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Saturday, 23 November 2019

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Wednesday, 8 March 2017

Mahavidya Shri Baglamukhi Sadhana Aur Siddhi
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Shatru Baadha Nivaran Baglamukhi Pratyangira Kavach
Posted by sumit girdharwal
Shatru Baadha Nivaran Baglamukhi Pratyangira Kavach शत्रु बाधा  निवारण बगलामुखी प्रत्यंगिरा कवच
For Ma baglamukhi mantra diksha and sadhna guidance email to sumitgirdharwal@yahoo.com or call on 9540674788. For more info always visit http://www.yogeshwaranand.org
गुरू के संरक्षण में बगलामुखी प्रत्यंगिरा कवच का पाठ करने से भयंकर से भयंकर तंत्र प्रयोगो एवं ऊपरी बाधा का निवारण होता हैा     यदि किसी व्यक्ति का रोजगार एवं व्यापार शत्रु ने बंधवा दिया हो तो गुरू मुख से इस कवच को लेकर नियमित रूप से 108 बार        पाठ करें
This kavach helps you recover from any black magic effect. If you chant it regularly your enemies will    calm down and will become your friends. Effect of  Tantra Prayoga done against you will be  removed by reciting this kavach.
Tantra Badha Nivaran Baglamukhi Pratyangira Kavach
Introduction of Dus Mahavidya Baglamukhi in Hindi
अष्टम  महाविद्या बगलामुखी का  परिचय हिंदी में                                                     Download this Article
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Devi Baglamukhi Manas Puja
Devi Baglamukhi Manas Pujan
भगवती बगला सुधा-समुद्र के मध्य में स्थित मणिमय  मण्डप में रत्नवेदी पर रत्नमय सिंहासन पर विराजती हैं।  पीतवर्णा होने के कारण ये पीत रंग के ही वस्त्र, आभूषण व माला धारण किये हुए हैं।इनके एक हाथ में शत्रु की  जिह्वा  और दूसरे हाथ में मुद्गर  है। व्यष्टि रूप में शत्रुओं का नाश करने वाली और समष्टि रूप में परम ईश्वर की सहांर-इच्छा  की अधिस्ठात्री शक्ति बगला है।
श्री प्रजापति ने बगला उपासना वैदिक रीती से की और वे सृस्टि की संरचना करने में सफल हुए। श्री प्रजापति ने इस    विद्या का उपदेश सनकादिक मुनियों को दिया।  सनत्कुमार ने इसका उपदेश श्री नारद को और श्री नारद ने सांख्यायन  परमहंस को दिया, जिन्होंने छत्तीस पटलों में “बगला तंत्र” ग्रन्थ की रचना की। “स्वतंत्र तंत्र” के अनुसार भगवान् विष्णु  इस विद्या के उपासक हुए। फिर श्री परशुराम जी और आचार्य द्रोण इस विद्या के उपासक हुए। आचार्य द्रोण ने यह  विद्या परशुराम जी से ग्रहण की।
श्री बगला महाविद्या ऊर्ध्वाम्नाय के अनुसार ही उपास्य हैं, जिसमें स्त्री (शक्ति) भोग्या नहीं बल्कि पूज्या है। बगला    महाविद्या “श्री कुल” से सम्बंधित हैं और अवगत हो कि श्रीकुल की सभी महाविद्याओं की उपासना अत्यंत सावधानी पूर्वक गुरु के मार्गदर्शन में शुचिता बनाते हुए, इन्द्रिय निग्रह पूर्वक करनी चाहिए। फिर बगला शक्ति तो अत्यंत तेजपूर्ण शक्ति हैं, जिनका उद्भव ही स्तम्भन हेतु हुआ था। इस विद्या के प्रभाव से ही महर्षि  च्यवन ने इंद्र के वज्र को स्तंभित कर दिया था। श्रीमद् गोविंदपाद की समाधि में विघ्न डालने से रोकने के लिए आचार्य श्री शंकर ने रेवा नदी का स्तम्भन इसी महाविद्या के प्रभाव से किया था। महामुनि श्री निम्बार्क ने कस्सी ब्राह्मण को इसी विद्या के प्रभाव से नीम के वृक्ष पर, सूर्यदेव का दर्शन कराया था। श्री बगलामुखी को “ब्रह्मास्त्र विद्या” के नामे से भी जाना जाता है।  शत्रुओं का दमन और विघ्नों का शमन करने में विश्व में इनके समकक्ष कोई अन्य देवता नहीं है।
Baglamukhi Mantras in Hindi
भगवती बगलामुखी को स्तम्भन की देवी कहा गया है।  स्तम्भनकारिणी शक्ति नाम रूप से व्यक्त एवं अव्यक्त सभी पदार्थो की स्थिति का आधार पृथ्वी के रूप में शक्ति ही है, और बगलामुखी उसी स्तम्भन शक्ति की अधिस्ठात्री देवी हैं।  इसी स्तम्भन शक्ति से ही सूर्यमण्डल स्थित है, सभी लोक इसी शक्ति के प्रभाव से ही स्तंभित है।  अतः साधक गण को चाहिये कि ऐसी महाविद्या कि साधना सही रीति व विधानपूर्वक ही करें।
अब हम साधकगण को इस महाविद्या के विषय में कुछ और जानकारी देना आवश्यक समझते है, जो साधक इस साधना को पूर्ण कर, सिद्धि प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें इन तथ्यो की जानकारी होना अति आवश्यक है।
1 ) कुल : – महाविद्या बगलामुखी “श्री कुल” से सम्बंधित है।
2 ) नाम : – बगलामुखी, पीताम्बरा , बगला , वल्गामुखी , वगलामुखी , ब्रह्मास्त्र विद्या
3 ) कुल्लुका : – मंत्र जाप से पूर्व उस मंत्र कि कुल्लुका का न्यास सिर में किया जाता है। इस विद्या की कुल्लुका “ॐ हूं छ्रौम्” (OM HOOM Chraum)
4)  महासेतु  : – साधन काल में जप से पूर्व ‘महासेतु’ का जप किया जाता है।  ऐसा करने से लाभ यह होता है कि साधक प्रत्येक समय, प्रत्येक स्थिति में जप कर सकता है।  इस महाविद्या का महासेतु “स्त्रीं” (Streem)  है।  इसका जाप कंठ स्थित विशुद्धि चक्र में दस बार किया जाता है।
5)  कवचसेतु :- इसे मंत्रसेतु भी कहा जाता है।  जप प्रारम्भ करने से पूर्व इसका जप एक हजार बार किया जाता है।  ब्राह्मण व छत्रियों के लिए “प्रणव “, वैश्यों  के लिए “फट” तथा शूद्रों के लिए “ह्रीं” कवचसेतु  है।
6 ) निर्वाण :-  “ह्रूं ह्रीं श्रीं” (Hroom Hreem Shreem) से सम्पुटित मूल मंत्र का जाप ही इसकी निर्वाण विद्या है। इसकी दूसरी विधि यह है कि पहले प्रणव कर, अ , आ , आदि स्वर तथा क, ख , आदि व्यंजन पढ़कर मूल मंत्र पढ़ें और अंत में “ऐं” लगाएं और फिर विलोम गति से पुनरावृत्ति करें।
7 ) बंधन :- किसी विपरीत या आसुरी बाधा को रोकने के लिए इस मंत्र का एक हजार बार जाप किया जाता है। मंत्र इस प्रकार है ” ऐं ह्रीं ह्रीं ऐं ” (Aim Hreem Hreem Aim)
8) मुद्रा :- इस विद्या में योनि मुद्रा का प्रयोग किया जाता है।
9) प्राणायाम : –  साधना से पूर्व दो मूल मंत्रो से रेचक, चार मूल मंत्रो से पूरक तथा दो मूल मंत्रो से कुम्भक करना चाहिए। दो मूल मंत्रो से रेचक, आठ मूल मंत्रो से पूरक तथा चार मूल मंत्रो से कुम्भक करना और भी अधिक लाभ कारी है।
10 ) दीपन :-  दीपक जलने से जैसे रोशनी हो जाती है, उसी प्रकार दीपन से मंत्र प्रकाशवान हो जाता है। दीपन करने हेतु मूल मंत्र को योनि बीज ” ईं ” ( EEM ) से संपुटित कर सात बार जप करें
11) जीवन अथवा प्राण योग : – बिना प्राण अथवा जीवन के मन्त्र निष्क्रिय होता है,  अतः मूल मन्त्र के आदि और अन्त में माया बीज “ह्रीं” (Hreem) से संपुट लगाकर सात बार जप करें ।
12 ) मुख शोधन : –  हमारी जिह्वा अशुद्ध रहती है, जिस कारण उससे जप करने पर लाभ के स्थान पर हानि ही होती है। अतः “ऐं ह्रीं  ऐं ” मंत्र से दस बार जाप कर मुखशोधन करें
13 ) मध्य दृस्टि : – साधना के लिए मध्य दृस्टि आवश्यक है। अतः मूल मंत्र के प्रत्येक अक्षर के आगे पीछे “यं” (Yam) बीज का अवगुण्ठन कर मूल मंत्र का पाँच बार जप करना चाहिए।
14 ) शापोद्धार : – मूल मंत्र के जपने से पूर्व दस बार इस मंत्र का जप करें –
” ॐ हलीं बगले ! रूद्र शापं विमोचय विमोचय ॐ ह्लीं स्वाहा ”
(OM Hleem Bagale ! Rudra Shaapam Vimochaya Vimochaya  OM Hleem Swaahaa )
15 ) उत्कीलन : – मूल मंत्र के आरम्भ में ” ॐ ह्रीं स्वाहा ” मंत्र का दस बार जप करें।
16 ) आचार :-  इस विद्या के दोनों आचार हैं, वाम भी और दक्षिण भी ।
17 ) साधना में सिद्धि प्राप्त न होने पर उपाय : –  कभी कभी ऐसा देखने में आता हैं कि बार बार साधना करने पर भी सफलता हाथ नहीं आती है। इसके लिए आप निम्न वर्णित उपाय करें –
a) कर्पूर, रोली, खास और चन्दन की स्याही से, अनार की कलम से भोजपत्र पर वायु बीज “यं” (Yam) से मूल मंत्र को अवगुण्ठित कर, उसका षोडशोपचार पूजन करें। निश्चय ही सफलता मिलेगी।
b) सरस्वती बीज “ऐं” (Aim)  से मूल मंत्र को संपुटित कर एक हजार जप करें।
c)  भोजपत्र पर गौदुग्ध से मूल मंत्र लिखकर उसे दाहिनी भुजा पर बांध लें। साथ ही मूल मंत्र को “स्त्रीं” (Steem)  से सम्पुटित कर उसका एक हजार जप करें
18 ) विशेष : – गंध,पुष्प, आभूषण, भगवती के सामने रखें। दीपक देवता के दायीं ओर व धूपबत्ती बायीं ओर रखनी चाहिए। नैवेद्य (Sweets, Dry Fruits ) भी देवता के दायीं ओर ही रखें। जप के उपरान्त आसन से उठने से पूर्व ही अपने द्वारा किया जाप भगवती के बायें हाथ में समर्पित कर दें।
अतः ऐसे साधक गण जो किन्ही भी कारणो से यदि अभी तक साधना में सफलता प्राप्त नहीं कर सकें हैं, उपर्युक्त निर्देशों का पालन करते हुए पुनः एक बार फिर संकल्प लें, तो निश्चय ही पराम्बा पीताम्बरा की कृपा दृस्टि उन्हें प्राप्त होगी – ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है।
Baglamukhi Mala Mantra
Baglamukhi Mala Mantra in Hindi and Sanskrit
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About sumit girdharwal
I am a professional astrologer and doing research in the field of effects of mantras. I have keen interest in tantra and it's methodology. For mantra sadhana guidance email me to sumitgirdharwal@yahoo.com or call on 9540674788. For more information visit our website www.anusthanokarehasya.com
Posted on August 13, 2014, in Uncategorized. Bookmark the permalink. 2 Comments.
Trehan, Mamta (E P ES EN SPEL) | August 13, 2014 at 8:29 am
Thank you.
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Baglamukhi


Friday, 9 October 2015

बगला विपरीत प्रत्यंगिरा का अनुष्ठान

जब दुष्टों द्धारा कोई तांत्रिक  विधान कर दिया जाता है तो जीवन कष्टमय हो जाता है, मुझ पर कुछ दुष्टों की छत्र छाया ऐसी पड़ी कि अभी मुझे ब्रम्ह राक्षस से मुक्ति पाकर कुछ ही मास बीते थे, कि मुझे अनुभव होने लगा, कहीं कोई गड़बड है, क्योंकि  मेरेे कार्यो में पुनः पूर्व की भांति रूकावटें आने लगी। चूँकि अब मैं भगवती की शरण में आ चुका था, गुरूजनों से निर्देश लिया, उन्होने मदार मंत्र का अनुष्ठान बताया, परन्तु मदार मंत्र का अनुष्ठान पूर्ण करने के बाद भी मुझे कोई लाभ नही हुआ। मंथन किया जब तक गुप्त शत्रु, नष्ट नही होता, तब तक वह हम पर अपनी शक्तियो का प्रयोग करता रहेगा। अतः गुरू जी से परामर्श लिया, उन्होने कहा बहुत हो गया अब इसे निपटा ही दो।
गुप्त शत्रु के निग्रहार्थ भगवती वगला मुखि के विपरीत प्रत्यंगिरा का प्रयोग करते है अतः सर्वार्थ सिद्धयोग में सवालक्ष जप का संकल्प पूर्ण कर जप पूर्ण कर अन्ततः हवन करने के दस दिनो बाद ही गुप्त शत्रु के मँुह में रोग हो गया चूंकि इस शत्रु को दंड देने का संकल्प लिया था अतः दो वर्षों से वह मुँह के रोग से कष्ट भुगत रहा है।
मुझ निरपराधी पर माँ की कृपा हुई, यदि आप अपराधी नही है, व दुष्ट आप को नाना प्रकार से कष्ट दे रहा है, तो भूल कर उस अपराधी के नाम का उल्लेख कर संकल्प मत करे, केवल गुप्त शत्रु निग्रहार्थे च दंडाथे ही कहे क्यों कि कभी-कभी सोचते हम कुछ है और अपराधी निकलता दूसरा है, यह कार्य भगवती पर छोड़ दे, वह स्वयं पता कर लेगी कौन वास्तव में आप का शत्रु है। और उसे ही दंड दे देती है। जिस प्रकार क्रिया की गई आप के सम्मुख रख रहा हूँ-

शुभ मुर्हत से प्रारम्भ करते है।

संकल्प-ऊँ तत्सधं---- मम अज्ञात शत्रु कृत यंत्र-मंत्र तंत्र कृत्या प्रयोग सम्नार्थे च दुष्ट शत्रु क्षयार्थे च दंडार्थे भगवती पीताम्बराया विपरीत प्रत्यंगिरा एक लक्ष जपे अहम् कुर्वे।

अस्य मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि, अनुष्टुय छन्दः प्रत्यंगिरा देवी देवता, ऊँ बींज, हृीं शक्ति कृत्या नाशने कार्य जपे विनियोगः! 

ऋष्यादि न्यास-

ऊँ हृीं यां कल्पयन्ती नोअरयः हृां हृदयाय नमः।
ऊँ क्रूराम् कृत्याम् हृीं शिर से स्वाहा।
ऊँ वधूमिव हृं शिखायै वषट्।
ऊँ ताम् ब्रह्मणा ह्रैं कवचाय हुम्।
ऊँ अप निर्णुद्य हृों नेत्र त्रयाय वौषट्।
ऊँ प्रत्यक् कर्तार मृच्छतु हृः अस्त्राय फट्।

फिर ध्यान करे-

1. भगवती के मुंह से ज्वाला निकाल रही है।
2. सर के बाल छोटे-छोटे है जो तन कर खड़े हो गए है
3. कराल वदना है, भयंकर रूप है।
4. चार भुजाए है-

दांए में 2 भुजा-   

1. गदा घुमा रही है।
2. मशाल जल रही है।

बाए में 2 भुजाए है  
        
1. वर मुद्रा है
2. जिह्वा है। 

इसी जिह्वा वाले हाथ में जप समय शत्रु का ध्यान करे।

जप मंत्र- ‘‘ऊँ हृीं याम् कल्पयन्ती नो अरेय क्रूराम कृत्यामि वधू मिव। तांम् ब्रम्हणा अप निर्नुद्म प्रत्यक् करतार मिच्छतु हृीं ऊँ।‘‘ 

भगवती कं यंत्र के सामने कडुवे तेल का दीपक जला कर रूद्राक्ष की माला से जप पूर्ण करे। इससे गड़न्त भी कट जाता है, यह एमरजेन्सी प्रयोग है। जप कर दशाशं हृवन, तर्पण, मार्जन व ब्राम्हण भोज पूरा विधान करें। जितनी भी उच्चकोटि की साधनाएं हैं उनका विधान एक लाख जप का होता है, वैसे 40 हजार से कार्य बनते देखे गए हैं। यह विपरीत प्रत्यंगिरा किए हुए अभिचारों को काटती हैं व पुनः कृत्या करने वाले के पास वापस लौट जाती है।

हवन सामग्री:- राई 250 ग्रा, पीली सरसों, 500 ग्रा., हल्दी 50 ग्रा., काली मिर्च थोड़ी सी, लौंग 10 ग्रा. व हवन सामग्री, नीम की पत्ती, थोड़ा पिसा नमक, नारियल के तेल में सान कर दशांश हवन करें।

हवन से पूर्व:- एक आठ अंगुल गूलर की लकड़ी छील कर, उस पर मनुष्य की आकृति बनाए व जो दुःखी कर रहा है, उस कलाकार के नाम से या अज्ञात शत्रु की प्राण प्रतिष्ठा करें। प्राण प्रतिष्ठा में जहाँ-जहाँ वगला प्राण ही प्राण लिखा है वहाँ (शत्रु का नाम) प्राण ही प्राण करें। शत्रु के हृदय स्थान पर अनामिका उंगली रख कर प्राण प्रतिष्ठा करें व 1 माला प्रत्यंगिरा से अभिमंत्रित कर उठाकर अलग रख दें। हवन प्रारम्भ करें व लकड़ी प्रज्वलित होते ही इस गूलर की लकड़ी को हवन कुंड में यह कहते हुए रख दें ‘हे भवगति प्रत्यंगिरे मैं अपने इस शत्रु को आप को समर्पित कर रहा हूँ, इसे आप स्वीकार करे तथा पुनः आहूतियाँ डालना प्रारम्भ करे। गूलर की लकड़ी पर प्राण प्रतिष्ठा से उलट वार होता है।

प्राण प्रतिष्ठा- गूलर की लकड़ी पर 
विनियोग-ऊँ अस्य श्री प्राण प्रतिष्ठा मन्त्रस्य ब्रह्मा विष्णु रूद्रा ऋषयः ऋग्य जुसामानिच्छन्दासि, पराऽऽख्या प्राण शक्ति देवता आं बीजं, हृी शक्तिः, क्रों कीलकम् मम शत्रु (.......) प्राण प्रतिष्ठापने विनियोगः।(जल भूमि पर डाल दे)

ऋष्यादि न्यास- ऊँ अंगुष्ठायो।
ऊँ आं हृीं क्रौं अं कं खं गं घं ड़ं आं ऊँ हीं वाय वग्नि सलिल
पृथ्वी स्वरूपाददत्मने डंग प्रत्यंगयौः तर्जन्येश्च।

ऊँ आं हृीं क्रौं इं छं जं झं ञं ई परमात्य पर सुगन्धा ऽऽत्मने
शिरसे स्वाहृा मध्यमयोश्च।

ऊँ आं हृीं क्रौं ड़ं टं ठं डं ढं णं ऊँ श्रोत्र त्व क्चक्षु-जिव्हा 
ध्राणाऽऽत्यने शिखायैं वषट् अनामिकयोश्च।

ऊँ आं हृीं क्रों एं तं थं दं धं नं प्राणात्मने-कवचाय हुं कनिष्ठिकयोश्च।

ऊँ आं हृीं क्रों पं फं बं भं मं वचना दान गमन विसर्गा
नन्दाऽऽत्मने औं नेत्र त्रयाय वौषट।

ऊँ आं हृीं क्रौ अं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं अः मनो बुद्धय हंकार
चित्मऽऽमने अस्त्राय फट्।

इस प्रकार न्यास कर गूलर की लकड़ी पर बनाई गई आकृति के हृदय स्थान पर स्पर्श करते हुए यह मंत्र पढ़े-

ऊँ आं हृीं क्रौ यं रं लं वं शं षं सं हों हं सः बगलायः प्रणा इह प्राणाः। 
ऊँ आं हृीं क्रौ यं रं लं वं शं षं सं हों हं सः (शत्रु नाम) जीव इह स्थितः।
ऊँ आं हृीं क्रौ यं रं लं वं शं षं सं हों हं सः (शत्रु नाम)
सर्वेन्द्रियाणि इह स्थितानि । ऊँ आं हृी क्रौ यं रं लं वं शं षं सं हों हं सः (शत्रु नाम)  वाडमनश्चक्षु-श्रोत्र-ध्राण-प्राणा इहागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा।

तदोपरान्त हवन प्रारम्भ कर इसे हवन कुड़ं में रखे।



शत्रु की क्रिया को उसी पर लौटाने हेतु हवन सामग्री- अपा मार्ग की समिधा हल्दी, सफेद सरसों  का तिल, राई थोड़ा नमक आदि को प्रयोग करें ।

2 comments :

  1. ati sundar koti ka hai jai maa bhgawati peetambara
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  2. Astrologer Dr Nupur B Pandit19 January 2017 at 23:08
    Pratibha mantra nahi dikh raha hai
    Om ang ring kaling pratingra mam raksh raksh mam shatruon bhakshan bhakshan om hung sath swaha
    Reply
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