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Saturday, 23 November 2019

Baglamukhi


Friday, 9 October 2015

बगला विपरीत प्रत्यंगिरा का अनुष्ठान

जब दुष्टों द्धारा कोई तांत्रिक  विधान कर दिया जाता है तो जीवन कष्टमय हो जाता है, मुझ पर कुछ दुष्टों की छत्र छाया ऐसी पड़ी कि अभी मुझे ब्रम्ह राक्षस से मुक्ति पाकर कुछ ही मास बीते थे, कि मुझे अनुभव होने लगा, कहीं कोई गड़बड है, क्योंकि  मेरेे कार्यो में पुनः पूर्व की भांति रूकावटें आने लगी। चूँकि अब मैं भगवती की शरण में आ चुका था, गुरूजनों से निर्देश लिया, उन्होने मदार मंत्र का अनुष्ठान बताया, परन्तु मदार मंत्र का अनुष्ठान पूर्ण करने के बाद भी मुझे कोई लाभ नही हुआ। मंथन किया जब तक गुप्त शत्रु, नष्ट नही होता, तब तक वह हम पर अपनी शक्तियो का प्रयोग करता रहेगा। अतः गुरू जी से परामर्श लिया, उन्होने कहा बहुत हो गया अब इसे निपटा ही दो।
गुप्त शत्रु के निग्रहार्थ भगवती वगला मुखि के विपरीत प्रत्यंगिरा का प्रयोग करते है अतः सर्वार्थ सिद्धयोग में सवालक्ष जप का संकल्प पूर्ण कर जप पूर्ण कर अन्ततः हवन करने के दस दिनो बाद ही गुप्त शत्रु के मँुह में रोग हो गया चूंकि इस शत्रु को दंड देने का संकल्प लिया था अतः दो वर्षों से वह मुँह के रोग से कष्ट भुगत रहा है।
मुझ निरपराधी पर माँ की कृपा हुई, यदि आप अपराधी नही है, व दुष्ट आप को नाना प्रकार से कष्ट दे रहा है, तो भूल कर उस अपराधी के नाम का उल्लेख कर संकल्प मत करे, केवल गुप्त शत्रु निग्रहार्थे च दंडाथे ही कहे क्यों कि कभी-कभी सोचते हम कुछ है और अपराधी निकलता दूसरा है, यह कार्य भगवती पर छोड़ दे, वह स्वयं पता कर लेगी कौन वास्तव में आप का शत्रु है। और उसे ही दंड दे देती है। जिस प्रकार क्रिया की गई आप के सम्मुख रख रहा हूँ-

शुभ मुर्हत से प्रारम्भ करते है।

संकल्प-ऊँ तत्सधं---- मम अज्ञात शत्रु कृत यंत्र-मंत्र तंत्र कृत्या प्रयोग सम्नार्थे च दुष्ट शत्रु क्षयार्थे च दंडार्थे भगवती पीताम्बराया विपरीत प्रत्यंगिरा एक लक्ष जपे अहम् कुर्वे।

अस्य मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि, अनुष्टुय छन्दः प्रत्यंगिरा देवी देवता, ऊँ बींज, हृीं शक्ति कृत्या नाशने कार्य जपे विनियोगः! 

ऋष्यादि न्यास-

ऊँ हृीं यां कल्पयन्ती नोअरयः हृां हृदयाय नमः।
ऊँ क्रूराम् कृत्याम् हृीं शिर से स्वाहा।
ऊँ वधूमिव हृं शिखायै वषट्।
ऊँ ताम् ब्रह्मणा ह्रैं कवचाय हुम्।
ऊँ अप निर्णुद्य हृों नेत्र त्रयाय वौषट्।
ऊँ प्रत्यक् कर्तार मृच्छतु हृः अस्त्राय फट्।

फिर ध्यान करे-

1. भगवती के मुंह से ज्वाला निकाल रही है।
2. सर के बाल छोटे-छोटे है जो तन कर खड़े हो गए है
3. कराल वदना है, भयंकर रूप है।
4. चार भुजाए है-

दांए में 2 भुजा-   

1. गदा घुमा रही है।
2. मशाल जल रही है।

बाए में 2 भुजाए है  
        
1. वर मुद्रा है
2. जिह्वा है। 

इसी जिह्वा वाले हाथ में जप समय शत्रु का ध्यान करे।

जप मंत्र- ‘‘ऊँ हृीं याम् कल्पयन्ती नो अरेय क्रूराम कृत्यामि वधू मिव। तांम् ब्रम्हणा अप निर्नुद्म प्रत्यक् करतार मिच्छतु हृीं ऊँ।‘‘ 

भगवती कं यंत्र के सामने कडुवे तेल का दीपक जला कर रूद्राक्ष की माला से जप पूर्ण करे। इससे गड़न्त भी कट जाता है, यह एमरजेन्सी प्रयोग है। जप कर दशाशं हृवन, तर्पण, मार्जन व ब्राम्हण भोज पूरा विधान करें। जितनी भी उच्चकोटि की साधनाएं हैं उनका विधान एक लाख जप का होता है, वैसे 40 हजार से कार्य बनते देखे गए हैं। यह विपरीत प्रत्यंगिरा किए हुए अभिचारों को काटती हैं व पुनः कृत्या करने वाले के पास वापस लौट जाती है।

हवन सामग्री:- राई 250 ग्रा, पीली सरसों, 500 ग्रा., हल्दी 50 ग्रा., काली मिर्च थोड़ी सी, लौंग 10 ग्रा. व हवन सामग्री, नीम की पत्ती, थोड़ा पिसा नमक, नारियल के तेल में सान कर दशांश हवन करें।

हवन से पूर्व:- एक आठ अंगुल गूलर की लकड़ी छील कर, उस पर मनुष्य की आकृति बनाए व जो दुःखी कर रहा है, उस कलाकार के नाम से या अज्ञात शत्रु की प्राण प्रतिष्ठा करें। प्राण प्रतिष्ठा में जहाँ-जहाँ वगला प्राण ही प्राण लिखा है वहाँ (शत्रु का नाम) प्राण ही प्राण करें। शत्रु के हृदय स्थान पर अनामिका उंगली रख कर प्राण प्रतिष्ठा करें व 1 माला प्रत्यंगिरा से अभिमंत्रित कर उठाकर अलग रख दें। हवन प्रारम्भ करें व लकड़ी प्रज्वलित होते ही इस गूलर की लकड़ी को हवन कुंड में यह कहते हुए रख दें ‘हे भवगति प्रत्यंगिरे मैं अपने इस शत्रु को आप को समर्पित कर रहा हूँ, इसे आप स्वीकार करे तथा पुनः आहूतियाँ डालना प्रारम्भ करे। गूलर की लकड़ी पर प्राण प्रतिष्ठा से उलट वार होता है।

प्राण प्रतिष्ठा- गूलर की लकड़ी पर 
विनियोग-ऊँ अस्य श्री प्राण प्रतिष्ठा मन्त्रस्य ब्रह्मा विष्णु रूद्रा ऋषयः ऋग्य जुसामानिच्छन्दासि, पराऽऽख्या प्राण शक्ति देवता आं बीजं, हृी शक्तिः, क्रों कीलकम् मम शत्रु (.......) प्राण प्रतिष्ठापने विनियोगः।(जल भूमि पर डाल दे)

ऋष्यादि न्यास- ऊँ अंगुष्ठायो।
ऊँ आं हृीं क्रौं अं कं खं गं घं ड़ं आं ऊँ हीं वाय वग्नि सलिल
पृथ्वी स्वरूपाददत्मने डंग प्रत्यंगयौः तर्जन्येश्च।

ऊँ आं हृीं क्रौं इं छं जं झं ञं ई परमात्य पर सुगन्धा ऽऽत्मने
शिरसे स्वाहृा मध्यमयोश्च।

ऊँ आं हृीं क्रौं ड़ं टं ठं डं ढं णं ऊँ श्रोत्र त्व क्चक्षु-जिव्हा 
ध्राणाऽऽत्यने शिखायैं वषट् अनामिकयोश्च।

ऊँ आं हृीं क्रों एं तं थं दं धं नं प्राणात्मने-कवचाय हुं कनिष्ठिकयोश्च।

ऊँ आं हृीं क्रों पं फं बं भं मं वचना दान गमन विसर्गा
नन्दाऽऽत्मने औं नेत्र त्रयाय वौषट।

ऊँ आं हृीं क्रौ अं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं अः मनो बुद्धय हंकार
चित्मऽऽमने अस्त्राय फट्।

इस प्रकार न्यास कर गूलर की लकड़ी पर बनाई गई आकृति के हृदय स्थान पर स्पर्श करते हुए यह मंत्र पढ़े-

ऊँ आं हृीं क्रौ यं रं लं वं शं षं सं हों हं सः बगलायः प्रणा इह प्राणाः। 
ऊँ आं हृीं क्रौ यं रं लं वं शं षं सं हों हं सः (शत्रु नाम) जीव इह स्थितः।
ऊँ आं हृीं क्रौ यं रं लं वं शं षं सं हों हं सः (शत्रु नाम)
सर्वेन्द्रियाणि इह स्थितानि । ऊँ आं हृी क्रौ यं रं लं वं शं षं सं हों हं सः (शत्रु नाम)  वाडमनश्चक्षु-श्रोत्र-ध्राण-प्राणा इहागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा।

तदोपरान्त हवन प्रारम्भ कर इसे हवन कुड़ं में रखे।



शत्रु की क्रिया को उसी पर लौटाने हेतु हवन सामग्री- अपा मार्ग की समिधा हल्दी, सफेद सरसों  का तिल, राई थोड़ा नमक आदि को प्रयोग करें ।

2 comments :

  1. ati sundar koti ka hai jai maa bhgawati peetambara
    Reply
  2. Astrologer Dr Nupur B Pandit19 January 2017 at 23:08
    Pratibha mantra nahi dikh raha hai
    Om ang ring kaling pratingra mam raksh raksh mam shatruon bhakshan bhakshan om hung sath swaha
    Reply
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