महाविद्या छिन्नमस्ता प्रयोग
शोक ताप संताप होंगे छिन्न-भिन्न
जीवन के परम सत्य की होगी प्राप्ति
संसार का हर्रेक सुख आपकी मुट्ठी में होगा
अपार सफलताओं के शिखर पर जा पहुंचेंगे आप
जीवन मरण दोनों से हो जायेंगे पार
"महाविद्या छिन्नमस्ता"
एक बार देवी पार्वती हिमालय भ्रमण कर रही थी उनके साथ उनकी दो सहचरियां जया और विजया भी थीं, हिमालय पर भ्रमण करते हुये वे हिमालय से दूर आ निकली, मार्ग में सुनदर मन्दाकिनी नदी कल कल करती हुई बह रही थी, जिसका साफ स्वच्छ जल दिखने पर देवी पार्वती के मन में स्नान की इच्छा हुई, उनहोंने जया विजया को अपनी मनशा बताती व उनको भी सनान करने को कहा, किन्तु वे दोनों भूखी थी, बोली देवी हमें भूख लगी है, हम सनान नहीं कर सकती, तो देवी नें कहा ठीक है मैं सनान करती हूँ तुम विश्राम कर लो, किन्तु सनान में देवी को अधिक समय लग गया, जया विजया नें पुनह देवी से कहा कि उनको कुछ खाने को चाहिए, देवी सनान करती हुयी बोली कुच्छ देर में बाहर आ कर तुम्हें कुछ खाने को दूंगी, लेकिन थोड़ी ही देर में जया विजया नें फिर से खाने को कुछ माँगा, इस पर देवी नदी से बाहर आ गयी और अपने हाथों में उनहोंने एक दिव्य खडग प्रकट किया व उस खडग से उनहोंने अपना सर काट लिया, देवी के कटे गले से रुधिर की धारा बहने लगी तीन प्रमुख धाराएँ ऊपर उठती हुयी भूमि की और आई तो देवी नें कहा जया विजया तुम दोनों मेरे रक्त से अपनी भूख मिटा लो, ऐसा कहते ही दोनों देवियाँ पार्वती जी का रुधिर पान करने लगी व एक रक्त की धारा देवी नें स्वयं अपने ही मुख में ड़ाल दी और रुधिर पान करने लगी, देवी के ऐसे रूप को देख कर देवताओं में त्राहि त्राहि मच गयी, देवताओं नें देवी को प्रचंड चंड चंडिका कह कर संबोधित किया, ऋषियों नें कटे हुये सर के कारण देवी को नाम दिया छिन्नमस्ता, तब शिव नें कबंध शिव का रूप बना कर देवी को शांत किया, शिव के आग्रह पर पुनह: देवी ने सौम्य रूप बनाया, नाथ पंथ सहित बौद्ध मताब्लाम्बी भी देवी की उपासना क्जरते हैं, भक्त को इनकी उपासना से भौतिक सुख संपदा बैभव की प्राप्ति, बाद विवाद में विजय, शत्रुओं पर जय, सम्मोहन शक्ति के साथ-साथ अलौकिक सम्पदाएँ प्राप्त होती है, इनकी सिद्धि हो जाने ओपर कुछ पाना शेष नहीं रह जाता,
दस महाविद्यायों में प्रचंड चंड नायिका के नाम से व बीररात्रि कह कर देवी को पूजा जाता है
देवी के शिव को कबंध शिव के नाम से पूजा जाता है
छिन्नमस्ता देवी शत्रु नाश की सबसे बड़ी देवी हैं,भगवान् परशुराम नें इसी विद्या के प्रभाव से अपार बल अर्जित किया था
गुरु गोरक्षनाथ की सभी सिद्धियों का मूल भी देवी छिन्नमस्ता ही है
देवी नें एक हाथ में अपना ही मस्तक पकड़ रखा हैं और दूसरे हाथ में खडग धारण किया है
देवी के गले में मुंडों की माला है व दोनों और सहचरियां हैं
देवी आयु, आकर्षण,धन,बुद्धि,रोगमुक्ति व शत्रुनाश करती है
देवी छिन्नमस्ता मूलतया योग की अधिष्ठात्री देवी हैं जिन्हें ब्ज्रावैरोचिनी के नाम से भी जाना जाता है
सृष्टि में रह कर मोह माया के बीच भी कैसे भोग करते हुये जीवन का पूरण आनन्द लेते हुये योगी हो मुक्त हो सकता है यही सामर्थ्य देवी के आशीर्वाद से मिलती है
सम्पूरण सृष्टि में जो आकर्षण व प्रेम है उसकी मूल विद्या ही छिन्नमस्ता है
शास्त्रों में देवी को ही प्राणतोषिनी कहा गया है
देवी की स्तुति से देवी की अमोघ कृपा प्राप्त होती है
स्तुति
छिन्न्मस्ता करे वामे धार्यन्तीं स्व्मास्ताकम,
प्रसारितमुखिम भीमां लेलिहानाग्रजिव्हिकाम,
पिवंतीं रौधिरीं धारां निजकंठविनिर्गाताम,
विकीर्णकेशपाशान्श्च नाना पुष्प समन्विताम,
दक्षिणे च करे कर्त्री मुण्डमालाविभूषिताम,
दिगम्बरीं महाघोरां प्रत्यालीढ़पदे स्थिताम,
अस्थिमालाधरां देवीं नागयज्ञो पवीतिनिम,
डाकिनीवर्णिनीयुक्तां वामदक्षिणयोगत:,
देवी की कृपा से साधक मानवीय सीमाओं को पार कर देवत्व प्राप्त कर लेता है
गृहस्थ साधक को सदा ही देवी की सौम्य रूप में साधना पूजा करनी चाहिए
देवी योगमयी हैं ध्यान समाधी द्वारा भी इनको प्रसन्न किया जा सकता है
इडा पिंगला सहित स्वयं देवी सुषुम्ना नाड़ी हैं जो कुण्डलिनी का स्थान हैं
देवी के भक्त को मृत्यु भय नहीं रहता वो इच्छानुसार जन्म ले सकता है
देवी की मूर्ती पर रुद्राक्षनाग केसर व रक्त चन्दन चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है
महाविद्या छिन्मस्ता के मन्त्रों से होता है आधी व्यादी सहित बड़े से बड़े दुखों का नाश
देवी माँ का स्वत: सिद्ध महामंत्र है-
श्री महाविद्या छिन्नमस्ता महामंत्र
ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचिनिये ह्रीं ह्रीं फट स्वाहा
इस मंत्र से काम्य प्रयोग भी संपन्न किये जाते हैं व देवी को पुष्प अत्यंत प्रिय हैं इसलिए केवल पुष्पों के होम से ही देवी कृपा कर देती है,आप भी मनोकामना के लिए यज्ञ कर सकते हैं,जैसे-
1. मालती के फूलों से होम करने पर बाक सिद्धि होती है व चंपा के फूलों से होम करने पर सुखों में बढ़ोतरी होती है
2.बेलपत्र के फूलों से होम करने पर लक्ष्मी प्राप्त होती है व बेल के फलों से हवन करने पर अभीष्ट सिद्धि होती है
3.सफेद कनेर के फूलों से होम करने पर रोगमुक्ति मिलती है तथा अल्पायु दोष नष्ट हो 100 साल आयु होती है
4. लाल कनेर के पुष्पों से होम करने पर बहुत से लोगों का आकर्षण होता है व बंधूक पुष्पों से होम करने पर भाग्य बृद्धि होती है
5.कमल के पुष्पों का गी के साथ होम करने से बड़ी से बड़ी बाधा भी रुक जाती है
6 .मल्लिका नाम के फूलों के होम से भीड़ को भी बश में किया जा सकता है व अशोक के पुष्पों से होम करने पर पुत्र प्राप्ति होती है
7 .महुए के पुष्पों से होम करने पर सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं व देवी प्रसन्न होती है
महाअंक-देवी द्वारा उतपन्न गणित का अंक जिसे स्वयं छिन्नमस्ता ही कहा जाता है वो देवी का महाअंक है -"4"
विशेष पूजा सामग्रियां-पूजा में जिन सामग्रियों के प्रयोग से देवी की विशेष कृपा मिलाती है
मालती के फूल, सफेद कनेर के फूल, पीले पुष्प व पुष्पमालाएं चढ़ाएं
केसर, पीले रंग से रंगे हुए अक्षत, देसी घी, सफेद तिल, धतूरा, जौ, सुपारी व पान चढ़ाएं
बादाम व सूखे फल प्रसाद रूप में अर्पित करें
सीपियाँ पूजन स्थान पर रखें
भोजपत्र पर ॐ ह्रीं ॐ लिख करा चदएं
दूर्वा,गंगाजल, शहद, कपूर, रक्त चन्दन चढ़ाएं, संभव हो तो चंडी या ताम्बे के पात्रों का ही पूजन में प्रयोग करें
पूजा के बाद खेचरी मुद्रा लगा कर ध्यान का अभ्यास करना चाहिए
सभी चढ़ावे चढाते हुये देवी का ये मंत्र पढ़ें-ॐ वीररात्रि स्वरूपिन्ये नम:
देवी के दो प्रमुख रूपों के दो महामंत्र
१)देवी प्रचंड चंडिका मंत्र-ऐं श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं वज्र वैरोचिनिये ह्रीं ह्रीं फट स्वाहा
२)देवी रेणुका शबरी मंत्र-ॐ श्रीं ह्रीं क्रौं ऐं
सभी मन्त्रों के जाप से पहले कबंध शिव का नाम लेना चाहिए तथा उनका ध्यान करना चाहिए
सबसे महत्पूरण होता है देवी का महायंत्र जिसके बिना साधना कभी पूरण नहीं होती इसलिए देवी के यन्त्र को जरूर स्थापित करे व पूजन करें
यन्त्र के पूजन की रीति है-
पंचोपचार पूजन करें-धूप,दीप,फल,पुष्प,जल आदि चढ़ाएं
ॐ कबंध शिवाय नम: मम यंत्रोद्दारय-द्दारय
कहते हुये पानी के 21 बार छीटे दें व पुष्प धूप अर्पित करें
देवी को प्रसन्न करने के लिए सह्त्रनाम त्रिलोक्य कवच आदि का पाठ शुभ माना गया है
यदि आप बिधिवत पूजा पात नहीं कर सकते तो मूल मंत्र के साथ साथ नामावली का गायन करें
छिन्नमस्ता शतनाम का गायन करने से भी देवी की कृपा आप प्राप्त कर सकते हैं
छिन्नमस्ता शतनाम को इस रीति से गाना चाहिए-
प्रचंडचंडिका चड़ा चंडदैत्यविनाशिनी,
चामुंडा च सुचंडा च चपला चारुदेहिनी,
ल्लजिह्वा चलदरक्ता चारुचन्द्रनिभानना,
चकोराक्षी चंडनादा चंचला च मनोन्मदा,
देदेवी को अति शीघ्र प्रसन्न करने के लिए अंग न्यास व आवरण हवन तर्पण व मार्जन सहित पूजा करें
अब देवी के कुछ इच्छा पूरक मंत्र
1) देवी छिन्नमस्ता का शत्रु नाशक मंत्र
ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्र वैरोचिनिये फट
लाल रंग के वस्त्र और पुष्प देवी को अर्पित करें
नवैद्य प्रसाद,पुष्प,धूप दीप आरती आदि से पूजन करें
रुद्राक्ष की माला से 6 माला का मंत्र जप करें
देवी मंदिर में बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
काले रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें
दक्षिण दिशा की ओर मुख रखें
अखरो व अन्य फलों का फल प्रसाद रूप में चढ़ाएं
2) देवी छिन्नमस्ता का धन प्रदाता मंत्र
ऐं श्रीं क्लीं ह्रीं वज्रवैरोचिनिये फट
गुड, नारियल, केसर, कपूर व पान देवी को अर्पित करें
शहद से हवन करें
रुद्राक्ष की माला से 7 माला का मंत्र जप करें
3) देवी छिन्नमस्ता का प्रेम प्रदाता मंत्र
ॐ आं ह्रीं श्रीं वज्रवैरोचिनिये हुम
देवी पूजा का कलश स्थापित करें
देवी को सिन्दूर व लोंग इलायची समर्पित करें
रुद्राक्ष की माला से 6 माला का मंत्र जप करें
किसी नदी के किनारे बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
भगवे रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें
उत्तर दिशा की ओर मुख रखें
खीर प्रसाद रूप में चढ़ाएं
4) देवी छिन्नमस्ता का सौभाग्य बर्धक मंत्र
ॐ श्रीं श्रीं ऐं वज्रवैरोचिनिये स्वाहा
देवी को मीठा पान व फलों का प्रसाद अर्पित करना चाहिए
रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करें
किसी ब्रिक्ष के नीचे बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
संतरी रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें
पूर्व दिशा की ओर मुख रखें
पेठा प्रसाद रूप में चढ़ाएं
5) देवी छिन्नमस्ता का ग्रहदोष नाशक मंत्र
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं वं वज्रवैरोचिनिये हुम
देवी को पंचामृत व पुष्प अर्पित करें
रुद्राक्ष की माला से 4 माला का मंत्र जप करें
मंदिर के गुम्बद के नीचे या प्राण प्रतिष्ठित मूर्ती के निकट बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
पीले रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें
उत्तर दिशा की ओर मुख रखें
नारियल व तरबूज प्रसाद रूप में चढ़ाएं
देवी की पूजा में सावधानियां व निषेध-
बिना "कबंध शिव" की पूजा के महाविद्या छिन्नमस्ता की साधना न करें
सन्यासियों व साधू संतों की निंदा बिलकुल न करें
साधना के दौरान अपने भोजन आदि में हींग व काली मिर्च का प्रयोग न करें
देवी भक्त ध्यान व योग के समय भूमि पर बिना आसन कदापि न बैठें
सरसों के तेल का दीया न जलाएं
विशेष गुरु दीक्षा-
महाविद्या छिन्नमस्ता की अनुकम्पा पाने के लिए अपने गुरु से आप दीक्षा जरूर लें आप कोई एक दीक्षा ले सकते हैं
छिन्नमस्ता दीक्षा
वज्र वैरोचिनी दीक्षा
रेणुका शबरी दीक्षा
बज्र दीक्षा
पञ्च नाडी दीक्षा
सिद्ध खेचरी दीक्षा
छिन्न्शिर: दीक्षा
त्रिकाल दीक्षा
कालज्ञान दीक्षा
कुण्डलिनी दीक्षा.................आदि में से कोई एक
ज्ञान से ज्ञानी और ज्ञानी से अहंकारी हो जाना कोई नई बात नहीं है। ये अहंकार ही है जो असमय काल के मुख में धकेल देता है। बड़े-बड़ों का पतन करने वाला है। इसलिए शिव नें महाशक्ति संपन्न साधकों को सबसे अनूठा उपहार दिया। यही उपहार है 'छिन्नमस्ता', यानि अहंकार रहित शक्ति। जिसकी साधना से साधक का अहंकार भी तिरोहित होने लगता है। सर होने का प्रतीक है कुछ हो जाने का, यानि अहंकार की उत्तपत्ति का। एक बार अहंकार पैदा हो जाए तो फिर अहंकार के क्या कहने? भगवान् भी सामने हों तो चूहा ही लगे। मनुष्य ऐसा ही है जब रोग रहित हो, स्वस्थ और धनवान हो तो संसार उसके लिए मिटटी ही है सबको रौंदता हुआ आगे बढ़ता जाता है। लेकिन ज्यों ही मुसीबत आयी, रोगों नें जकड़ा, शत्रुओं नें परेशान किआ, गरीबी आयी तो मनुष्य टूट जाता है। अजब माया है संसार की भी, महामाया नित्य नई लीला रचती हैं। मनुष्य उसमें ऐसा जकड़ा हुआ है कि बाहर आने की कोई सम्भावना दिखती ही नहीं। तो साधक भी एक तल पर मनुष्य है और यदि वो भी अहंकार के वशीभूत हो गया तो क्या होगा? इसी कारण शिव नें, स्वयं देवाधिदेव नें उतपन्न किआ एक ऐसी शक्ति को जो विद्याओं में अग्रणी हैं और अहंकार को अपने हाथों में रखती हैं। यही छिन्नमस्ता हैं। तंत्र इसका एक और सांकेतिक अर्थ भी समझाता है, वो है कि छिन्नमस्ता ऐसी महाविद्या है जिसके सम्मुख किसीका भी अहंकार ठहरता नहीं। चाहे योगी हो, महायोगी हो, ईशपुत्र हो या कौलान्तक पीठाधीश्वर। देवी सभी का नाश करना और सभी पर नियंत्रण रखना जानती हैं। अहंकारियों के सर काट कर हाथों में दे देती हैं। देवी तो अपना अहंकार भी नहीं सहती। यहीं तंत्र योग के सूत्र को गोपनीयता से बताता है कि ईडा,पिंगला और सुषुम्ना में खो चुका योगी आत्म अमृत पान में रत रहते हुए ही महाविद्या प्राप्त कर जाता है। योग मार्ग भी सरल नहीं है आत्मअमृतपान के लिए आत्म बलि देने का साहस चाहिए यदि है तो सफलता द्वार पर नतमस्तक मिलेगी। यदि साहस नहीं तो खाली हाथ ही लौटना होगा। छिन्नमस्ता सर यानि मस्तिष्क का खेल है। हम संसार को समझते हैं इंद्रियों से, पञ्चइंद्रियों से और उसका नियंता है मस्तिष्क और महाविद्याएं व शिव मस्तिष्क से भी पार के विषय हैं। इसी कारण महाविद्या छिन्नमस्ता अपना सर हाथ में ले लेती हैं कि तुम दिमाग लगाने की कोशिश ना करो। इस ब्रह्माण्ड का सत्य ऐसा अभूझ है कि सर से नहीं अपितु किसी और मार्ग से इसे समझना होगा। कर्मकांड से जुड़े आचार्य जिस प्रकार यज्ञ पुरुष का शिरोसंधान कर यज्ञ को पूर्ण करते हैं ठीक वैसे ही जब साधक कपट बुद्धि और कथित दार्शनिकता का छेदन करता है तभी आत्मरस रुपी आत्मानंद का सेवन कर सकता है। तभी महाविद्या छिन्नमस्ता को जान सकता है। छिन्नमस्ता भी वामा देवी है किन्तु दक्षिण पंथ से भी मान जाती हैं। जो कि साधक के लिए बड़ा ही सुख है। 'कौलान्तक संप्रदाय' मिश्रमार्गीय पद्धति से जो कि रजस पंथी होती है इस साधना को प्रदान करता है किन्तु इसके लिए साधक को प्रवेश मंत्र की 18 माला और कबंध शिव मंत्र की तीन माला का जाप करना होता है । बिना कबंध शिव के आप छिन्नमस्ता महाविद्या की कल्पना भी नहीं कर सकते। बिना कबंध हुए आप कैसे महाविद्या पर अंकुश रख सकेंगे? कबंध शिव भी निराले शिव हैं जो केवल सुनने में विश्वास रखते हैं। लोग कहते रहते हैं। संसार भी हमेशा विषवमन में लगा रहता है। लेकिन कबंध शिव हैं कि मानो कुछ कहना ही नहीं चाहते। सर्वसमर्थ होते हुए भी न जाने क्यों बस मौन ही रहते हैं और संसार इस मौन को कमजोरी समझने की भूल कर बैठता है। कबंध शिव सब जानते हैं, क्या अंदर की बात और क्या बाहर की बात? क्या सच और क्या झूठ? लेकिन फिर भी मौन। ये सब देख कर साधक के मन में बड़ी खीज उपजती है पर क्या करे नियंत्रण रखना पड़ता है नहीं तो गर्दन काटने वाली तो साक्षात उपस्थित हैं ही। कबंध शिव से मैंने बहुत कुछ सीखा और पाया है। मेरे शिव कबंध शिव होने के कारण मैं भी उन्ही जैसा हो गया हूँ। ऐसा नहीं है कि मुझे कुछ पता नहीं है या मैं मूर्ख हूँ। कबंध शिव नें मुझे सम्पूर्ण मनुष्य के रूप में पैदा किआ है इसलिए सब जानता हूँ पर मौन ही रहने में सुख मिल रहा है। लगता है कि कबंध शिव कहीं गहरे में भीतर उतर गए हैं। मैं साधक को समझाना चाहता हूँ कि मैं कोई गुरु नहीं हूँ। कि तुम मुझे मेरे प्रवचनों या ढोंग से समझ लोगे अपितु मैं कबंध शिव ही हूँ, तुम्हें मुझमें उतर कर ही मुझे जानना होगा इसके अतिरिक्त और कोई चारा नहीं है। मैं अघोर हूँ एक 'अघोर सत्य' 'कबंध शिव' सा, उलझन हूँ 'तंत्र सा', समझने के लिए साधना ही सहारा है और शायद तुम साधना को अभी तक समझे ही नहीं। तुम मालाओं में, तुम योग में, तुम कर्मकांड में, तुम यंत्रों में, तुम उपासना में उसे ढूंढ रहे हो, जो कि तुम्हारे कर्मों में ही है। साधना मेरी जीवन शैली है और तुमारे लिए साधना एक छोटा सा सात्विक कर्म। साफ है कि मेरे और तुम्हारे बीच अब जन्मों की खाइयां हो चुकी हैं। मैं तुमको पुकारता हूँ, लेकिन तुम्हारे अंदर दुनिआ भर का शोर भरा है मेरी आवाज तुम तक पहुँचती ही नहीं है। फिर भी मैं तुम्हारा इन्तजार करता हूँ हर दिन, हर पल, क्योंकि मैं कबंध शिव हूँ। तुमको भी होना होगा और कोई उपाय नहीं है महाविद्या छिन्नमस्ता को पाने का। यदी तुम नूतनता को स्थान नहीं दे सकते। यदि तुम समझ को परिष्कृत नहीं कर सकते। तो महाविद्या छिन्नमस्ता तुम्हारे लिए नहीं। अभी तो तुमको तुम्हारा मस्तिष्क नियंत्रित कर रहा है, जब तुम मस्तिष्क को नियंत्रित करना शुरू करोगे तो महाविद्या छिन्नमस्ता तुम्हारे भीतर उतरने लगेगी। मैं शायद शब्दों में समझा नहीं पाता लेकिन कर्मकांड और यन्त्र, मंत्र का शिव विलास मेरे पास है तुम समझ सको तो हम एक जैसे हो जायेंगे और महाविद्या छिन्नमस्ता कृपा करेने लगेंगी। याद रखना तंत्र में महाविद्या छिन्नमस्ता जैसी उपदेशक और दूसरी कोई नहीं है। देवी की दो सखियाँ हैं। मध्य में देवी और दोनों और सखियाँ। ये गुरु शिष्य परम्परा है। गुरु जो पाता है बराबर सबको बांटता चलता है। जो समझ जाता है हमेशा आस-पास मंडरा कर गुरु से ग्रहण कर ही लेता है। बाकी तो दूर छिटक जाते हैं भयावह सांसारिक दलदल में। जहाँ बैठ कर मुक्ति पर गप्पें तो हांकी जा सकती हैं, महाविद्याओं पर चर्चाएं व शेखियां तो बघारी जा सकती हैं पर निकलने का कोई उपाय नहीं। महाविद्या छिन्नमस्ता बेहद अहम् इस कारण भी है क्योंकि संसार बड़ा स्वार्थी है। माँ-बाप, भाई-बहन, रिश्ते-नाते, मित्र-सखियाँ तुमको मुक्त होते नहीं देख सकते। देखें भी क्यों क्योंकि उनके साथ तो बंधन हैं ना? रिश्तों का? तो बंधन मजबूत करना उनका धर्म है। यदि मैं आपको कहूं कि माँ-बाप से दूर रह कर गुरु सानिध्य में जाओ। तो तुम्हारे माँ-बाप मुझ पर ही कोई आरोप लगा कर जेल भिजवा देंगे। क्यों? क्योंकि मैंने बंधन खोलने की कोशिश की। इसलिए छिन्नमस्ता भड़काती है तुमको संसार से भीतर की ओर ले जाती है। बेफालतू के सम्बन्धों और सूक्ष्म कारागार को छिन्न-भिन्न कर डालती है और तुम पाश मुक्त होने लगते हो। हाँ! बेहद महत्वपूर्ण बात! कि जब तक तुम! निर्धारित करते हो कि अध्यात्म में तुमको क्या पसंद है और क्या क्या नापसंद? तब तक सब उलझा रहता है। इसलिए छीन्न-भिन्न करना जरूरी है। मैं यहाँ महाविद्या छिन्नमस्ता के बारे में तो कुछ भी नहीं बता सकता। बस इतना कह सकता हूँ कि वो अपना सर काट कर अपने हाथों में रख सकती है और अपना खून पी सकती है। बाबजूद रति का आनंद अनुभव कर सखियों से बाँट सकती है। यही तो है महाविद्या छिन्नमस्ता।
'छिन्नमस्ता महाविद्या' एक आचार्य महाविद्या है। जिसकी सीख बेहद अनूठी और सत्यपरक होती है। छिन्नमस्ता अपने तरीकों से साधक को तराशती है। कोई रहम नहीं-स्वर्ण बनना है तो तपती भट्ठी में से हो कर तो गुजरना ही पडेगा। मस्तिष्क ऐसा हो कि ज्यामिति को समझ सके। बिना ज्यामिति के महाविद्याएं समझी नहीं जा सकती। छिन्नमस्ता तो आपके जीवन का आयाम है। जो गुरु बिना भला कौन समझ सका है? गुरु केवल एक ही है वो है स्वयं शिव। तो छिन्नमस्ता को उसी के तरीके से जानने के लिए यदि साधक तैयार हो जाए तो छिन्नमस्ता की कृपा होने लगाती है। लेकिन इस कृपा को किसी दूकान में बेचा या चौराहे पर तमाशा लगा कर दिखाया नहीं जा सकता। ये बात ही कुछ ऐसी है कि बताएं कैसे? खुद को टुकड़ों में तुड़वाने का साहस चाहिए। सती के इतने टुकड़े हुए कि सभी शक्तिपीठ हैं। इसे ही कहते हैं छिन्नमस्ता। शिव के लिए, सत्य के लिए, साधना के लिए नष्ट हो जाने का जज्वा। इतने टुकड़ों में टूट जाने का जज्वा कि हर टुकड़ा शक्तिमान हो, हर टुकड़ा शिव हो। यहाँ ये बताना भी आवश्यक है कि यदि आपका हृदय अभी टूटा नहीं, तो भी छिन्नमस्ता को समझना आसान नहीं है। संसार में ह्रदय का छिन्न होना बड़ी आम बात है। यदि हृदय छिन्न हो चुका है तो संसार भायेगा नहीं और वैराग्य का रट्टा लगाने की जरूरत नहीं होगी। अपने को बली बेदी पर अर्पित कर देना मूर्खता लग सकता है पर मैं इसे दीवानगी का नाम देता हूँ और यही है छिन्नमस्ता। टूटा हुआ हृदय…यानि सत्य को अनुभूत कर चुका हृदय। जीवन में तो कुछ मिलता है नहीं। अध्यात्म में मिलता दिखता नहीं है। तो भी क्या तुम मेरी और आओगे…………यदि हाँ तो तुम पागल हो…………पूरी तरह सनकी। तुम इतने टुकड़ों में टूट जाओगे कि खुद गिन नहीं पाओगे। संसार तुमको तोड़ देगा। मेरा मन ये सब कहते हुए बहुत खुश हो रहा है। अपनी बर्वादी की पूरी कहानी को नेत्रों के सामने घूमता देख रहा हूँ वो भी 3 डी में। अब बारी तुम्हारी है-कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ (ईशपुत्र)
"ईशपुत्र-कौलान्तक नाथ" के दिव्य "वचन" -
यदि तुम मेरी या ईश्वर की (अभेद स्वरुप) सेवा करना चाहते हो, तो देश काल अवस्था के अनुरूप मानव, जीव-जंतुओं, प्रकृति की सेवा के साथ-साथ नैतिकता का बीजारोपण करो, एक आदर्श समाज की स्थापना मुझे प्रिय है। मेरे सन्देश को हर कान तक पहुंचाना ही मेरी सेवा है। जिससे रीझ कर मैं हिरण्यगर्भ के रहस्य प्रकट करता हूँ।
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समर्थक
कुल पेज दृश्य
0 | 87 |
1 | 33 |
2 | 27 |
3 | 65 |
4 | 80 |
5 | 45 |
6 | 23 |
7 | 31 |
8 | 35 |
9 | 39 |
10 | 46 |
11 | 37 |
12 | 40 |
13 | 22 |
14 | 41 |
15 | 60 |
16 | 48 |
17 | 48 |
18 | 54 |
19 | 60 |
20 | 59 |
21 | 46 |
22 | 100 |
23 | 59 |
24 | 56 |
25 | 41 |
26 | 81 |
27 | 64 |
28 | 31 |
29 | 1 |
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