम् विश्वमङ्गल गुह्यकाली कवचम् कामाख्या कवचम् जगन्मङ्ल काली-कवचम् – हिन्दी भावार्थ के साथ कालीरहस्ये कालीस्तोत्रम् जगन्मङ्गल काली कवचम् अथवा श्यामा कवचम् गुह्यकाल्याः क्रमस्तवो कामकलाकाल्याः रावणकृतं भुजङ्गप्रयातस्तोत्रम् कामकलाकाली संजीवन गद्यस्तोत्रम् श्रीकामकलाकालीसहस्रनामस्तोत्रम् “ह्रीं श्रीराधायै स्वाहा” श्रीराधा-उपासना – देवी भागवत अनुसार गुह्यकाली संजीवन स्तोत्रम् गुह्यकाली सहस्रनाम स्तोत्रम् गोपिका विरह गीत श्रीयुगलकिशोराष्टक राधामाधव प्रातः स्तवराज श्रीराधा-माधवप्रेम की प्राप्ति के लिये श्रीकृष्ण स्तोत्रम् – भगवान् श्रीकृष्ण की कृपा तथा दिव्य प्रेम की प्राप्ति के लिये श्रीराधा-षडक्षरी महाविद्या की उपासना पाण्डवकृत कात्यायनी स्तुति श्रीराधिका सहस्रनाम स्तोत्रम् (वासुदेवरहस्ये राधातन्त्रे ) श्रीराधिकासहस्रनामस्तोत्रम् श्रीराधा अष्टादशशतीनाम स्तोत्र भुवनेश्वरीकृत राधास्तुतिः त्रिपुरसुन्दर्यादूती वशिनीकृत राधा स्तुतिः श्रीराधा कृपाकटाक्ष स्तोत्र श्रीराधिका त्रैलोक्यमङ्गल कवचम् सर्वरक्षाकर श्रीराधाकवचम् श्रीराधा भक्तिज्ञान कवचम् श्रीराधाकवचस्तोत्रम् ब्रह्मयामले सरस्वतीस्तोत्रं अथवा वाणीस्तवनं याज्ञवल्क्योक्त वृन्दावन-महिमा युगलसरकार-प्रार्थना ब्रह्मणा कृतं श्रीराधास्तोत्रम् श्रीराधास्तोत्रं उद्धवकृतम् श्रीराधास्तवनम् गणेशकृतम् श्रीनारायणकृतं राधाषोडशनामवर्णनम् श्रीराधाप्रार्थना उद्धवकृता श्रीराधास्तोत्रं ब्रह्मेशशेषादिकृतम् श्रीराधिका जगन्मङ्गलकवचम् श्रीकृष्णकृतं श्रीराधास्तोत्रम् श्रीराधायाः परिहार स्तोत्रम् श्रीराधाजी का ‘आनन्दचन्द्रिका’ नामक स्तोत्र श्रीराधा अष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् श्रीकृष्णाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् श्रीजानकीजीवनाष्टकम् श्री नृसिंह कवच Read more at: https://vadicjagat.co.in/sitemap/ ADD
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Gopal Kavach ADD
गोपाल कवच
भगवान श्री कृष्ण जो कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड के आध्यात्मिक गुरु माने जाते हैं। वही इस सृष्टि का पालन और रक्षा करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के स्मरण मात्र से ही मनुष्य अपने जीवन की परेशानियों से मुक्ति पा सकता है। भगवान श्रीकृष्ण के इस दिव्य एवं परम अद्भुत गोपाल कवच (Gopal Kavach) स्तोत्र का को जो भी व्यक्ति प्रतिदिन ध्यान लगाकर पाठ करता है उसकी शत्रुजनित विपत्तियाँ शीघ्र ही नष्ट हो जाती हैं और वो हर स्थान पर विजयी होता है। इस कवच पाठ के बिना भगवान गोपाल की पूजा करने से कोई फल नही मिलता।
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Gopal Sahastranaam: रोग, कर्ज, चिंता और परेशानियों से मुक्ति पाने के लिये करें गोपाल सहस्त्रनाम का पाठ
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When & How To Recite Gopal Kavacham?
कब और कैसे करें गोपाल कवचम् का पाठ?
प्रतिदिन गोपाल कवच के तीन पाठ करने चाहिये। यदि संभव ना हो तो प्रात:काल नियमित रूप से गोपाल कवच (Gopal Kavach) का पाठ करें। इस कवच पाठ को करने से एक अदृश्य सुरक्षा कवच साधक को सभी संकटो से सुरक्षित करता है। इस स्तोत्र का पाठ करने की विधि इस प्रकार से है:-
प्रात:काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
पूजा स्थान पर बैठकर भगवान कृष्ण की ध्यान करें और पूर्ण श्रद्धा-भक्ति के साथ एकाग्रचित्त होकर गोपाल कवचम् (Gopal Kavacham) का शुद्ध उच्चारण के साथ पाठ करें।
फिर उनकी गोपाल रूप की मूर्ति या चित्र की पूजा करें।
धूप – दीप जलाकर भगवान को माखन-मिश्री का भोग लगायें।
भगवान की आरती करें। फिर उनसे अपनी गलतियों के लिये क्षमा माँगें और अपना मनोरथ निवेदन करें। भगवान श्री कृष्ण आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण करेंगे ऐसा मन में विश्वास रखें।
Benefits of Reciting Gopal Kavach
गोपाल कवचम पाठ के लाभ
गोपाल कवच (Gopal Kavach) एक बहुत ही अद्भुत और प्रभावशाली कवच स्तोत्र है। इस कवच स्तोत्र से सुरक्षित मनुष्य
सभी प्रकार के खतरों से सुरक्षित होता है।
हर क्षेत्र में विजय प्राप्त होती है।
संतानहीन को संतान की प्राप्ति होती है।
रोगों से छुटकारा मिलता है।
जादू-टोनों का प्रभाव समाप्त होता है।
धन लाभ के अवसर प्रस्तुत होते हैं।
ग्रहों की बुरी स्थिति और उनके दुष्प्रभावों से छुटकारा मिलता है।
नकारत्मक शक्तियों का प्रभाव हो जाता है।
सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
मन विचलित नही होता और विचारों में दृढ़ता आती है।
शत्रुओं द्वारा उत्पन्न की गई परेशानियों से मुक्ति मिलती है। शत्रु का पराजित होता है।
दुख और पीड़ा का नाश होता है।
साधक जीवन के सुखों को भोगकर अंत समय में विष्णु लोक को प्राप्त करता है।
Shri Gopal Kavach Lyrics
श्री गोपाल कवच
श्रीगणेशाय नमः ॥
श्रीमहादेव उवाच ॥
अथ वक्ष्यामि कवचं गोपालस्य जगद्गुरोः ।
यस्य स्मरणमात्रेण जीवनमुक्तो भवेन्नरः ॥ १ ॥
श्रृणु देवि प्रवक्ष्यामि सावधानावधारय ।
नारदोऽस्य ऋषिर्देवि छंदोऽनुष्टुबुदाह्रतम् ॥ २ ॥
देवता बालकृष्णश्र्च चतुर्वर्गप्रदायकः ।
शिरो मे बालकृष्णश्र्च पातु नित्यं मम श्रुती ॥ ३ ॥
नारायणः पातु कंठं गोपीवन्द्यः कपोलकम् ।
नासिके मधुहा पातु चक्षुषी नंदनंदनः ॥ ४ ॥
जनार्दनः पातु दंतानधरं माधवस्तथा ।
ऊर्ध्वोष्ठं पातु वाराहश्र्चिबुकं केशिसूदनः ॥ ५ ॥
ह्रदयं गोपिकानाथो नाभिं सेतुप्रदः सदा ।
हस्तौ गोवर्धनधरः पादौ पीतांबरोऽवतु ॥ ६ ॥
करांगुलीः श्रीधरो मे पादांगुल्यः कृपामयः ।
लिंगं पातु गदापाणिर्बालक्रीडामनोरमः ॥ ७ ॥
जग्गन्नाथः पातु पूर्वं श्रीरामोऽवतु पश्र्चिमम् ।
उत्तरं कैटभारिश्र्च दक्षिणं हनुमत्प्रभुः ॥ ८ ॥
आग्नेयां पातु गोविंदो नैर्ऋत्यां पातु केशवः ।
वायव्यां पातु दैत्यारिरैशान्यां गोपनंदनः ॥ ९ ॥
ऊर्ध्वं पातु प्रलंबारिरधः कैटभमर्दनः ।
शयानं पातु पूतात्मा गतौ पातु श्रियःपतिः ॥ १० ॥
शेषः पातु निरालम्बे जाग्रद्भावे ह्यपांपतिः ।
भोजने केशिहा पातु कृष्णः सर्वांगसंधिषु ॥ ११ ॥
गणनासु निशानाथो दिवानाथो दिनक्षये ।
इति ते कथितं दिव्यं कवचं परमाद्भुतम् ॥ १२ ॥
यः पठेन्नित्यमेवेदं कवचं प्रयतो नरः ।
तस्याशु विपदो देवि नश्यंति रिपुसंधतः ॥ १३ ।
अंते गोपालचरणं प्राप्नोति परमेश्र्वरि ।
त्रिसंध्यमेकसंध्यं वा यः पठेच्छृणुयादपि ॥ १४ ॥
तं सर्वदा रमानाथः परिपाति चतुर्भुजः ।
अज्ञात्वा कवचं देवि गोपालं पूजयेद्यदि ॥ १५ ॥
सर्व तस्य वृथा देवि जपहोमार्चनादिकम् ।
सशस्रघातं संप्राप्य मृत्युमेति न संशयः ॥ १६ ॥
श्री वाराही कवचम् श्री वाराही कवचम् विनियोगः- ॐ अस्य श्रीवाराही-कवच-मन्त्रस्य श्रीत्रिलोचन-ऋषिः, अनुष्टुप्-छन्दः, श्रीआदि-वाराही-देवता, ग्लैं वीजं, स्वाहा शक्तिः, ऐं कीलकं, अभीष्ट-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः । ऋष्यादि-न्यासः- श्रीत्रिलोचन-ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप्-छन्दसे नमः मुखे, श्रीआदि-वाराही-देवतायै नमः हृदि, ग्लैं वीजाय नमः गुह्ये, स्वाहा शक्तये नमः नाभौ, ऐं कीलकाय नमः पादयो, अभीष्ट-सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।… Read More श्री वाराही मन्त्र प्रयोग श्री वाराही मन्त्र प्रयोग विनियोगः- ॐ अस्य श्रीवाराही मन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, सकल-वशीकरणार्थे जपे विनियोगः । ऋष्यादि-न्यासः- ब्रह्मा ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, सकल-वशीकरणार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।… Read More सर्प-भय-नाशक मनसा-स्तोत्र सर्प-भय-नाशक मनसा-स्तोत्र ध्यानः- चारु-चम्पक-वर्णाभां, सर्वांग-सु-मनोहराम् । नागेन्द्र-वाहिनीं देवीं, सर्व-विद्या-विशारदाम् ।। ।। मूल-स्तोत्र ।। ।। श्रीनारायण उवाच ।।… Read More सर्प-भय-विनाशक नागिनी द्वादश नाम स्तोत्र सर्प-भय-विनाशक नागिनी द्वादश नाम स्तोत्र जरत्कारुर्जगद्-गौरी, मनसा सिद्ध-योगिनी । वैष्णवी नाग-भगिनी, शैवी नागेश्वरी तथा ।। जरत्कारु-प्रियाऽऽस्तोक-माता विष-हरेति च । महा-ज्ञान-युता चैव, सा देवी विश्व-पूजिता ।। द्वादशैतानि नामानि, पूजा-काले तु यः पठेत् । तस्य नाग-भयं नास्ति, सर्वत्र विजयी भवेत् ।।… Read More नव-दुर्गा-स्तुति नव-दुर्गा-स्तुति अमर-पति-मुकुट-चुम्बित-चरणाम्बुज-सकल-भुवन-सुख-जननी। जयति जगदीश-वन्दिता सकलामल-निष्कला दुर्गा।।१ विकृत-नख-दशन-भूषण-रुधिर-वसाच्क्षुरित-खड्ग-कृत-हस्ता। जयति नर-मुण्ड-मण्डित-पिशित-सुरासव-रता चण्डी।।२… Read More श्रीपर-देवी-सूक्तम् श्रीपर-देवी-सूक्तम् विनियोगः- ॐ अस्य श्रीपर-देवी-सूक्त-माला-मन्त्रस्य मार्कण्डेय-मेधा-ऋषी । गायत्र्यादि-नाना-विधानि छन्दांसि । त्रि-शक्ति-रुपिणी चण्डिका देवता । ऐं वीजं । ह्रीं शक्तिः । क्लीं कीलकं । मम-चिन्तित-सकल-मनोरथ-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः । ऋष्यादि-न्यासः- मार्कण्डेय-मेधा-ऋषिभ्यां नमः शिरसि । गायत्र्यादि-नाना-विधानि छन्दोभ्यो नमः मुखे । त्रि-शक्ति-रुपिणी चण्डिका देवतायै नमः हृदि । ऐं वीजाय नमः गुह्ये । ह्रीं शक्तये नमः पादयोः । क्लीं कीलकाय… Read More श्रीदुर्गा-कर्पूर-स्तवम् श्रीदुर्गा-कर्पूर-स्तवम् ‘ऐं’ जपन्ति तव देवि ! ये मनुं भक्ति-नम्र-मनुजा विचक्षणाः। गद्य-पद्य-प्रभवः सुविलाशो भासते हि वचसा खलु तेषाम्।।१ ‘ह्रीं-ह्रीमि’त्येव मन्त्रं जपति यदि जनो भक्ति-नम्रो नितान्तम्, तद्-गेहे नैव लक्ष्मीस्त्यजति गिरि-सुते ! ते प्रसादात् कदापि। दासो-भूताश्च सर्वे भगवति ! मनुजाऽधीश्वरास्तस्य को वा, वक्तुं भूयात् समर्थः तव शिव-दयिते ! ह्रीं-मनोर्वै प्रभावम्।।२… Read More भगवती मंगल-चण्डिका भगवती मंगल-चण्डिका ‘चण्डी’ शब्द का प्रयोग ‘दक्षा’ (चतुरा) के अर्थ में होता है और ‘मंगल’ शब्द कल्याण का वाचक है। जो मंगल-कल्याण करने में दक्ष हो, वही “मंगल-चण्डिका” कही जाती है। ‘दुर्गा’ के अर्थ में भी चण्डी शब्द का प्रयोग होता है और मंगल शब्द भूमि-पुत्र मंगल के अर्थ में भी आता है। अतः जो… Read More श्रीदुर्गा-स्तवन श्री अर्जुन-कृत ‘श्रीदुर्गा-स्तवन’ ।। संजय उवाच ।। धार्तराष्ट्र-बलं दृष्ट्वा, युद्धाय समुपस्थितम । अर्जुनस्य हितार्थाय, कृष्णो वचनमब्रवीत् ।। 1 ।। ।। श्रीभगवानुवाच ।। शुचिर्भूत्वा महा-बाहि, संग्रामाभिमुखे स्थितः । पराजयाय शत्रूणां, दुर्गा-स्तोत्रमुदीरय ।। 2 ।।… Read More श्री दुर्गा कवचम् (रुद्रयामलोक्त) श्री दुर्गा कवचम् (रुद्रयामलोक्त) ।।श्री भैरव उवाच।। अधुना देवि वक्ष्येऽहं कवचं मन्त्रगर्भकम् । दुर्गायाः सारसर्वस्वं कवचेश्वरसञ्ज्ञकम् ।।१ परमार्थप्रदं नित्यं महापातकनाशनम् । योगिप्रियं योगीगम्यं देवानामपि दुर्लभम् ।।२ विना दानेन मन्त्रस्य सिद्धिर्देवि कलौ भवेत् । धारणादस्य देवेशि शिवस्त्रैलोक्यनायकः ।।३… Read More ADDhttps://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/6/6c/Akkalot_maharaj.png
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शरभहृदय स्तोत्रम् ॥ शरभहृदय स्तोत्रम् ॥ किसी भी देवता का हृदय मित्र के समान कार्य करता है, शतनाम अंगरक्षक के समान एवं सहस्रनाम सेना के समान रखा करता है अत: इनका अलग-अलग महत्व है । भूमिका के अनुसार समुन्द्र मंथन के समय विष्णु ने शरभ हृदय की २१ आवृति ३ मास तक की तब शरभराज प्रकट ने… Read More प्रत्यंगिरा स्तोत्रम् ॥ प्रत्यंगिरा स्तोत्रम् ॥ ॥ ॐ नमः श्री कालसंकर्षिण्यै ॥ ॥ भगवान शिव उवाच ॥ एँ ख्फ्रें नमोऽस्तु ते महामाये देहातीते निरञ्जने । प्रत्यंगिरा जगद्धात्रि राजलक्ष्मी नमोऽस्तु ते ॥ वर्ण देहा महागौरी साधकेच्छा प्रवर्तते । पददेहामहास्फार परासिद्धि समुत्थिता ॥ तत्त्वदेहास्थिता देवि साधकान् ग्रहा स्मृता । महाकुण्डलिनी प्रोक्ता सहस्रदलस्य च भेदिनी ॥… Read More कालीदास कृत प्रत्यङ्गिरा मालामन्त्र ॥ कालीदास कृत प्रत्यङ्गिरा मालामन्त्र ॥ Pratyangira Mala Mantra ॥ ॐ नमः शिवाये ॥ ॥ श्री भैरव उवाच ॥ ” निवसति करवीरे सर्वदाया श्मशाने विनत-जन हिताय प्रेत-रूढे महेशो हि मकर हिम-शुभ्रां पञ्च-वक्त्राम्-माद्यांदिशतु-दश-भुजाया सा श्रियं सिद्धि-लक्ष्मीः ॥ ऐं ख्फ्रे जय जय जगदम्ब प्रणत-हरिहर हिरण्य-गर्भ ।… Read More ॥ गायत्री स्तवराजः ॥ ॥ गायत्री स्तवराजः ॥ इस स्तव में श्लोक ४, ५, ८, १०, ११, २५, २६ में अन्य मंत्रों के प्रयोग हैं। विनियोगः- “ॐ अस्य श्री गायत्री स्तवराज मन्त्रस्य श्रीविश्वामित्रः ऋषिः सकल जननी चतुष्पदा गायत्री परमात्मा देवता। सर्वोत्कृष्टं परम धाम तत्-सवितुर्वरेण्यं बीजं भर्गो देवस्य धीमहि शक्तिः। धियो यो नः प्रचोदयात् कीलकं। ॐ भूः ॐ भुव ॐ… Read More श्रीगायत्री सहस्रनामस्तोत्रम् एवं नामावली श्रीमद्देवी भागवतांतर्गत ॥ श्रीगायत्रीसहस्रनामस्तोत्रम् श्रीमद्देवी भागवतांतर्गत ॥ विनियोगः- ॐ अस्य श्रीगायत्री अष्टोत्तर सहस्रनाम स्तोत्रस्य श्री ब्रह्मा ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः श्रीदेवी गायत्री देवता हलो बीजानि स्वराः शक्त्यः सर्वाभीष्ट सिद्ध्यर्थे पाठे विनियोगः । ऋष्यादिन्यासः- श्रीब्रह्मा ऋषये नमः शिरसि । अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे । श्रीदेवी गायत्र्यै नमः हृदि । हल्भ्यो बीजेभ्यो नमः गुह्ये । स्वरेभ्यः शक्तिभ्यः नमः पादयोः ।… Read More ॥ गायत्र्यथर्वशीर्षम् ॥ ॥ गायत्र्यथर्वशीर्षम् ॥ ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ नमस्कृत्य भगवान् याज्ञवल्क्यः स्वयं परिपृच्छति- त्वं ब्रूहि भगवन् ! गायत्र्या उत्पत्तिं श्रोतुमिच्छामि ॥ १ ॥ ब्रह्मोवाच – प्रणवेन व्याहृतयः प्रवर्तन्ते । तमसस्तु परं ज्योतिः कः पुरुषः स्वयम्भूर्विष्णुरिति हताः स्वाङ्गुल्याः मथयेत् पाठान्तर – … Read More ॥ गायत्रीहृदयम् ॥ ॥ गायत्रीहृदयम् ॥ ॥ अथ श्रीमद्देवीभागवते महापुराणे गायत्रीहृदयम् ॥ ॥ नारद उवाच ॥ भगवन् देवदेवेश भूतभव्य जगत्प्रभो । कवचं च श्रृतं दिव्यं गायत्रीमन्त्रविग्रहम् ॥ १ ॥ अधुना श्रोतुमिच्छामि गायत्रीहृदयं परम् । यद्धारणाद्भवेत्पुण्यं गायत्रीजपतोऽखिलम् ॥ २ ॥ ॥ श्रीनारायण उवाच ॥ देव्याश्च हृदयं प्रोक्तं नारदाथर्वणे स्फुटम् । तदेवाहं प्रवक्ष्यामि रहस्यातिरहस्यकम् ॥ ३ ॥ विराड्रूपां महादेवीं गायत्रीं… Read More ॥ गायत्री पञ्जर स्तोत्रम् ॥ ॥ गायत्री पञ्जर स्तोत्रम् ॥ गायत्री पञ्जर स्तोत्र (Gayatri Panjara Stotram) को नियमित पाठ करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाए पूर्ण होती है गायत्री पञ्जर स्तोत्र पढ़ने से साधना में सफ़लता, अपने शरीर की रक्षा कवच का कार्य करता हैं ! पीपल की छाया (पीपल मूल) में जप करने से राजा का वशीकरण, बिल्व मूल… Read More कालभैरव ( कालभैरवाष्टमी ) कालभैरव ( कालभैरवाष्टमी ) ।। ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम:।। भगवान शंकर के अवतारों में भैरव का अपना एक विशिष्ट महत्व है। तांत्रिक पद्धति में भैरव शब्द की निरूक्ति उनका विराट रूप प्रतिबिम्बित करती हैं। वामकेश्वर तंत्र की योगिनी-हदय-दीपिका टीका में अमृतानंद नाथ कहते हैं- ‘विश्वस्य भरणाद् रमणाद् वमनात्… Read More मंत्रात्मक गायत्री कवच ॥ मंत्रात्मक गायत्री कवच ॥ देव देव महादेव! संसारार्णव तारक ! गायत्री कवचं देव ! कृपया कथय प्रभो । ॥ महादेव उवाच ॥ मूलाधारेषु या नित्या कुण्डली तत्त्व-रूपिणी । सूक्ष्माति सूक्ष्मा परमा विसतन्तु-स्वरूपिणी ॥ विद्युत-पुञ्ज-प्रतीकाशा कुण्डलाकृति-रूपिणी । परम-ब्रह्म गृहिणी पञ्चाशद् वर्ण-रूपिणी ॥ शिवस्य नर्तकी नित्या परम् ब्रह्म-पूजिता । ब्रह्मणः सैव गायत्री सच्चिदानन्दरूपिणी ॥ तद् भ्रमावर्त्तवातोऽयं… Read More ttps://vadicjagat.co.in/sitemap/ https://vadicjagat.co.in/sitemap/ https://vadicjagat.co.in/sitemap/ https://vadicjagat.co.in/sitemap/
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श्रीकामकलाकालीसहस्रनामस्तोत्रम् ॥ श्रीकामकलाकालीसहस्रनामस्तोत्रम् ॥ ॥ देव्युवाच ॥ त्वत्तः श्रुतं मया नाथ देव देव जगत्पते । देव्याः कामकलाकाल्या विधानं सिद्धिदायकम् ॥ १ ॥ त्रैलोक्यविजयस्यापि विशेषेण श्रुतो मया । तत्प्रसङ्गेन चान्यासां मन्त्रध्याने तथा श्रुते ॥ २ ॥ इदानीं जायते नाथ शुश्रुषा मम भूयसी । नाम्नां सहस्रे त्रिविधमहापापौघहारिणि ॥ ३ ॥ श्रुतेन येन देवेश धन्या स्यां भाग्यवत्यपि ।… Read More “ह्रीं श्रीराधायै स्वाहा” श्रीराधा-उपासना – देवी भागवत अनुसार ॥ ह्रीं श्रीराधायै स्वाहा ॥ श्रीराधा-उपासना – देवी भागवत अनुसार भगवान् नारायण कहते हैं — नारद ! सुनो, यह वेदवर्णित रहस्य तुम्हें बताता हूँ । यह सर्वोत्तम एवं परात्पर साररहस्य जिस किसी के सम्मुख नहीं कहना चाहिये । इस रहस्य को सुनकर दूसरों से कहना उचित नहीं है; क्योंकि यह अत्यन्त गुह्य रहस्य है ।… Read More गुह्यकाली संजीवन स्तोत्रम् ॥ अथ गुह्यकाली संजीवन स्तोत्रम् ॥ इस स्तोत्र को पढ़े बिना गुह्यकाली सहस्रनाम पठन का पूरा फल नहीं मिलता । अत: इस स्तोत्र का पाठ अवश्य करें । ॥ महाकाल उवाच ॥ इदं स्तोत्रं पुरा देव्या त्रिपुरघ्नाय कीर्तितम् । त्रिपुरघ्नोऽपि मां प्रादादुपदिश्य मनुं प्रिये ॥ १ ॥ गद्याकारं च स विभुः स्तोत्रं तस्यै चकार ह… Read More गुह्यकाली सहस्रनाम स्तोत्रम् ॥ अथ गुह्यकाली सहस्रनाम स्तोत्रम् ॥ ॥ पूर्वपीठिका ॥ ॥ देव्युवाच ॥ यदुक्तं भवता पूर्वं प्राणेश करुणावशात् ॥ १ ॥ नाम्नां सहस्रं देव्यास्तु तदिदानीं वदप्रभो । ॥ श्री महाकालोवाच ॥ अतिप्रीतोऽस्मि देवेशि तवाहं वचसामुना ॥ २ ॥ सहस्रनामस्तोत्रं यत् सर्वेषामुत्तमोत्तमम् । सुगोपितं यद्यपि स्यात् कथयिष्ये तथापि ते ॥ ३ ॥ देव्याः सहस्रनामाख्यं स्तोत्रं पापौघमर्दनम् ।… Read More गोपिका विरह गीत ॥ गोपिका विरह गीत ॥ एहि मुरारे कुजविहारे एहि प्रणतजनबन्धो । हे माधव मधुमथन वरेण्य केशव करुणासिन्धो । (ध्रुवपदम्) रासनिकुञ्जे गुञ्जति नियतं भ्रमरशतं किल कान्त । एहि निभृतपथपान्थ । त्वामिह याचे दर्शनदानं हे मधुसूदन शान्त ॥ १ ॥… Read More श्रीयुगलकिशोराष्टक ॥ श्रीयुगलकिशोराष्टक ॥ श्रीरूपगोस्वामीजी द्वारा रचित श्रीयुगलकिशोराष्टक श्री रूप गोस्वामी (१४९३ – १५६४), वृंदावन में चैतन्य महाप्रभु द्वारा भेजे गए छः षण्गोस्वामी में से एक थे। वे कवि, गुरु और दार्शनिक थे। वे सनातन गोस्वामी के भाई थे। इनका जन्म १४९३ ई (तदनुसार १४१५ शक.सं.) को हुआ था। इन्होंने २२ वर्ष की आयु में गृहस्थाश्रम… Read More राधामाधव प्रातः स्तवराज ॥ राधामाधव प्रातः स्तवराज ॥ प्रातः स्मरामि युगकेलिरसाभिषिक्तं वृन्दावनं सुरमणीयमुदारवृक्षम् । सौरीप्रवाहवृतमात्मगुणप्रकाशं ADD ttps://vadicjagat.co.in/sitemap/ https://vadicjagat.co.in/sitemap/ https://vadicjagat.co.in/sitemap/ https://vadicjagat.co.in/sitemap/
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श्री विश्वावसु गन्धर्व-राज कवच स्तोत्रम् श्री विश्वावसु गन्धर्व-राज कवच स्तोत्रम् प्रणाम-मन्त्रः- ॐ श्रीगणेशाय नमः ।। ॐ श्रीगणेशाय नमः ।। ॐ श्रीगणेशाय नमः ।। ॐ श्रीसप्त-श्रृंग-निवासिन्यै नमः ।। ॐ श्रीसप्त-श्रृंग-निवासिन्यै नमः ।। ॐ श्रीसप्त-श्रृंग-निवासिन्यै नमः ।। ॐ श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राजाय कन्याभिः परिवारिताय नमः ।। ॐ श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राजाय कन्याभिः परिवारिताय नमः ।। ॐ श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राजाय कन्याभिः परिवारिताय नमः ।। ।। पूर्व-पीठिका ।। ॐ नमस्कृत्य महा-देवं, सर्वज्ञं… Read More गन्धर्व-राज विश्वावसु गन्धर्व-राज विश्वावसु गन्धर्व-राज विश्वावसु की पूजा पद्धति गन्धर्व-राज विश्वावसु की उपासना मुख्यतः ‘वशीकरण’ और ‘विवाह’ के लिये की जाती है। स्त्री-वशीकरण और विवाह के लिये इनके प्रयोग अमोघ है। मन्त्र- “ॐ विश्वावसु-गन्धर्व-राज-कन्या-सहस्त्रमावृत, ममाभिलाषितां अमुकीं कन्यां प्रयच्छ स्वाहा।” विनियोग- ॐ अस्य श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राज-मन्त्रस्य श्रीरुद्र-ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राजः देवता, ह्रीं बीजं, स्वाहा शक्तिः, विश्वावसु-गन्धर्व-राज प्रीति-पूर्वक ममाभिलाषितां अमुकीं कन्यां… Read More श्रीबटुक-भैरव-साधना श्रीबटुक-भैरव-साधना विनियोगः- ॐ अस्य श्रीबटुक-भैरव-त्रिंशदक्षर-मन्त्रस्य श्रीकालाग्नि-रुद्र ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीआपदुद्धारक देव बटुकेश्वर देवता, ‘ह्रीं’ बीजं, भैरवी-वल्लभ शक्तिः, दण्ड-पाणि कीलकं, मम समस्त-शत्रु-दमने, समस्तापन्निवारणे, सर्वाभीष्ट-प्रदाने वा जपे विनियोगः । ऋष्यादि-न्यासः- श्रीकालाग्नि-रुद्र ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, श्रीआपदुद्धारक देव बटुकेश्वर देवतायै नमः हृदि, ‘ह्रीं’ बीजाय नमः गुह्ये, भैरवी-वल्लभ शक्तये नमः नाभौ, दण्ड-पाणि कीलकाय नमः पादयो, मम… Read More आपदुद्धारक श्रीबटुक-भैरव-अष्टोत्तर-शत-नामावली के प्रयोग आपदुद्धारक श्रीबटुक-भैरव-अष्टोत्तर-शत-नामावली के प्रयोग “भैरव-तन्त्र” के अनुसार आपदुद्धारक श्रीबटुक-भैरव-अष्टोत्तर-शत-नामावली के कुछ प्रयोग इस प्रकार हैं – १॰ रात्रि में तीन मास तक प्रति-दिन ३८ पाठ करने से (कुल ११४० पाठ) विद्या और धन की प्राप्ति होती है। २॰ तीन मास तक रात्रि में नौ अथवा बारह पाठ प्रति-दिन करने से ‘इष्ट-सिद्धि’ प्राप्त होती है ।… Read More श्रीबटुक-अपराध-क्षमापन-स्तोत्र श्रीबटुक-अपराध-क्षमापन-स्तोत्र ॐ गुरोः सेवां त्यक्त्वा गुरुवचन-शक्तोपि न भवे भवत्पूजा-ध्यानाज्जप 1 हवन-यागा 2 द्विरहितः । त्वदर्च-निर्माणे क्वचिदपि न यत्नं व कृतवान् जगज्जाल-ग्रसतो झटिति कुरु हार्दं मयि विभो ।।१ प्रभो ! दुर्गासूनो ! तव शरणतां सोऽधिगतवान् कृपालो ! दुःखार्तः कमपि भवदन्यं प्रकथये । सुहृत् 3 ! सम्पत्तेऽहं सरल 4-विरलः 5 साधकजन स्त्वदन्यः 6 कस्त्राता भव-दहन-दाहं शमयति ।।२… Read More गो-मय गणपति उपासना गो-मय गणपति उपासना ‘गो-मय गणपति उपासना’– २१ दिनों की अति-प्रभावी उपासना है। यह उपासना किसी भी मास की शुक्ल चतुर्थी या शुभ दिन से प्रारम्भ की जा सकती है। संकल्पः- ॐ तत्सत् अद्यैतस्य ब्रह्मणोऽह्यि द्वितीय-प्रहरार्द्धे श्वेत-वराह-कल्पे जम्बू-द्वीपे भरत-खण्डे आर्यावर्त्त-देशे अमुक पुण्य-क्षेत्रे कलि-युगे कलि-प्रथम-चरणे ‘अमुक’-नाम संवत्सरे भाद्रपद-मासे शुक्ल-पक्षे ADD
2025 M05 29, Thu 17:29:02 GMT+5:30 ttps://vadicjagat.co.in/sitemap/ https://vadicjagat.co.in/sitemap/ https://vadicjagat.co.in/sitemap/ https://vadicjagat.co.in/sitemap/ ttps://vadicjagat.co.in/sitemap/ https://vadicjagat.co.in/sitemap/ https://vadicjagat.co.in/sitemap/ https://vadicjagat.co.in/sitemap/ ttps://vadicjagat.co.in/sitemap/ https://vadicjagat.co.in/sitemap/ https://vadicjagat.co.in/sitemap/ https://vadicjagat.co.in/sitemap/
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वन्दे परागम-विद्यां, सिद्धि-चण्डीं सङ्गिताम् । महा-सप्तशती-मन्त्र-स्वरुपां सर्व-सिद्धिदाम् ।।
विनियोगः ॐ अस्य सर्व-विज्ञान-महा-राज्ञी-सप्तशती रहस्याति-रहस्य-मयी-परा-शक्ति श्रीमदाद्या-भगवती-सिद्धि-चण्डिका-सहस्राक्षरी-महा-विद्या-मन्त्रस्य श्रीमार्कण्डेय-सुमेधा ऋषि, गायत्र्यादि नाना-विधानि छन्दांसि, नव-कोटि-शक्ति-युक्ता-श्रीमदाद्या-भगवती-सिद्धि-चण्डी देवता, श्रीमदाद्या-भगवती-सिद्धि-चण्डी-प्रसादादखिलेष्टार्थे जपे विनियोगः ।
ऋष्यादिन्यासः श्रीमार्कण्डेय-सुमेधा ऋषिभ्यां नमः शिरसि, गायत्र्यादि नाना-विधानि छन्देभ्यो नमः मुखे, नव-कोटि-शक्ति-युक्ता-श्रीमदाद्या-भगवती-सिद्धि-चण्डी देवतायै नमः हृदि, श्रीमदाद्या-भगवती-सिद्धि-चण्डी-प्रसादादखिलेष्टार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।
महाविद्यान्यासः ॐ श्रीं नमः सहस्रारे । ॐ हें नमः भाले। क्लीं नमः नेत्र-युगले। ॐ ऐं नमः कर्ण-द्वये। ॐ सौं नमः नासा-पुट-द्वये। ॐ ॐ नमो मुखे। ह्रीं ॐ नमः कण्ठे। ॐ श्रीं नमो हृदये। ॐ ऐं नमो हस्त-युगे। ॐ क्लें नमः उदरे। ॐ सौं नमः कट्यां। ॐ ऐं नमो गुह्ये। ॐ क्लीं नमो जङ्घा-युगे। ॐ ह्रीं नमो जानु-द्वये। ॐ श्रीं नमः पादादि-सर्वांगे।। ॐ या माया मधु-कैटभ-प्रमथनी, या माहिषोन्मूलनी, या धूम्रेक्षण-चण्ड-मुण्ड-दलनी, या रक्त-बीजाशनी। शक्तिः शुम्भ-निशुम्भ-दैत्य-मथनी, या सिद्ध-लक्ष्मी परा, सा देवी नव-कोटि-मूर्ति-सहिता, मां पातु विश्वेश्वरी।। ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ह्मौं श्रीं ह्रीं क्लौं ऐं सौं ॐ ह्रीं श्रीं ऐं क्लीं सौं ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं जय जय महा-लक्ष्मि जगदाद्ये बीज-सुरासुर-त्रिभुवन-निदाने दयांकुरे सर्व-तेजो-रुपिणि महा-महा-महिमे महा-महा-रुपिणि महा-महा-माये महा-माया-स्वरुपिणि विरञ्चि-संस्तुते ! विधि-वरदे सच्चिदानन्दे विष्णु-देह-व्रते महा-मोहिनि मधु-कैटभ-जिह्वासिनि नित्य-वरदान-तत्परे ! महा-स्वाध्याय-वासिनि महा-महा-तेज्यधारिणि ! सर्वाधारे सर्व-कारण-करणे अचिन्त्य-रुपे ! इन्द्रादि-निखिल-निर्जर-सेविते ! साम-गानं गायन्ति पूर्णोदय-कारिणि! विजये जयन्ति अपराजिते सर्व-सुन्दरि रक्तांशुके सूर्य-कोटि-शशांकेन्द्र-कोटि-सुशीतले अग्नि-कोटि-दहन-शीले यम-कोटि-क्रूरे वायु-कोटि-वहन-सुशीतले ! ॐ-कार-नाद-बिन्दु-रुपिणि निगमागम-मार्ग-दायिनि महिषासुर-निर्दलनि धूम्र-लोचन-वध-परायणे चण्ड-मुण्डादि-सिरच्छेदिनि रक्त-बीजादि-रुधिर-शोषणि रक्त-पान-प्रिये महा-योगिनि भूत-वैताल-भैरवादि-तुष्टि-विधायनि शुम्भ-निशुम्भ-शिरच्छेदिनि ! निखिला-सुर-बल-खादिनि त्रिदश-राज्य-दायिनि सर्व-स्त्री-रत्न-रुपिणि दिव्य-देह-निर्गुणे सगुणे सदसत्-रुप-धारिणि सुर-वरदे भक्त-त्राण-तत्परे। वर-वरदे सहस्त्राक्षरे अयुताक्षरे सप्त-कोटि-चामुण्डा-रुपिणि नव-कोटि-कात्यायनी-रुपे अनेक-लक्षालक्ष-स्वरुपे इन्द्राग्नि ब्रह्माणि रुद्राणि ईशानि भ्रामरि भीमे नारसिंहे ! त्रय-त्रिंशत्-कोटि-दैवते अनन्त-कोटि-ब्रह्माण्ड-नायिके चतुरशीति-मुनि-जन-संस्तुते ! सप्त-कोटि-मन्त्र-स्वरुपे महा-काले रात्रि-प्रकाशे कला-काष्ठादि-रुपिणि चतुर्दश-भुवन-भावाविकारिणि गरुड-गामिनि ! कों-कार हों-कार ह्रीं-कार श्रीं-कार दलेंकार जूँ-कार सौं-कार ऐं-कार क्लें-कार ह्रीं-कार ह्रौं-कार हौं-कार-नाना-बीज-कूट-निर्मित-शरीरे नाना-बीज-मन्त्र-राग-विराजते ! सकल-सुन्दरी-गण-सेवते करुणा-रस-कल्लोलिनि कल्प-वृक्षाधिष्ठिते चिन्ता-मणि-द्वीपेऽवस्थिते मणि-मन्दिर-निवासे ! चापिनि खडिगनि चक्रिणि गदिनि शंखिनि पद्मिनि निखिल-भैरवाधिपति-समस्त-योगिनी-परिवृते ! कालि कङ्कालि तोर-तोतले सु-तारे ज्वाला-मुखि छिन्न-मस्तके भुवनेश्वरि ! त्रिपुरे लोक-जननि विष्णु-वक्ष-स्थलालङ्कारिणि ! अजिते अमिते अमराधिपे अनूप-सरिते गर्भ-वासादि दुःखापहारिणि मुक्ति-क्षेमाधिषयनि शिवे शान्ति-कुमारि देवि ! सूक्त-दश-शताक्षरे चण्डि चामुण्डे महा-कालि महा-लक्ष्मि महा-सरस्वति त्रयी-विग्रहे ! प्रसीद-प्रसीद सर्व-मनोरथान् पूरय सर्वारिष्ट-विघ्नं छेदय-छेदय, सर्व-ग्रह-पीडा-ज्वरोग्र-भयं विध्वंसय-विध्वंसय, सर्व-त्रिभुवन-जातं वशय-वशय, मोक्ष-मार्गं दर्शय-दर्शय, ज्ञान-मार्गं प्रकाशय-प्रकाशय, अज्ञान-तमो नाशय-नाशय, धन-धान्यादि कुरु-कुरु, सर्व-कल्याणानि कल्पय-कल्पय, मां रक्ष-रक्ष, सर्वापद्भ्यो निस्तारय-निस्तारय। मम वज्र-शरीरं साधय-साधय, ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमोऽस्तु ते स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमो दैव्यै महा-देव्यै, शिवायै सततं नमः। नमः प्रकृत्यै भद्रायै, नियताः प्रणताः स्म ताम्।।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सर्व-मंगल-माङ्गल्ये, शिवे सर्वार्थ-साधिके ! शरण्ये त्र्यम्बके गौरि ! नारायणि नमोऽस्तु ते ।।
सर्व-स्वरुपे सर्वेशे, सर्व-शक्ति-समन्विते ! भयेभ्यस्त्राहि नो देवि ! दुर्गे देवि ! नमोऽस्तु ते।।
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