Tuesday, 17 September 2019

Shree Swami Samarth 44


Sunday, 31 December 2017

नववर्षाच्या हार्दिक शुभेच्छा!

नववर्षाच्या हार्दिक शुभेच्छा!
|| श्री स्वामी समर्थ ||

ओळख तो आवाज
ओळख ती खूण
आपल्या भक्तांसाठी
तो फिरतो आहे अजून
त्याला उगम नव्हता
त्याला अंत नाही
तो त्रैलोक्याचा स्वामी
नुसताच संत नाही
त्याचं स्मरण कर
देहभान विसरुन
तो हळूवार येईल अन्
कानात जाईल सांगून,
" भिऊ नकोस मी तुझ्या पाठीशी आहे."
॥श्री स्वामी समर्थ॥

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|| श्री स्वामी समर्थ ||
भगवान श्रीपादश्रीवल्लभ महाराजांचे अतिप्रिय श्री सिद्धमंगल स्तोत्र जरुर ऎका. खात्रिने सांगतो तुम्ही रोज पेज वरील हे स्तोत्र ऎकणारच.
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https://youtu.be/MRmlWSt3RHI

Saturday, 30 December 2017

श्री स्वामी समर्थ

श्री स्वामी समर्थ



माघ वद्य १, शके १३८०, इ.स. १४५८ में नृसिंह सरस्वती  श्री शैल्य यात्राके कारण कर्दली वनमें अदृश्य हुए । इसी वनमें वे तीनसौ वर्ष प्रगाढ समाधि अवस्थामें थे । तभी उनके दिव्य शरीरके चारों ओर चींटियोंने भयंकरबांबी निर्माण किया । उस जंगलमें एक दिन एक लकडहारेकी कुल्हाडी गलतीसे बांबीपर गिरी तथा श्री स्वामी बांबीसे बाहर आए । प्रथम वे काशीमें प्रकट हुए । आगे कोलकाता जाकर उन्होंने कालीमाताका दर्शन किया । इसके पश्चातगंगातटसे अनेक स्थानोंका भ्रमण करके वे गोदावरी तटपर आए । वहांसे हैदराबाद होते हुए बारह वर्षोंतक वे मंगलवेढा रहे । तदुपरांत पंढरपुर, मोहोळ, सोलापुरमार्गसे अक्कलकोट आए । वहांपर उनका निवास अंततक अर्थात शके १८०० तक था ।
दत्त संप्रदायमें श्रीपाद श्रीवल्लभ तथा नृसिंह सरस्वतीदत्तात्रेय के पहले तथा दूसरे अवतार माने जाते हैं । श्री स्वामी समर्थ ही नृसिंह सरस्वती हैं अर्थात दत्तावतार हैं ।
अक्कलकोटके परब्रह्म श्री स्वामी समर्थ अपने भक्तोंको सुरक्षाका वचन देते हुए कहते थे,“डरो नहीं, मैं तुम्हारे पीठपीछे हूं ।’’ भक्तोंको आज भी इसका प्रत्यय (भान) आता है । श्री स्वामी समर्थ अक्कलकोट प्रथम खंडोबाके मंदिरमें इ.स. १८५६ में प्रकट हुए । उन्होंने अनेक चमत्कार किए । जनजागृतिका कार्य किया । “जो मेरा अनन्य भावसे चिंतन, मनन करेगा, उस अनन्य भावके चिंतनकी उपासना, सेवा मुझे सारसर्वस्व समझके अर्पण करेगा उन नित्य उपासना करनेवाले मेरे प्रिय भक्तोंका मैं सब प्रकारसे योगक्षेम चलाउंगा,’’ उन्होंने भक्तोंको ऐसा आश्वासन दिया ।
स्वामी समर्थ क्षणमें अदृश्य होते थे तथा अचानक प्रकट भी होते थे । स्वामी गिरनार पर्वतपर अदृश्य हुए तथा दूसरे ही क्षण आंबेजोगाईमें प्रकट हुए । हरिद्वारसे काठेवाडके जीविक क्षेत्र स्थित नारायण सरोवरके बीचोबीच सहजासनमें बैठे दिखाई दिए । तदुपरांत भक्तोंने उन्हें पंढरपुरकी भीमा नदीकी बाढमें चलते हुए देखा ।
स्वामीजीने मंगळवेढा स्थित बसप्पाका दारिद्र्यनष्ट किया । उसके लिए सर्पोंको सुवर्णमें बदल दिया । उस गांवके बाबाजी भट नामके ब्राह्मण गृहस्थका सूखा कुआं पानीसे भर दिया । पंडित नामके अंधे ब्राह्मणके नेत्रोंकी ज्योति वापस लाई । स्वामी समर्थने ये सारे चमत्कार लोगोंमें भक्तिमार्गकी जागृति लाने हेतु दिखाए । संत लोगोंके कल्याण हेतु, लोगोंके भाव हेतु तथा लोगोंके आत्मिक एवं पारमार्थिक ऐश्वर्य हेतु तथा दूसरोंके सुखमें सुख माननेवाले होते हैं ।
स्वामी समर्थने समाजकी दुष्ट प्रवृत्ति नष्ट कर सत विचारोंकी पुनस्र्थापना की । दुखी एवं पीडित लोगोंपर कृपाकी वर्षा की । इच्छुक भक्त सदा स्मरण करें ऐसा अनुभव देकर उन्हें प्रेमबंधनसे अपना लिया । स्वामी समर्थकी दृष्टिमें धनवान तथा निर्धन सब एक जैसे ही थे । उन्हें सीधा-साधा भोला भक्तिभाव बहुत अच्छा लगता था । उनके ह्रदयमें सामान्य लोगोंके लिए बहुत प्रेम था । स्वामी समर्थ बहुत तेजस्वी थे । उनके मुखमंडलपर कोटि सूर्योंका तेज शोभायमान होता था । उनके नेत्रोंमें अपरंपार करुणा थी । भक्तोंपर आए संकट वे दूर करते थे ।
एक बार स्वामी समर्थके दर्शन हेतु अक्कलकोटके महाराज मालोजीराजे हाथीपर बैठकर आए थे । उन्होंने जब स्वामी समर्थके चरणोंपर मस्तक रखा, तो स्वामीजीने मालोजीराजेके गालपर एक तमाचा जड दिया तथा कहा, `तुम्हारा बडप्पन तुम्हारे घरमें । उसका यहां क्या काम ? हम ऐसे बहुतसे राजा बनाते हैं ।’ तबसे मालोजीराजे स्वामी समर्थके दर्शन हेतु पैदल ही आते थे ।
अक्कलकोट संस्थानके मानकरी सरदार तात्या भोसलेजीका मन संस्थानसे, संसारसे ऊब गया, तब वे स्वामी समर्थके चरणोंमें रहकर भक्तिभावसे उनकी सेवा करने लगे । एक बार वे स्वामी समर्थके निकट बैठे थे तब स्वमीजीने तात्या भोसलेजीसे कहा, “तुम्हारे नामकी चिट्ठी आई है ।’’ तात्या भोसलेजीने स्वामी समर्थसे प्रार्थना की, “मुझे आपकी और सेवा करनी है !'' तात्या भोसलेजीने यमदूतको देखा, तथा वे डर गए । अपने भक्तकी तडप देखकर स्वामी समर्थने यमदूतसे कहा, “यह मेरा भक्त है । इसे स्पर्श मत करना । उस तरफ बैठे बैलको ले जाओ ! '' उस बैलके प्राण गए तथा वह भूमिपर गिर गया ।
श्री स्वामी समर्थ भक्तकाम कल्पद्रुम हैं, भक्तकाम कामधेनु हैं, चिंतामणि हैं । उनके हृदयमें करुणाका सागर है । उन्हें आवाज दो, वे सदा तुम्हारे पास हैं । स्वामी समर्थ अपने भक्तोंके कल्याण हेतु सदैव जागृत रहकर भयंकर संकटोंसे उन्हें मुक्त कराते हैं ।
अक्कलकोटमें मोरोबा कुलकर्णी नामका एक स्वामीभक्त था । उसके आंगनमें श्री स्वामी समर्थ अपने सेवकोंसमेत सोए थे । मोरोबाकी पत्नीको रातके समय पेटमें पीडा आरंभ हुई । उसे असह्य यातनाएं होने लगीं । वह कुएंमें जान देने निकली । स्वामी समर्थ एकदम जग गए तथा सेवकोंसे कहा, “अरे, कुएंमें कौन जान दे रहा है देखो । उसे मेरे पास ले आओ !'' सेवक कुएंके पास गए तो मोरोबाकी पत्नी कुएंमें कूदनेकी स्थितिमें दिखी । वे उसे लेकर स्वामी समर्थके समक्ष आए । स्वामीजीने उसकी ओर कृपादृष्टिसे देखा । उसके पेटकी पीडा समाप्त हो गई ।
स्वामी समर्थद्वारा अपने रूपमें तथा भक्तको उसके इच्छित देवताके रूपमें दर्शन देनेकी जानकारी अनेक कथाओं द्वारा ज्ञात होती है । द्वारकापुरीमें सूरदास नामके महान कृष्णभक्त रहते थे । सूरदास जन्मांध थे । सगुण साकार श्रीकृष्णका दर्शन हो, यह उनकी बडी इच्छा थी । स्वामी समर्थ सूरदासके आश्रममें जाकर खडे हो गए तथा सूरदासको आवाज दी । कहा, `तुम जिसके नामसे आवाज दे रहे हो, देखो वह मैं तुम्हारे दरवाजेपर खडा हूं । सूरदास, जरा देखो ।’’ इतना कहकर समर्थने उनके दोनों नेत्रोंको हस्तस्पर्श किया । तभी सूरदासको दिव्य दृष्टि प्राप्त हुई तथा उन्हें शंख, चक्र, गदाधारी श्रीकृष्णका सगुणरूप दिखने लगा । सूरदास गदगद हो गए । थोडी देरके पश्चात चेतना वापस आनेपर स्वामी समर्थने उन्हें अपने वास्तविक रूपका दर्शन कराया । सूरदास भावविभोर हो गए तथा स्वामी समर्थसे कहा, “आपने मुझे दिव्यदृष्टि दी है । अब इस जन्ममृत्युके चक्रसे मुझे मुक्त कीजिए !'' स्वामी समर्थने सूरदासको,“तुम ब्रह्मज्ञानी बनोगे ! '' यह आशीर्वाद दिया ।
स्थान-स्थानपर स्वामी समर्थके अगणित भक्त हैं । १८७८ में स्वामी समर्थने अक्कलकोटमें अपने पार्थिव शरीरका भले ही त्याग किया हो, किंतु “हम गया नहीं, जिंदा हैं,’’ उनका यह वचन भक्तोंका आधार है ।


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Friday, 29 December 2017

हितगुज - परमपूज्य गुरुमाऊली.

श्री स्वामी समर्थ

हितगुज - परमपूज्य गुरुमाऊली.
जरुर ऎका, कदाचित आत्तापर्यंत ही माहिती तुम्ही ऐकलेली नसेलही. तुम्हीही ऎका आणि इतरांनाही ऎकवा.
|| श्री स्वामी समर्थ गुरुमाऊली चरणापर्णमस्तु
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Thursday, 28 December 2017

गुरु ब्रम्हा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरा | गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मैश्री गुरुवेनमहा ||


गुरु ब्रम्हा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरा |
गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मैश्री गुरुवेनमहा ||

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https://youtu.be/HJI6jZWYMnc

Tuesday, 26 December 2017

बगलामाता लक्षचंडी यागाला उपस्थित लाखोंचा अफाट जनसमुदाय त्यातील काही निवडक फोटो.

|| श्री स्वामी समर्थ ||

बगलामाता लक्षचंडी यागाला उपस्थित लाखोंचा अफाट जनसमुदाय त्यातील काही निवडक फोटो.
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https://youtu.be/zcm0JtdA178

**महासत्संग नव्हे ही आहे श्री गुरूपीठ येथील मासिक महासभा(मिटिंग) ||

Shree Swami Samarth Masik Sabha


**महासत्संग नव्हे ही आहे श्री गुरूपीठ येथील मासिक महासभा(मिटिंग)
|| श्री स्वामी समर्थ महाराज की जय ||
|| श्री स्वामी समर्थ गुरुमाऊलींकी जय ||

Monday, 25 December 2017

स्वामी समर्थ मंत्र तारक मंत्र


स्वामी समर्थ मंत्र तारक मंत्र






निःशंक हो, निर्भय हो, मना रे
प्रचंड स्वामीबळ पाठीशी रे
अतर्क्य अवधूत हे स्मर्तू गामी
अशक्यही शक्य करतील स्वामी ।।१।।
जिथे स्वामी पाय तिथे न्युन काय
स्वये भक्त प्रारब्ध घडवी ही माय
आज्ञेविणा काळ ना नेई त्याला
परलोकही ना भिती तयाला ।।२।।
उगाची भितोसी भय पळू दे
जवळी उभी स्वामी शक्ती कळू दे
जगी जन्ममृत्यु असे खेळ ज्यांचा
नको घाबरु तू असे बाळ त्यांचा ।।३।।
खरा होई जागा तू श्रध्देसहित
कसा होशी त्याविण तू स्वामीभक्त
कितीदा दिला बोल त्यांनीच हात
नको डगमगू स्वामी देतील साथ ।।४।।
विभूती नमन नाम ध्यानादी तिर्थ
स्वमीच या पंच प्राणाभृतात
हे तिर्थ घे, आठवी रे प्रचिती
न सोडेल स्वामी ज्या घेई हाती ।।५।।
Nishank ho, Nirbhai ho, Mana re
Prachand swamibal pathishi re
Atarkya avdhut he smartu gami
Ashakyahi shakya kartil swami ||1||
Jithe swami pai Tithe nyun Kai
Swaye bhakt prarabdha ghadavi hi mai
Aadhne vina kaal na nei tyala
Parlokihi nahi bhiti tayala ||2||
Ugachi bhitosi bhai he palude
Javali ubhi swami shakti kalude
Jagi Janm mrutyu ase khel jyancha
Nako ghabaru tu ase baal tyancha ||3||
Khara hoi jaga tu shradhesahit
Kasa hoshi tyavin tu swamibhakt
Kitinda dili bol tyanech haat
Nako dagmagu swami detil haat ||4||
Vibhuti naman naam dhyanarth tirth
Swamich ya panch pranabhrutat
He tirth ghe athavi re prachiti
Na sodel swami jya ghei hati ||5||

जय श्री स्वामी समर्थ

मन मंदिरी या दिप उजळले, गुरू सहवासी रमता।                                                       ब्रह्मा,विष्णू,महेशांच्या पदकमलांशी नमता...

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Ameya jaywant narvekar